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बोकारो: आजादी के 70 साल बाद भी तंबू में रहने के लिए विवश हैं गांधीग्राम के लोग

भारत की आजादी के सात दशक बाद भी बोकारो के गांधीग्राम के लोग मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं. आज स्थिति यह है कि गांव के लोग झोपड़ी में रहने के लिए विवश हैं. जिस कारण गर्मी का मौसम हो या बारिश का. ग्रामीणों को जीने के लिए संघर्ष करना अंतिम रास्ता है.

ग्रामीण महिलाएं
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Published : Jul 27, 2019, 4:08 PM IST

Updated : Jul 27, 2019, 6:19 PM IST

बोकारो: जिले के गोमिया में बसा है गांधीग्राम. लगभग आठ दशक पहले यहां पर घुमंतू आकर बसे थे. इसी कारण गांधीग्राम को गुलगुलवा धोरा भी कहा जाता है. देश की आजादी हुए 70 साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन, इस गांव की हालत देखकर लगता है कि तंबू और टूटे-फूटे झोपड़ी में रहना इनकी नियति है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2 करोड़ आवास देने का दावा भी यहां खोखला नजर आता है.

देखें पूरी खबर

क्या है इस गांव की स्थिति?
गांधीग्राम की एक बुजुर्ग महिला बताती है कि जब देश गुलाम था तब वे लोग यहां आकर बसे थे. उनका पेशा भीख मांगना होता था. समय बदलने के साथ उनका काम भी बदल गया. अब वे चाकू-छुरी में धार देने का धंधा करते हैं. जिससे उनकी कमाई इतनी नहीं होती है कि अपने सिर पर एक छत भी बना सकें.

गांधीग्राम के लोग समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि गांव के लोग अपने बच्चे को डीएवी या दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के लिए के लिए भेज रहे हैं.
वहीं, इनके पास घर के नाम पर बस झोपड़ी है जो गर्मी, बरसात और ठंड से लोगों को बचाने में असमर्थ है. गांव में विकास के नाम पर एक बड़ी टंकी भी है. जिससे आज तक पानी की एक बूंद तक नहीं टपकी है. बारिश के मौसम में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि यहां खड़े रहना भी बीमारी को बुलावा देने के समान है. इसके बावजूद भी लोग विवश होकर इस गांव में रहते हैं और जीवन जीते हैं. कई बार वे संघर्ष हार जाते हैं और असामयिक मौत का शिकार हो जाते हैं.

मामले पर क्या कहता है प्रशासन?
सरकार दावा करती है कि उनके राज में सबकुछ ठीक है. यहां के स्थानीय मुखिया चमेली देवी ग्रामीणों को आवास दिलाने के काफी कोशिश कर रही है. लेकिन सीसीएल इसकी इजाजत नहीं दे रहा है.
मामले पर सीसीएल का कहना है कि गांधीग्राम अवैध जमीन पर बसा हुआ गांव है. यह जमीन सीसीएल की है. जबकि, ग्रामीणों का कहना है कि वे यहां तब से बसे हैं जब सीसीएल का कोई अस्तित्व भी नहीं था. यही कारण है कि स्थानीय मुखिया के तमाम कोशिशों के बाद भी इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
वहीं, जिला प्रशासन ने इस संबंध में कहा है कि हम इतने लोगों को एक जगह बसाने में असमर्थ हैं. इसी कारण आज तक इस गांव के लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है.

बोकारो: जिले के गोमिया में बसा है गांधीग्राम. लगभग आठ दशक पहले यहां पर घुमंतू आकर बसे थे. इसी कारण गांधीग्राम को गुलगुलवा धोरा भी कहा जाता है. देश की आजादी हुए 70 साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन, इस गांव की हालत देखकर लगता है कि तंबू और टूटे-फूटे झोपड़ी में रहना इनकी नियति है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2 करोड़ आवास देने का दावा भी यहां खोखला नजर आता है.

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क्या है इस गांव की स्थिति?
गांधीग्राम की एक बुजुर्ग महिला बताती है कि जब देश गुलाम था तब वे लोग यहां आकर बसे थे. उनका पेशा भीख मांगना होता था. समय बदलने के साथ उनका काम भी बदल गया. अब वे चाकू-छुरी में धार देने का धंधा करते हैं. जिससे उनकी कमाई इतनी नहीं होती है कि अपने सिर पर एक छत भी बना सकें.

गांधीग्राम के लोग समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि गांव के लोग अपने बच्चे को डीएवी या दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के लिए के लिए भेज रहे हैं.
वहीं, इनके पास घर के नाम पर बस झोपड़ी है जो गर्मी, बरसात और ठंड से लोगों को बचाने में असमर्थ है. गांव में विकास के नाम पर एक बड़ी टंकी भी है. जिससे आज तक पानी की एक बूंद तक नहीं टपकी है. बारिश के मौसम में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि यहां खड़े रहना भी बीमारी को बुलावा देने के समान है. इसके बावजूद भी लोग विवश होकर इस गांव में रहते हैं और जीवन जीते हैं. कई बार वे संघर्ष हार जाते हैं और असामयिक मौत का शिकार हो जाते हैं.

