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हिमाचल में तेंदुए क्यों हो रहे नरभक्षी? रेडियो कॉलर के जरिए वन्य प्राणी विंग करेगा अध्ययन

हिमाचल प्रदेश के वन विभाग का वन्य प्राणी विंग भी ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतित है. अब वन विभाग ने रेडियो कॉलर के जरिए तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करने का मैगा प्लान बनाया है. विभिन्न इलाकों में तेंदुए के कान में रेडियो कॉलर लगाया जाएगा. इससे उनकी गतिविधियों, जंगल में विचरण करने के तरीके, जंगल में वातावरण के साथ जुड़ाव, इंसानी बस्तियों में आने की प्रवृत्ति और आदमखोर स्वभाव विकसित होने के कारणों का पता चल सकेगा.

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Published : Sep 24, 2021, 4:02 AM IST

हिमाचल में तेंदुए
हिमाचल में तेंदुए

शिमला: हिमाचल प्रदेश में वन्य प्राणी इंसानी बस्तियों की तरफ आ रहे हैं. हाल ही में शिमला में टूटीकंडी बस स्टैंड के पास रात के समय तेंदुए ने आठ साल की बच्ची को उठा लिया था. सुबह बच्ची का अधखाया शरीर जंगल में मिला. आलम यह है कि शिमला में अलग-अलग उपनगरों में तेंदुओं की आमद देखी गई है.

हिमाचल प्रदेश के वन विभाग का वन्य प्राणी विंग भी ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतित है. अब वन विभाग ने रेडियो कॉलर के जरिए तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करने का मैगा प्लान बनाया है. विभिन्न इलाकों में तेंदुए के कान में रेडियो कॉलर लगाया जाएगा. इससे उनकी गतिविधियों, जंगल में विचरण करने के तरीके, जंगल में वातावरण के साथ जुड़ाव, इंसानी बस्तियों में आने की प्रवृत्ति और आदमखोर स्वभाव विकसित होने के कारणों का पता चल सकेगा.

पिछले डेढ़ दशक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हिमाचल में तेंदुओं ने 42 लोगों की जान ले ली है. इसके अलावा इनके हमलों में 400 के करीब लोग घायल हुए हैं. सैंकड़ों मवेशियों को भी तेंदुओं ने अपना शिकार बनाया है. ऐसा माना जाता है कि जंगल में तेंदुओं की स्वतंत्र विचरण करने की सहज स्थियां अब नहीं रही हैं. इस कारण वे बस्तियों की तरफ आ रहे हैं.

शिमला में तो तेंदुओं की मूवमेंट सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हुई है. शहर के संजौली इलाके से तेंदुआ पालतू कुत्ते को उठाकर ले गया था. समरहिल, फागली, मल्याणा व अन्य उपनगरों में भी तेंदुए की मूवमेंट नोटिस की जा चुकी है. वन विभाग के वन्य प्राणी विंग ने इनके स्वभाव का अध्यय करने के लिए योजना तैयार की है. डीएफओ वाइड लाइफ एनपीएस धौल्टा ने कहा कि परीक्षण के तौर पर वन विभाग ने शिमला के उपनगर भराड़ी के समीप एक तेंदुए को रेडियो कॉलर लगाया था.

एक साल की अवधि तक तेंदुए की गतिविधियों का अध्ययन किया गया. उसके स्वभाव, खानपान और जंगल में विचरण को आंका गया. रेडियो कॉलर से पता चला कि कई बार इस तेंदुए को भराड़ी में मानव बस्ती के आसपास भी देखा गया.

वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता के अनुसार वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के अलावा हिम तेंदुओं के स्वभाव का भी अध्ययन करेगा. जहां तक सवाल तेंदुओं के नरभक्षी होने का है तो रेडियो कॉलर के जरिए होने वाले अध्ययन से उनके स्वभाव और आदतों में परिवर्तन का पता चल सकेगा. यह एक बहुत महत्वपूर्ण अध्ययन साबित होगा.

रेडियो कॉलर लगाए जाने के बाद तेंदुए की हर गतिविधि कैमरे में रिकॉर्ड होगी. इससे उनके जंगलों में विचरण की शैली और जंगलों के कटान से उपजी स्थितियों से उनके स्वभाव पर पड़े असर की जानकारी ली जाएगी. तेंदुओं क्यों बस्तियों की तरफ आ रहे हैं और क्यों नरभक्षी हो रहे हैं, इसका भी अध्ययन किया जाएगा.

रेडियो कॉलर के जरिए उनके स्वभाव का अध्ययन होगा तो वहीं जिन इलाकों में तेंदुओं ने लोगों को अपना शिकार बनाया है, वहां के निवासियों से उनके हमले के तरीकों की जानकारी ली जाएगी. हिमाचल प्रदेश वन विभाग का वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करने के लिए टीमें गठित करेगा.

