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झारखंड में गिरता जा रहा है भूगर्भ जलस्तर, ड्राई जोन केटेगरी में सीएम हाउस समेत कई VIP इलाके

राजधानी रांची में आधे दर्जन से अधिक इलाके ऐसे हैं जिन्हें ड्राई जॉन की कैटेगरी में रखा गया है. दूसरे शब्दों में समझें तो इन इलाकों में 400 से 500 फिट तक बोरिंग कराने पर ही पानी मिलता है. हैरत की बात यह है कि इनमें मुख्यमंत्री आवास का इलाका भी शामिल है.

जानकारी देते विशेषज्ञ
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Published : May 27, 2019, 4:32 PM IST

रांची: गर्मी में पानी की समस्या आम हो जाती है, लेकिन झारखंड में यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि प्रदेश में भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और वाटर रिचार्ज के लिए ठोस उपाय नहीं किया जा रहा है.

जानकारी देते विशेषज्ञ


राजधानी रांची की बात करें तो आधे दर्जन से अधिक इलाके ऐसे हैं जिन्हें ड्राई जॉन की कैटेगरी में रखा गया है. दूसरे शब्दों में समझें तो इन इलाकों में 400 से 500 फिट तक बोरिंग कराने पर ही पानी मिलता है. हैरत की बात यह है कि इनमें मुख्यमंत्री आवास का इलाका भी शामिल है. विभागीय सूत्रों का यकीन करें तो ड्राई जोन में कुछ ऐसे ही इलाके भी हैं, जहां 600 फीट से अधिक बोरिंग कराने पर पानी मिल पा रहा है. वीआईपी इलाका कांके रोड को छोड़ दें तो धुर्वा का एचईसी इलाका, इंडस्ट्रियल इलाका के नाम से फेमस तुपुदाना, रातू रोड, थरपखना और हरमू ऐसे इलाके हैं जिन्हें ड्राइ जोन की श्रेणी में रखा गया है.


आम लोग हैं भगवान भरोसे
सूत्रों का यकीन करें तो मुख्यमंत्री आवास में आधा दर्जन से अधिक बोरिंग कराया जा चुका है. लगभग 2 एकड़ से अधिक एरिया में फैले मुख्यमंत्री आवास परिसर में उन बोरिंग के अलावा भी नया बोरिंग कराए जाने की जरूरत बताई गई है. उसी तरह राजभवन में भी 10 से अधिक बोरिंग काम कर रहे हैं. लंबे भौगोलिक इलाके में फैले राजभवन के लिए वह भी पर्याप्त नहीं माना जा रहा है. वहीं अगर अधिकारियों की बात करें तो सरकारी भवनों में एक से अधिक बोरिंग कराए गये है और ताकि उन्हें पानी की किल्लत न झेलना पड़े.


अन्य जिलों में भी है बुरी स्थिति
राजधानी रांची के अलावे सबसे ज्यादा समस्या जमशेदपुर और धनबाद जैसे शहरों में है. केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक गौतम कुमार राय की माने तो जिन इलाकों में आबादी का जोर ज्यादा है वहां भूगर्भ जल का दोहन सबसे अधिक हो रहा है. राय कहते हैं कि राजधानी रांची में हरमू में पहले वाटर लेवल 15 मीटर में था और अब वह 50 मीटर के नीचे चला गया है. उन्होंने कहा कि दरअसल शहरी इलाकों में गांव ग्राउंड वाटर पर ज्यादा निर्भरता हो रही है. उसकी वजह से उसका दोहन भी उसी अनुपात में हो रहा है. अब हालत यह है कि जल स्तर नीचे जा रहा है. उन्होंने कहा कि दरअसल भूगर्भ जलस्तर बचाए रखने का उपाय सही ढंग से नहीं किया जा रहा है. राजधानी रांची के अलावा पड़ोस के जिले लोहरदगा, गुमला, खूंटी और रामगढ़ में भी अब भूगर्भ जलस्तर गिर रहा है.