मामले पर क्या कहता है प्रशासन?
सरकार दावा करती है कि उनके राज में सबकुछ ठीक है. यहां के स्थानीय मुखिया चमेली देवी ग्रामीणों को आवास दिलाने के काफी कोशिश कर रही है. लेकिन सीसीएल इसकी इजाजत नहीं दे रहा है.
मामले पर सीसीएल का कहना है कि गांधीग्राम अवैध जमीन पर बसा हुआ गांव है. यह जमीन सीसीएल की है. जबकि, ग्रामीणों का कहना है कि वे यहां तब से बसे हैं जब सीसीएल का कोई अस्तित्व भी नहीं था. यही कारण है कि स्थानीय मुखिया के तमाम कोशिशों के बाद भी इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
वहीं, जिला प्रशासन ने इस संबंध में कहा है कि हम इतने लोगों को एक जगह बसाने में असमर्थ हैं. इसी कारण आज तक इस गांव के लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है.

Intro:बोकारो कि गोमिया में बसा है गांधीग्राम। गांधीग्राम जिसे गुलगुलवा धोरा भी कहा जाता है। करीब 80 साल पहले यहां पर गुलगुलवा आकर बसे थे। तब से आज तक तंबू और टूटे-फूटे झोपड़ी में रहना इनकी नियति है। आजादी के 72 साल हुए हैं अब स75 वीं जयंती मनाने की तैयारी हो रही है। विकास के दावे हो रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री करीब दो करोड़ आवास देने का दावा भी करते हैं। लेकिन उस चकाचौंध से दूर जब गांधीग्राम के लोगों की हालत देखते हैं तो लगता है विकास ने यहां अभी दस्तक भी नहीं दी है। यहां से भी विकास अभी कोसों दूर है।


Body:इस गांव की बुजुर्ग महिला बताती है कि जब अंग्रेज देश में थे तब आकर वह लोग यहां बसे थे । गांधीग्राम के लोगों का कभी भीख मांगना पेशा हुआ करता था। जिसमें अब समय के साथ सुधार हुआ है। चाकू छुरी में धार करना अब यहां के लोगों का मुख्य पेशा है। लेकिन इससे इतनी कमाई नहीं हो पाती है अपने सिर पर एक छत बना सके। गांधी गांव के लोग समाज के मुख्यधारा से जुड़ने की हर कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है यहां की कुछ बच्चे आज dav और दूसरे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इन घरों से जलते आग को देखिए बमुश्किल 5 फीट ऊंची झोपड़ी में 4 फीट 5 फीट ऊंची आग की लपटें उठ रही है। जो हादसे को निमंत्रण देना है। क्योंकि इनके पास आशियाना के नाम पर यही झोपड़ी है जो गरमी, बरसात से लोगों को बचाने में असमर्थ है। इसके बावजूद लोग इस में रहते हैं क्योंकि इन्हें इससे अपने सिर छत होने का एहसास रहता है। र्ट।


Conclusion:विकास के नाम पर गांव में एक बड़ी सी टंकी भी है। लेकिन आज तक इससे पानी की एक बूंद नहीं टपकी है। बारिश के दिनों में स्थिति इतनी भयावह हो जाती है कि यहां खड़े रहना भी बीमारी को आमंत्रण देना होता है। लेकिन इसके बावजूद लोग यहां रहते हैं और जीवन जीते हैं। कई बार संघर्ष कर हार जाते हैं तो वेवक्त मौत का शिकार हो जाते हैं। लेकिन सरकार के दावे हैं कि उनके राज में ऑल इज़ वैल है। यहां के स्थानीय मुखिया चमेली देवी इन्हें आवास दिलाने के लिए प्रयासरत है। लेकिन सीसीएल इसकी इजाजत नहीं देती है। सीसीएल का कहना है की गांधीग्राम अवैध जमीन पर बसा है। यह जमीन उनकी है जबकि यहां के लोगों का कहना है वह यहां पर तब से हैं जब सीसीएल भी नहीं बना था। यही वजह है स्थानीय मुखिया के लाख प्रयास के बावजूद में इन्हें प्रधानमंत्री आवास नहीं मिल पाता है। तो वहीं जिला प्रशासन एक साथ इतने लोगों को एक जगह बसाने में असमर्थता जाहिर करती है। यही वजह है कि आज तक गांधीग्राम में प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लोगों को नहीं मिल सका है। अब देखना है कि सिस्टम और सीसीएल के बीच कोई समाधान होता है। और इन्हें मिलता है एक अदद आशियाना। बोकारो से आलोक रंजन सिंह की रिपो
Last Updated : Jul 27, 2019, 6:19 PM IST
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