पढ़े- जानिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के तीसरे प्रवेश द्वार का इतिहास

पूर्व आईएफएस ऑफिसर डॉ. केएस तंवर के अनुसार पिछले एक दशक में वनीकरण का पैटर्न भी बदला है. अब वनों में विभिन्न प्रजातियों के फलदार पौधे भी नहीं लगते. अलग-अलग वन्य प्राणियों की संख्या में भी बदलाव आया है. शिकारियों की जंगलों में मौजूदगी से भी वन्य प्राणियों की सहज जीवनचर्या पर असर पड़ा है.

रेडियो कॉलर लगाने के बाद तीन महीने बाद उसमें कैद हुई गतिविधियों का अध्ययन किया जाएगा. प्रदेश के सभी जिलों में तेंदुओं के हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं. यह देखा जाएगा कि तेंदुए जानवरों को शिकार बनाने की बजाय इंसानों पर हमला क्यों कर रहे हैं? हमलों का पैटर्न क्या है, दिन के समय अधिक हमले होते हैं या रात के समय, ऐसे-ऐसे सभी सवालों के जवाब पानी की कोशिश की जाएगी.

वन्य प्राणी विंग की इस कवायद के संदर्भ में हिमाचल की एक घटना का जिक्र जरूरी है.पांच साल पहल दिसंबर महीने में बिलासपुर के पट्टा गांव में आदमखोर तेंदुए को शार्प शूटर ने मार गिराया था. यह आदम खोर तेंदुआ सात साल का था और इसका वजन 70 किलो से अधिक था. हिमाचल के वन्य प्राणी इतिहास में ये अबतक के सबसे भारी भरकम तेंदुओं मेंसे एक था.

15 शार्प शूटर 27 दिन तक इस तेंदुए को मारने के लिए घूमते रहे थे. आदमखोर तेंदुए की लोकेशन पता करने को 2 कैमरे लगाए गए थे और तीन पिंजरे उसे ट्रैप करने के लिए रखे गए थे, लेकिन यह तेंदुआ पकड़ में नहीं आया आखिरकार 27 दिन के बाद यह तेंदुआ मारा गया. वर्ष 2015 में 26 मई को रामपुर में तेंदुए के हमले में एक बच्चा घायल हो गया था.

इसी साल तेंदुओं ने प्रदेश भर में कई लोगों को घायल किया था. वहीं मार्च 2017 में कांगड़ा जिला के गोपालपुर चिड़ियाघर से तीन तेंदुए निकल भागे थे. किसी ने पिंजरों को काट दिया था और तेंदुए उसमें से निकल भागे थे. अब वन्य प्राणी विंग नए सिरे से तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करेगा. वन विभाग की प्रमुख डॉ. सविता का कहना है कि ऐसे अध्ययन वन्य प्राणी संसार के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में वन्य प्राणी इंसानी बस्तियों की तरफ आ रहे हैं. हाल ही में शिमला में टूटीकंडी बस स्टैंड के पास रात के समय तेंदुए ने आठ साल की बच्ची को उठा लिया था. सुबह बच्ची का अधखाया शरीर जंगल में मिला. आलम यह है कि शिमला में अलग-अलग उपनगरों में तेंदुओं की आमद देखी गई है.

हिमाचल प्रदेश के वन विभाग का वन्य प्राणी विंग भी ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतित है. अब वन विभाग ने रेडियो कॉलर के जरिए तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करने का मैगा प्लान बनाया है. विभिन्न इलाकों में तेंदुए के कान में रेडियो कॉलर लगाया जाएगा. इससे उनकी गतिविधियों, जंगल में विचरण करने के तरीके, जंगल में वातावरण के साथ जुड़ाव, इंसानी बस्तियों में आने की प्रवृत्ति और आदमखोर स्वभाव विकसित होने के कारणों का पता चल सकेगा.

पिछले डेढ़ दशक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हिमाचल में तेंदुओं ने 42 लोगों की जान ले ली है. इसके अलावा इनके हमलों में 400 के करीब लोग घायल हुए हैं. सैंकड़ों मवेशियों को भी तेंदुओं ने अपना शिकार बनाया है. ऐसा माना जाता है कि जंगल में तेंदुओं की स्वतंत्र विचरण करने की सहज स्थियां अब नहीं रही हैं. इस कारण वे बस्तियों की तरफ आ रहे हैं.

शिमला में तो तेंदुओं की मूवमेंट सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हुई है. शहर के संजौली इलाके से तेंदुआ पालतू कुत्ते को उठाकर ले गया था. समरहिल, फागली, मल्याणा व अन्य उपनगरों में भी तेंदुए की मूवमेंट नोटिस की जा चुकी है. वन विभाग के वन्य प्राणी विंग ने इनके स्वभाव का अध्यय करने के लिए योजना तैयार की है. डीएफओ वाइड लाइफ एनपीएस धौल्टा ने कहा कि परीक्षण के तौर पर वन विभाग ने शिमला के उपनगर भराड़ी के समीप एक तेंदुए को रेडियो कॉलर लगाया था.

