बोकारो: जिले के गोमिया में बसा है गांधीग्राम. लगभग आठ दशक पहले यहां पर घुमंतू आकर बसे थे. इसी कारण गांधीग्राम को गुलगुलवा धोरा भी कहा जाता है. देश की आजादी हुए 70 साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन, इस गांव की हालत देखकर लगता है कि तंबू और टूटे-फूटे झोपड़ी में रहना इनकी नियति है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2 करोड़ आवास देने का दावा भी यहां खोखला नजर आता है.
क्या है इस गांव की स्थिति?
गांधीग्राम की एक बुजुर्ग महिला बताती है कि जब देश गुलाम था तब वे लोग यहां आकर बसे थे. उनका पेशा भीख मांगना होता था. समय बदलने के साथ उनका काम भी बदल गया. अब वे चाकू-छुरी में धार देने का धंधा करते हैं. जिससे उनकी कमाई इतनी नहीं होती है कि अपने सिर पर एक छत भी बना सकें.
गांधीग्राम के लोग समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि गांव के लोग अपने बच्चे को डीएवी या दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के लिए के लिए भेज रहे हैं.
वहीं, इनके पास घर के नाम पर बस झोपड़ी है जो गर्मी, बरसात और ठंड से लोगों को बचाने में असमर्थ है. गांव में विकास के नाम पर एक बड़ी टंकी भी है. जिससे आज तक पानी की एक बूंद तक नहीं टपकी है. बारिश के मौसम में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि यहां खड़े रहना भी बीमारी को बुलावा देने के समान है. इसके बावजूद भी लोग विवश होकर इस गांव में रहते हैं और जीवन जीते हैं. कई बार वे संघर्ष हार जाते हैं और असामयिक मौत का शिकार हो जाते हैं.
मामले पर क्या कहता है प्रशासन?
सरकार दावा करती है कि उनके राज में सबकुछ ठीक है. यहां के स्थानीय मुखिया चमेली देवी ग्रामीणों को आवास दिलाने के काफी कोशिश कर रही है. लेकिन सीसीएल इसकी इजाजत नहीं दे रहा है.
मामले पर सीसीएल का कहना है कि गांधीग्राम अवैध जमीन पर बसा हुआ गांव है. यह जमीन सीसीएल की है. जबकि, ग्रामीणों का कहना है कि वे यहां तब से बसे हैं जब सीसीएल का कोई अस्तित्व भी नहीं था. यही कारण है कि स्थानीय मुखिया के तमाम कोशिशों के बाद भी इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
वहीं, जिला प्रशासन ने इस संबंध में कहा है कि हम इतने लोगों को एक जगह बसाने में असमर्थ हैं. इसी कारण आज तक इस गांव के लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है.