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इंदिरा के जमाने से जारी है जेल से फोन पर हॉर्स ट्रेडिंग, डालें एक नजर

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Published : Nov 27, 2020, 11:16 AM IST

Updated : Nov 28, 2020, 3:01 AM IST

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने लालू यादव को घेरा है. उन्होंने आरोप लगाया है कि जेल में बंद लालू बिहार की राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं. सुशील मोदी ने लालू पर कैद में रहने के बावजूद फोन का प्रयोग करने जैसा गंभीर आरोप भी लगाया. ऐसे में जानना दिलचस्प है कि ऐसी कौन सी घटनाएं हैं, जिनमें राजनीतिक लोगों पर जेल के भीतर से फोन का प्रयोग करने के आरोप लगे हैं. पढ़ें विशेष रिपोर्ट

poll conspiracy from jail
नया नहीं है जेल से फोन पर हॉर्स ट्रेडिंग का मामला

हैदराबाद: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और भारतीय जनता पार्टी नेता सुशील मोदी ने राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाया है. मोदी ने कहा कि लालू ने उनको जेल से फोन किया और राज्य की नवगठित एनडीए सरकार को गिराने की कोशिश की.

इसके साथ ही उन्होंने लालू यादव का एक ऑडियो भी जारी किया है. जिसमें लालू कथित रूप से बिहार के एक विधायक से फोन पर बात कर रहे हैं. इस ऑडियो में लालू कथित रूप से विधायक से बिहार विधानसभा स्पीकर के चुनाव में समर्थन मांग रहे हैं और इसके बदले में लालू ने विधायक को मंत्री पद देने की कथित पेशकश भी की है.

हालांकि, जेल में कैदी द्वारा फोन का प्रयोग और राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग का यह मामला कोई नया नहीं है. इससे पहले भी कई नेताओं और विधायकों पर ऐसे आरोप लग चुके हैं. कई मामलों में विधायकों को अपनी जान तक भी गंवानी पड़ी है.

आइए, डालते हैं ऐसे कई मामलों पर नजर...

1. 24 अक्टूबर 2020 को जनता दल राष्ट्रवादी पार्टी के नेता नारायण सिंह की शिवहार जिले में एक चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी. वहीं, 48 घंटे के अंदर ही पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा भी कर दिया था. इस हत्याकांड के बारे में पता चला कि नारायण सिंह की हत्या की साजिश दिल्ली के तिहाड़ जेल में रची गई थी. केस के खुलासे में यह बात सामने आई कि नारायण सिंह की हत्या की साजिश विकास कालिया ने रची थी. बता दें कि इस नरसंहार में तीन लोगों की भी मौत हुई थी. जिसमें नारायण सिंह, उनका समर्थक और एक अपराधी भी शामिल था.

2. 16 सितंबर 2020 को राजस्थान सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने एक मुकदमा दर्ज किया था. इस मुकदमे में बताया गया था कि भारतीय जनता पार्टी संजय जैन के माध्यम से राजस्थान की गहलोत सरकार को गिराने की साजिश कर रही है. बाद में संजय जैन को सरकार गिराने के आरोप में जेल हुई थी, लेकिन फिर उसको जमानत मिल गई थी. राजस्थान हाईकोर्ट ने संजय जैन को जमानत पर रिहा करने के ऑर्डर दिए थे, इसके साथ ही सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच ऑडियो टेप का मामला भी प्रकाश में आया था.

3. उत्तर प्रदेश के पूर्व सपा विधायक अमरमणि त्रिपाठी का भी नाम इस लिस्ट में शामिल है. 29 अप्रैल 2007 को पूर्व सपा मंत्री और मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के आरोप में देहरादून जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी ने जेल से एक चुनावी सभा को संबोधित किया था. इस तरह उन्होंने भी एक विवाद को जन्म दिया था.

पढ़ें: 'लालू यादव ने जेल से किया NDA विधायकों को फोन, दिया मंत्री बनाने का प्रलोभन'

इंदिरा गांधी के समय में भी होता था

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के संस्थापक सदस्य और भारतीय व्यापार संघ आंदोलन के पुरोधा श्रीपद अमृत डांगे (10 अक्टूबर 1899- 22 मई 1191) को कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहले जेल भेजा और उसके बाद उनको 13 साल की सजा भी सुनाई. बाद में खुलासा हुआ कि डांगे ने अपनी रिहाई के बदले ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर खुफिया जानकारी देने का वादा किया था.

जो जानकारी मिली थी उसके मुताबिक अक्टूबर 1964 में डांगे के इन पत्रों की वजह से ही पार्टी में बंटवारा भी हो गया था. जिसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अस्तित्व में आई थी. पार्टी में बंटवारे के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और डांगे काफी मजबूत हुए. 1978 तक डांगे पार्टी के अध्यक्ष बने रहे, लेकिन पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस और इंदिरा गांधी को समर्थन देने के चलते उन्हें पद से हटा दिया. इसके बाद 1981 में उन्हें पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया था.

