शिमला : हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जानते हैं. इस साल यह तिथि 16 अक्टूबर, शनिवार को पड़ रही है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापरुपी हाथी को व्रत के पुण्यरुपी अंकुश से भेदने के कारण इस तिथि का नाम पांपाकुशा एकादशी पड़ा. इस दिन मौन रहकर भगवान विष्णु की अराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधिवत पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहते हैं कि इसमें में भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है. इतना ही नहीं, जो भी इस व्रत को करता है उसे तप के समान फल की प्राप्ति होती है.
सालभर में आने वाली सभी एकादशी का अपना अलग महत्व होता है. अश्विन की पापांकुशा एकादशी व्रत का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से यमलोक में यातनाएं नहीं सहनी पड़ती. कहते हैं कि जीवन में किए गए सभी पापों से एक बार में ही मुक्ति पाने के लिए ये व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत से एक दिन पहले दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन भूलकर भी न करें. कहते हैं इस व्रत के प्रभाव से व्रती, बैकुंठ धाम प्राप्त करता है.
पापांकुशा एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को शाम 06 बजकर 02 मिनट से प्रारंभ हो जाएगी, जो कि शनिवार, 16 अक्टूबर की शाम 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगी. व्रत का पारण 17 अक्टूबर, रविवार को द्वादशी तिथि को किया जाएगा. व्रत पारण का सुबह मुहूर्त 17 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से सुबह 8 बजकर 40 मिनट तक होगा.
पापांकुशा एकादशी का महत्व
इस एकादशी का महत्त्व खुद भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था. इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है. इस एकादशी को पापांकुशा क्यों कहते हैं इसके लिए भी एक कथा प्रचलित है जिसका सार यह है कि पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा है.पापांकुशा एकादशी के दिन मौन रहकर भगवद गीता का स्मरण किया जाता है. साथ ही भोजन का भी विधान है. अगर इस दिन भगवान की सच्चे मन से पूजा-अर्चना की जाए तो इससे व्यक्ति का मन शुद्ध हो जाता है. यह व्रत करने से व्यक्ति अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है. मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से माता, पिता और मित्र की पीढ़ियों को भी मुक्ति प्राप्त होती है. अगर इस दिन उपवास किया जाए तो यह बेहद उत्तम होता है.
इस दिन शाम को सात्विक भोजन किया जाता है. इस दिन चावल का सेवन न करें. रात के दौरान पूजा कर व्रत खोलने का विशेष महत्व होता है. कोशिश करें कि व्रत वाले दिन किसी भी व्यक्ति पर क्रोध न करें.
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विध्यांचल पर्वत पर एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना रहा करता था. उसने अपने पूरे जीवन में सिर्फ दुष्टता से भरे कार्य किए थे. उसके जीवन के अंतिम दिनों में यमराज ने अपने एक दूत को उसे लेने के लिए भेजा. क्रोधना मौत से बहुत डरता था. वह अंगारा नाम के ऋषि के पास जाता है और उनसे मदद की गुहार लगाता है. इस पर ऋषि उसे पापांकुशा एकादशी के बारे में बताते हुए अश्विन माह की शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत रखने के लिए कहते हैं. क्रोध ना कर सच्ची निष्ठा, लगन और भक्ति भाव से पापांकुशा एकादशी का व्रत रखता है और श्री हरि विष्णु की आराधना करता है.
इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संचित पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मुक्ति मिल जाती है. इस बार अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत 16 अक्टूबर 2021 दिन शनिवार को किया जाएगा.
ब्राह्मण को दें दान
एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं, इसलिए दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. एकदाशी तिथि को प्रातः उठकर स्नानादि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें. कलश स्थापना करके उसके पास में आसन पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें. अब धूप-दीप और फल, फूल आदि से भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें. एकदाशी व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है. द्वादशी तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजन करें. अब सात्विक भोजन बनाकर किसी ब्राह्मण को करवाएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें.
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