ETV Bharat / city

आदिवासी कला संस्कृति केंद्र में 7 साल बाद भी नहीं हुआ कोई कार्यक्रम, अब सिर्फ ठहरती है  बारात - बोकारो में आदिवासी मूलवासी

बोकारो में 2013 में आदिवासी संस्कृति भवन का निर्माण किया गया था. करोड़ों रुपए की लागत से बनाए गए भवन में कोई कार्यक्रम नहीं किया गया और न ही इसका कोई रख-रखाव हो रहा. आलम यह है कि अब इस भवन का इस्तेमाल बारात ठहराने का काम किया जाता है.

The state of tribal culture building is shabby
आदिवासी कला संस्कृति केंद्र
author img

By

Published : Jan 5, 2020, 1:45 PM IST

बोकारोः आदिवासी मूलवासी झारखंड की सभ्यता संस्कृति की पहचान और शान है. आदिवासी संस्कृति पर्याय है झारखंड की संस्कृति की. इसी संस्कृति को सहेजने और संवारने के लिए और संरक्षित करने के लिए 2013 में बोकारो के सियारी गांव में लगभग तीन करोड़ की लागत से आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण कराया गया था. लेकिन इस भवन में कला प्रदर्शन का नहीं बल्कि बारात ठहराने का स्थान बन गया है जो जर्जर होते जा रहा है. यह भवन अपने निर्माण के बाद से ही एक अदद कला की प्रदर्शनी और प्रस्तुति के लिए राह ताक रहा है.

देखें पूरी रिपोर्ट

लगभग तीन करोड़ की लागत से बने आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण इस मंशा के साथ किया गया था कि इससे आदिवासी संस्कृति को सहेजा जा सकेगा. इसके साथ ही नई पीढ़ी को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति और कला से परिचित कराया जा सकेगा. सियारी गांव को प्रकृति ने दिल खोलकर नेमते बरती है. इसी खूबसूरत नजारा को शहरी गांव में आदिवासी संस्कृति केंद्र का निर्माण तत्कालीन विधायक माधव लाल सिंह ने कराया था. तब सुबे में हेमंत सोरेन की सरकार थी. संस्कृति कला भवन को बहुत ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया था. खुले आसमान के नीचे ऑडिटोरियम और मंच भी बनाए गए थे, ताकि आदिवासी कला संस्कृति का मंचन हो और लोग इसका आनंद ले सकें. इस संस्कृति से परिचित हो सके. वहीं आने वाली पीढ़ी भारत की आदि संस्कृति को समझ सके, लेकिन 8 साल बाद भी यह मंच प्रस्तुति को तरस रहा है. ऑडिटोरियम में दर्शकों के लिए बनाया गया जगह आज तक खाली है.

ये भी पढ़ें- रिम्स के सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक में पारा मेडिकल कर्मियों की कमी, डॉक्टरों को हो रही परेशानी

यहां के आसपास के लोगों का कहना है की निर्माण के बाद अभी तक यहां पर एक बार भी किसी कला की प्रदर्शनी नहीं की गई है. न ही राज्य न ही प्रदेश स्तर पर और न ही जिला स्तर पर कोई कार्यक्रम यहां किया गया है. विडंबना तो यह है स्थानीय स्तर पर भी किसी कला का यहां पर आज तक प्रदर्शन नहीं हो पाया है.

बोकारोः आदिवासी मूलवासी झारखंड की सभ्यता संस्कृति की पहचान और शान है. आदिवासी संस्कृति पर्याय है झारखंड की संस्कृति की. इसी संस्कृति को सहेजने और संवारने के लिए और संरक्षित करने के लिए 2013 में बोकारो के सियारी गांव में लगभग तीन करोड़ की लागत से आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण कराया गया था. लेकिन इस भवन में कला प्रदर्शन का नहीं बल्कि बारात ठहराने का स्थान बन गया है जो जर्जर होते जा रहा है. यह भवन अपने निर्माण के बाद से ही एक अदद कला की प्रदर्शनी और प्रस्तुति के लिए राह ताक रहा है.

देखें पूरी रिपोर्ट

लगभग तीन करोड़ की लागत से बने आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण इस मंशा के साथ किया गया था कि इससे आदिवासी संस्कृति को सहेजा जा सकेगा. इसके साथ ही नई पीढ़ी को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति और कला से परिचित कराया जा सकेगा. सियारी गांव को प्रकृति ने दिल खोलकर नेमते बरती है. इसी खूबसूरत नजारा को शहरी गांव में आदिवासी संस्कृति केंद्र का निर्माण तत्कालीन विधायक माधव लाल सिंह ने कराया था. तब सुबे में हेमंत सोरेन की सरकार थी. संस्कृति कला भवन को बहुत ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया था. खुले आसमान के नीचे ऑडिटोरियम और मंच भी बनाए गए थे, ताकि आदिवासी कला संस्कृति का मंचन हो और लोग इसका आनंद ले सकें. इस संस्कृति से परिचित हो सके. वहीं आने वाली पीढ़ी भारत की आदि संस्कृति को समझ सके, लेकिन 8 साल बाद भी यह मंच प्रस्तुति को तरस रहा है. ऑडिटोरियम में दर्शकों के लिए बनाया गया जगह आज तक खाली है.