पार्टी से निष्कासन के बाद वे अखिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (AICP) और बाद में यूनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया में शामिल हो गए. अंत में यहां पर भी उनको भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में हाशिए पर डाल दिया गया. बता दें, वे एक प्रसिद्ध लेखक और समाजवादी के संस्थापक थे. डांगे ने महाराष्ट्र राज्य के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

हैदराबाद: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और भारतीय जनता पार्टी नेता सुशील मोदी ने राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाया है. मोदी ने कहा कि लालू ने उनको जेल से फोन किया और राज्य की नवगठित एनडीए सरकार को गिराने की कोशिश की.

इसके साथ ही उन्होंने लालू यादव का एक ऑडियो भी जारी किया है. जिसमें लालू कथित रूप से बिहार के एक विधायक से फोन पर बात कर रहे हैं. इस ऑडियो में लालू कथित रूप से विधायक से बिहार विधानसभा स्पीकर के चुनाव में समर्थन मांग रहे हैं और इसके बदले में लालू ने विधायक को मंत्री पद देने की कथित पेशकश भी की है.

हालांकि, जेल में कैदी द्वारा फोन का प्रयोग और राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग का यह मामला कोई नया नहीं है. इससे पहले भी कई नेताओं और विधायकों पर ऐसे आरोप लग चुके हैं. कई मामलों में विधायकों को अपनी जान तक भी गंवानी पड़ी है.

आइए, डालते हैं ऐसे कई मामलों पर नजर...

1. 24 अक्टूबर 2020 को जनता दल राष्ट्रवादी पार्टी के नेता नारायण सिंह की शिवहार जिले में एक चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी. वहीं, 48 घंटे के अंदर ही पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा भी कर दिया था. इस हत्याकांड के बारे में पता चला कि नारायण सिंह की हत्या की साजिश दिल्ली के तिहाड़ जेल में रची गई थी. केस के खुलासे में यह बात सामने आई कि नारायण सिंह की हत्या की साजिश विकास कालिया ने रची थी. बता दें कि इस नरसंहार में तीन लोगों की भी मौत हुई थी. जिसमें नारायण सिंह, उनका समर्थक और एक अपराधी भी शामिल था.

2. 16 सितंबर 2020 को राजस्थान सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने एक मुकदमा दर्ज किया था. इस मुकदमे में बताया गया था कि भारतीय जनता पार्टी संजय जैन के माध्यम से राजस्थान की गहलोत सरकार को गिराने की साजिश कर रही है. बाद में संजय जैन को सरकार गिराने के आरोप में जेल हुई थी, लेकिन फिर उसको जमानत मिल गई थी. राजस्थान हाईकोर्ट ने संजय जैन को जमानत पर रिहा करने के ऑर्डर दिए थे, इसके साथ ही सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच ऑडियो टेप का मामला भी प्रकाश में आया था.

3. उत्तर प्रदेश के पूर्व सपा विधायक अमरमणि त्रिपाठी का भी नाम इस लिस्ट में शामिल है. 29 अप्रैल 2007 को पूर्व सपा मंत्री और मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के आरोप में देहरादून जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी ने जेल से एक चुनावी सभा को संबोधित किया था. इस तरह उन्होंने भी एक विवाद को जन्म दिया था.

पढ़ें: 'लालू यादव ने जेल से किया NDA विधायकों को फोन, दिया मंत्री बनाने का प्रलोभन'

इंदिरा गांधी के समय में भी होता था

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के संस्थापक सदस्य और भारतीय व्यापार संघ आंदोलन के पुरोधा श्रीपद अमृत डांगे (10 अक्टूबर 1899- 22 मई 1191) को कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहले जेल भेजा और उसके बाद उनको 13 साल की सजा भी सुनाई. बाद में खुलासा हुआ कि डांगे ने अपनी रिहाई के बदले ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर खुफिया जानकारी देने का वादा किया था.

जो जानकारी मिली थी उसके मुताबिक अक्टूबर 1964 में डांगे के इन पत्रों की वजह से ही पार्टी में बंटवारा भी हो गया था. जिसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अस्तित्व में आई थी. पार्टी में बंटवारे के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और डांगे काफी मजबूत हुए. 1978 तक डांगे पार्टी के अध्यक्ष बने रहे, लेकिन पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस और इंदिरा गांधी को समर्थन देने के चलते उन्हें पद से हटा दिया. इसके बाद 1981 में उन्हें पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया था.

पार्टी से निष्कासन के बाद वे अखिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (AICP) और बाद में यूनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया में शामिल हो गए. अंत में यहां पर भी उनको भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में हाशिए पर डाल दिया गया. बता दें, वे एक प्रसिद्ध लेखक और समाजवादी के संस्थापक थे. डांगे ने महाराष्ट्र राज्य के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

Last Updated : Nov 28, 2020, 3:01 AM IST
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