एक साल की अवधि तक तेंदुए की गतिविधियों का अध्ययन किया गया. उसके स्वभाव, खानपान और जंगल में विचरण को आंका गया. रेडियो कॉलर से पता चला कि कई बार इस तेंदुए को भराड़ी में मानव बस्ती के आसपास भी देखा गया.

वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता के अनुसार वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के अलावा हिम तेंदुओं के स्वभाव का भी अध्ययन करेगा. जहां तक सवाल तेंदुओं के नरभक्षी होने का है तो रेडियो कॉलर के जरिए होने वाले अध्ययन से उनके स्वभाव और आदतों में परिवर्तन का पता चल सकेगा. यह एक बहुत महत्वपूर्ण अध्ययन साबित होगा.

रेडियो कॉलर लगाए जाने के बाद तेंदुए की हर गतिविधि कैमरे में रिकॉर्ड होगी. इससे उनके जंगलों में विचरण की शैली और जंगलों के कटान से उपजी स्थितियों से उनके स्वभाव पर पड़े असर की जानकारी ली जाएगी. तेंदुओं क्यों बस्तियों की तरफ आ रहे हैं और क्यों नरभक्षी हो रहे हैं, इसका भी अध्ययन किया जाएगा.

रेडियो कॉलर के जरिए उनके स्वभाव का अध्ययन होगा तो वहीं जिन इलाकों में तेंदुओं ने लोगों को अपना शिकार बनाया है, वहां के निवासियों से उनके हमले के तरीकों की जानकारी ली जाएगी. हिमाचल प्रदेश वन विभाग का वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करने के लिए टीमें गठित करेगा.

पढ़े- जानिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के तीसरे प्रवेश द्वार का इतिहास

पूर्व आईएफएस ऑफिसर डॉ. केएस तंवर के अनुसार पिछले एक दशक में वनीकरण का पैटर्न भी बदला है. अब वनों में विभिन्न प्रजातियों के फलदार पौधे भी नहीं लगते. अलग-अलग वन्य प्राणियों की संख्या में भी बदलाव आया है. शिकारियों की जंगलों में मौजूदगी से भी वन्य प्राणियों की सहज जीवनचर्या पर असर पड़ा है.

रेडियो कॉलर लगाने के बाद तीन महीने बाद उसमें कैद हुई गतिविधियों का अध्ययन किया जाएगा. प्रदेश के सभी जिलों में तेंदुओं के हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं. यह देखा जाएगा कि तेंदुए जानवरों को शिकार बनाने की बजाय इंसानों पर हमला क्यों कर रहे हैं? हमलों का पैटर्न क्या है, दिन के समय अधिक हमले होते हैं या रात के समय, ऐसे-ऐसे सभी सवालों के जवाब पानी की कोशिश की जाएगी.

वन्य प्राणी विंग की इस कवायद के संदर्भ में हिमाचल की एक घटना का जिक्र जरूरी है.पांच साल पहल दिसंबर महीने में बिलासपुर के पट्टा गांव में आदमखोर तेंदुए को शार्प शूटर ने मार गिराया था. यह आदम खोर तेंदुआ सात साल का था और इसका वजन 70 किलो से अधिक था. हिमाचल के वन्य प्राणी इतिहास में ये अबतक के सबसे भारी भरकम तेंदुओं मेंसे एक था.

15 शार्प शूटर 27 दिन तक इस तेंदुए को मारने के लिए घूमते रहे थे. आदमखोर तेंदुए की लोकेशन पता करने को 2 कैमरे लगाए गए थे और तीन पिंजरे उसे ट्रैप करने के लिए रखे गए थे, लेकिन यह तेंदुआ पकड़ में नहीं आया आखिरकार 27 दिन के बाद यह तेंदुआ मारा गया. वर्ष 2015 में 26 मई को रामपुर में तेंदुए के हमले में एक बच्चा घायल हो गया था.

इसी साल तेंदुओं ने प्रदेश भर में कई लोगों को घायल किया था. वहीं मार्च 2017 में कांगड़ा जिला के गोपालपुर चिड़ियाघर से तीन तेंदुए निकल भागे थे. किसी ने पिंजरों को काट दिया था और तेंदुए उसमें से निकल भागे थे. अब वन्य प्राणी विंग नए सिरे से तेंदुओं के स्वभाव का अध्ययन करेगा. वन विभाग की प्रमुख डॉ. सविता का कहना है कि ऐसे अध्ययन वन्य प्राणी संसार के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं.

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