ये भी पढ़ें- रिम्स के सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक में पारा मेडिकल कर्मियों की कमी, डॉक्टरों को हो रही परेशानी

यहां के आसपास के लोगों का कहना है की निर्माण के बाद अभी तक यहां पर एक बार भी किसी कला की प्रदर्शनी नहीं की गई है. न ही राज्य न ही प्रदेश स्तर पर और न ही जिला स्तर पर कोई कार्यक्रम यहां किया गया है. विडंबना तो यह है स्थानीय स्तर पर भी किसी कला का यहां पर आज तक प्रदर्शन नहीं हो पाया है.

Intro:आदिवासी मूलवासी झारखंड की सभ्यता संस्कृति की पहचान है। शान है। आदिवासी संस्कृति पर्याय है झारखंड की संस्कृति की। इसी संस्कृति को सहेजने के लिए संवारने के लिए और संरक्षित करने के लिए 2013 में बोकारो के सियारी गांव में लगभग तीन करोड़ की लागत से आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण कराया गया था। लेकिन इस भवन में कला प्रदर्शन का नहीं बल्कि बरात ठहरने का स्थान बन गया है। साथ ही ये जर्जर होते जा रहा है। यह भवन अपने निर्माण के बाद से ही एक अदद कला की प्रदर्शनी और प्रस्तुति के लिए राह तक रहा है।


Body:लगभग तीन करोड़ की लागत से बने आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण इस मंशा के साथ किया गया था कि इससे आदिवासी संस्कृति को सहेजा जा सकेगा। साथ ही नई पीढ़ी को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति और कला से परिचित कराया जा सकेगा। इसीलिए सियारी जो बोकारो का एक आदर्श गांव है और बोकारो नदी के किनारे है। और बड़ा ही खूबसूरत मनोरम और विहंगम है। उस नदी के किनारे इसे बनाया गया था। सियारी गांव को प्रकृति ने दिल खोलकर नेमते बरती है। इसी खूबसूरत विहंगम शहरी गांव में आदिवासी संस्कृति केंद्र का निर्माण तत्कालीन विधायक माधव लाल सिंह ने कराया था। तब सुबे में हेमंत सोरेन की सरकार थी। आप देख सकते हैं कि संस्कृति कला भवन को बहुत ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया था। खुले आसमान के नीचे ऑडिटोरियम और मंच भी बनाए गए थे। ताकि आदिवासी कला संस्कृति का मंचन हो और लोग इसका आनंद ले सकें। और इस संस्कृति से परिचित हो सके। साथ ही अपनी आने वाली पीढ़ी भारत की आदि संस्कृति को जान समझ सके। लेकिन 8 साल बाद भी यह मंच प्रस्तुति को तरस रहा है। ऑडिटोरियम में दर्शकों के लिए बनाया गया जगह आज तक खाली है।


Conclusion:यहां के आसपास के लोगों का कहना है की निर्माण के बाद अभी तक यहां पर एक बार भी किसी कला की प्रदर्शनी नहीं की गई है। ना ही राज्य ना ही प्रदेश स्तर पर और ना ही जिला स्तर पर कोई कार्यक्रम यहां किया गया है। विडंबना तो यह है स्थानीय स्तर पर भी किसी कला का यहां पर आज तक प्रदर्शन नहीं हो पाया है। लगभग तीन करोड़ की लागत से बने भवन में अब पशुओं का जमावड़ा लगता है। तो साथ ही बारात ठहरने के लिए भी इस भवन का इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही रखरखाव के बिना भवन धीरे-धीरे जर्जर होते जा रहा है। अब जब सुबे में एक बार फिर से हेमंत सोरेन की सरकार बनी है। तो लोगों की आस जगी है की हो सकता है कि फिर से इसके दिन फिरेंगे। और आदिवासी मूलवासी की बात करने वाले हेमंत सोरेन एक बार फिर झारखंड के cm बने हैं।अब देखना है कि हेमंत सोरेन आदिवासी सभ्यता संस्कृति को सहेजने में मददगार बनने वाले इस कला केंद्र को गुलज़ार करने में कितना योगदान देते हैं।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.