क्या कहते हैं पर्यावरणविद?
पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी करते हैं कि एक तो वैसे ही झारखंड में भूगर्भ जल बहुत अधिक मात्रा में नहीं है. दूसरी समस्या हो रही है कि लोग अंधाधुंध भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं, जबकि उसके रिचार्ज पर किसी का ध्यान नहीं है. प्रियदर्शी कहते हैं कि सतही जल प्रदूषित हो गया है और भूमिगत जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है. ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में समस्या गंभीर रूप लेने वाली है. उन्होंने कहा कि वाटर रिचार्ज को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है. सड़क के पक्कीकरण की वजह से 60% पानी बह जाता है, जबकि 40% पानी लोकल रिचार्ज के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली छोटी नदियों में जाता है. वहां भी अब अतिक्रमण होता जा रहा है.


क्या हो सकता है उपाय?
प्रियदर्शी कहते हैं कि इसका सबसे सीधा उपाय वाटर रिचार्ज साइकिल को मेंटेन करना है. उन्होंने कहा इसके लिए पहले तो पेड़ लगाने होंगे दूसरी तरफ हर घर में खुले आंगन का कंसेप्ट विकसित करना होगा ताकि पानी जमीन के अंदर जा सके. उन्होंने कहा कि चूंकि नाली भी अब कंक्रीट की बन रही है तो एक तरफ सड़कों से पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है वहीं नालियों का पानी भी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है. ऐसे में वाटर रिचार्ज संभव नहीं हो पा रहा.

रांची: गर्मी में पानी की समस्या आम हो जाती है, लेकिन झारखंड में यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि प्रदेश में भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और वाटर रिचार्ज के लिए ठोस उपाय नहीं किया जा रहा है.

जानकारी देते विशेषज्ञ


राजधानी रांची की बात करें तो आधे दर्जन से अधिक इलाके ऐसे हैं जिन्हें ड्राई जॉन की कैटेगरी में रखा गया है. दूसरे शब्दों में समझें तो इन इलाकों में 400 से 500 फिट तक बोरिंग कराने पर ही पानी मिलता है. हैरत की बात यह है कि इनमें मुख्यमंत्री आवास का इलाका भी शामिल है. विभागीय सूत्रों का यकीन करें तो ड्राई जोन में कुछ ऐसे ही इलाके भी हैं, जहां 600 फीट से अधिक बोरिंग कराने पर पानी मिल पा रहा है. वीआईपी इलाका कांके रोड को छोड़ दें तो धुर्वा का एचईसी इलाका, इंडस्ट्रियल इलाका के नाम से फेमस तुपुदाना, रातू रोड, थरपखना और हरमू ऐसे इलाके हैं जिन्हें ड्राइ जोन की श्रेणी में रखा गया है.


आम लोग हैं भगवान भरोसे
सूत्रों का यकीन करें तो मुख्यमंत्री आवास में आधा दर्जन से अधिक बोरिंग कराया जा चुका है. लगभग 2 एकड़ से अधिक एरिया में फैले मुख्यमंत्री आवास परिसर में उन बोरिंग के अलावा भी नया बोरिंग कराए जाने की जरूरत बताई गई है. उसी तरह राजभवन में भी 10 से अधिक बोरिंग काम कर रहे हैं. लंबे भौगोलिक इलाके में फैले राजभवन के लिए वह भी पर्याप्त नहीं माना जा रहा है. वहीं अगर अधिकारियों की बात करें तो सरकारी भवनों में एक से अधिक बोरिंग कराए गये है और ताकि उन्हें पानी की किल्लत न झेलना पड़े.


