बोकारोः आदिवासी मूलवासी झारखंड की सभ्यता संस्कृति की पहचान और शान है. आदिवासी संस्कृति पर्याय है झारखंड की संस्कृति की. इसी संस्कृति को सहेजने और संवारने के लिए और संरक्षित करने के लिए 2013 में बोकारो के सियारी गांव में लगभग तीन करोड़ की लागत से आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण कराया गया था. लेकिन इस भवन में कला प्रदर्शन का नहीं बल्कि बारात ठहराने का स्थान बन गया है जो जर्जर होते जा रहा है. यह भवन अपने निर्माण के बाद से ही एक अदद कला की प्रदर्शनी और प्रस्तुति के लिए राह ताक रहा है.
लगभग तीन करोड़ की लागत से बने आदिवासी संस्कृति भवन और बाल संसद का निर्माण इस मंशा के साथ किया गया था कि इससे आदिवासी संस्कृति को सहेजा जा सकेगा. इसके साथ ही नई पीढ़ी को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति और कला से परिचित कराया जा सकेगा. सियारी गांव को प्रकृति ने दिल खोलकर नेमते बरती है. इसी खूबसूरत नजारा को शहरी गांव में आदिवासी संस्कृति केंद्र का निर्माण तत्कालीन विधायक माधव लाल सिंह ने कराया था. तब सुबे में हेमंत सोरेन की सरकार थी. संस्कृति कला भवन को बहुत ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया था. खुले आसमान के नीचे ऑडिटोरियम और मंच भी बनाए गए थे, ताकि आदिवासी कला संस्कृति का मंचन हो और लोग इसका आनंद ले सकें. इस संस्कृति से परिचित हो सके. वहीं आने वाली पीढ़ी भारत की आदि संस्कृति को समझ सके, लेकिन 8 साल बाद भी यह मंच प्रस्तुति को तरस रहा है. ऑडिटोरियम में दर्शकों के लिए बनाया गया जगह आज तक खाली है.
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यहां के आसपास के लोगों का कहना है की निर्माण के बाद अभी तक यहां पर एक बार भी किसी कला की प्रदर्शनी नहीं की गई है. न ही राज्य न ही प्रदेश स्तर पर और न ही जिला स्तर पर कोई कार्यक्रम यहां किया गया है. विडंबना तो यह है स्थानीय स्तर पर भी किसी कला का यहां पर आज तक प्रदर्शन नहीं हो पाया है.