अन्य जिलों में भी है बुरी स्थिति
राजधानी रांची के अलावे सबसे ज्यादा समस्या जमशेदपुर और धनबाद जैसे शहरों में है. केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक गौतम कुमार राय की माने तो जिन इलाकों में आबादी का जोर ज्यादा है वहां भूगर्भ जल का दोहन सबसे अधिक हो रहा है. राय कहते हैं कि राजधानी रांची में हरमू में पहले वाटर लेवल 15 मीटर में था और अब वह 50 मीटर के नीचे चला गया है. उन्होंने कहा कि दरअसल शहरी इलाकों में गांव ग्राउंड वाटर पर ज्यादा निर्भरता हो रही है. उसकी वजह से उसका दोहन भी उसी अनुपात में हो रहा है. अब हालत यह है कि जल स्तर नीचे जा रहा है. उन्होंने कहा कि दरअसल भूगर्भ जलस्तर बचाए रखने का उपाय सही ढंग से नहीं किया जा रहा है. राजधानी रांची के अलावा पड़ोस के जिले लोहरदगा, गुमला, खूंटी और रामगढ़ में भी अब भूगर्भ जलस्तर गिर रहा है.


क्या कहते हैं पर्यावरणविद?
पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी करते हैं कि एक तो वैसे ही झारखंड में भूगर्भ जल बहुत अधिक मात्रा में नहीं है. दूसरी समस्या हो रही है कि लोग अंधाधुंध भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं, जबकि उसके रिचार्ज पर किसी का ध्यान नहीं है. प्रियदर्शी कहते हैं कि सतही जल प्रदूषित हो गया है और भूमिगत जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है. ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में समस्या गंभीर रूप लेने वाली है. उन्होंने कहा कि वाटर रिचार्ज को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है. सड़क के पक्कीकरण की वजह से 60% पानी बह जाता है, जबकि 40% पानी लोकल रिचार्ज के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली छोटी नदियों में जाता है. वहां भी अब अतिक्रमण होता जा रहा है.


क्या हो सकता है उपाय?
प्रियदर्शी कहते हैं कि इसका सबसे सीधा उपाय वाटर रिचार्ज साइकिल को मेंटेन करना है. उन्होंने कहा इसके लिए पहले तो पेड़ लगाने होंगे दूसरी तरफ हर घर में खुले आंगन का कंसेप्ट विकसित करना होगा ताकि पानी जमीन के अंदर जा सके. उन्होंने कहा कि चूंकि नाली भी अब कंक्रीट की बन रही है तो एक तरफ सड़कों से पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है वहीं नालियों का पानी भी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है. ऐसे में वाटर रिचार्ज संभव नहीं हो पा रहा.

Intro:बाइट 1 गौतम कुमार राय, वैज्ञानिक, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड
बाइट 2 नीतीश प्रियदर्शी पर्यावरणविद
एक बाइट और विसुअल अलग से वाटस अप पर भेजा गया है


रांची। गर्मी की दस्तक देते हैं पानी की समस्या आम हो जाती है लेकिन झारखंड में यह विकराल रूप लेती जा रही है।इसकी सबसे बड़ी वजह है कि प्रदेश में भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और वाटर रिचार्ज के लिए ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। राजधानी रांची की बात करें तो आधे दर्जन से अधिक इलाके ऐसे हैं जिन्हें ड्राई जॉन की कैटेगरी में रखा गया है। दूसरे शब्दों में समझें तो इन इलाकों में 400 से 500 फिट तक बोरिंग कराने पर ही पानी मिलता है।

हैरत की बात यह है कि इनमें मुख्यमंत्री आवास का इलाका भी शामिल है। विभागीय सूत्रों की का यकीन करें तो ड्राई जोन में कुछ ऐसे ही इलाके भी हैं जहां 600 फीट से अधिक बोरिंग कराने पर पानी मिल पा रहा है। वीआईपी इलाका कांके रोड को छोड़ दें तो ध्रुवा का एचईसी इलाका, इंडस्ट्रियल इलाका के नाम से फेमस तुपुदाना, रातू रोड, थरपखना और हरमू ऐसे इलाके हैं जिन्हें ड्राइ ज़ोन की श्रेणी में रखा गया है।


Body:वहीं राजधानी के अन्य इलाकों की बात करें तो महात्मा गांधी रोड और डोरंडा कुछ ऐसे इलाके हैं जहां अभी भी जलस्तर ज्यादा नीचे नहीं गया है।

बोरिंग करा रहे हैं वीआईपी आम लोग हैं भगवान भरोसे
सूत्रों का यकीन करें तो मुख्यमंत्री आवास में आधा दर्जन से अधिक बोरिंग कराया जा चुका है। लगभग 2 एकड़ से अधिक एरिया में फैले मुख्यमंत्री आवास परिसर में उन बोरिंग के अलावा भी नया बोरिंग कराए जाने की जरूरत बताई गई है। उसी तरह राजभवन में भी 10 से अधिक बोरिंग काम कर रहे हैं।लंबे भौगोलिक इलाके में फैले राजभवन के लिए वह भी पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। वहीं अगर अधिकारियों की बात करें तो सरकारी भवनों में एक से अधिक बोरिंग कराए गये है और ताकि उन्हें पानी की किल्लत न झेलना पड़े।


Conclusion:रांची के अलावा अन्य जिलों में भी है बुरी स्थिति
राजधानी रांची के अलावे सबसे ज्यादा समस्या जमशेदपुर और धनबाद जैसे शहरों में है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक गौतम कुमार राय की माने तो जिन इलाकों में आबादी का जोर ज्यादा है वहां भूगर्भ जल का दोहन सबसे अधिक हो रहा है। राय कहते हैं कि राजधानी रांची में हरमू में पहले वाटर लेवल 15 मीटर में था और अब वह 50 मीटर के नीचे चला गया है। उन्होंने कहा कि दरअसल शहरी इलाकों में गांव ग्राउंड वाटर पर ज्यादा निर्भरता हो रही है। उसकी वजह से उसका दोहन भी उसी अनुपात में हो रहा है। अब हालत यह है कि जल स्तर नीचे जा रहा है। उन्होंने कहा कि दरअसल भूगर्भ जलस्तर बचाए रखने का उपाय सही ढंग से नहीं किया जा रहा है। राजधानी रांची के अलावा पड़ोस के जिले लोहरदगा, गुमला, खूंटी और रामगढ़ में भी अब भूगर्भ जलस्तर गिर रहा है।

क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी करते हैं कि एक तो वैसे ही झारखंड में भूगर्भ जल बहुत अधिक मात्रा में नहीं है। दूसरी समस्या हो रही है कि लोग अंधाधुंध भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं। जबकि उसके रिचार्ज पर किसी का ध्यान नहीं है। प्रियदर्शी कहते हैं कि सतही जल प्रदूषित हो गया है और भूमिगत जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में समस्या गंभीर रूप लेने वाली है। उन्होंने कहा कि वाटर रिचार्ज को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है। सड़क के पक्कीकरण की वजह से 60% पानी बह जाता है जबकि 40% पानी लोकल रिचार्ज के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली छोटी नदियों में जाता है। लेकिन वहां भी अब अतिक्रमण होता जा रहा है।

क्या हो सकता है उपाय
प्रियदर्शी कहते हैं कि इसका सबसे सीधा उपाय वाटर रिचार्ज साइकिल को मेंटेन करना है। उन्होंने कहा इसके लिए पहले तो पेड़ लगाने होंगे दूसरी तरफ हर घर में खुले आंगन का कंसेप्ट विकसित करना होगा ताकि पानी जमीन के अंदर जा सके। उन्होंने कहा कि चूंकि नाली भी अब कंक्रीट की बन रही है तो एक तरफ सड़कों से पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है वहीं नालियों का पानी भी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है। ऐसे में वाटर रिचार्ज संभव नहीं हो पा रहा।
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