नई दिल्ली : OBC List को लेकर राज्यों के अधिकार से संबंधित कानून में संशोधन किया जाना है. सरकार ने इस संबंध में लोक सभा में 127वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है. केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने विधेयक पेश किया. उन्होंने कहा कि सरकार राज्यों के अधिकारों के प्रति सजग है, ऐसे में यह एक महत्वपूर्ण संविधान संशोधन विधेयक है. साढ़े पांच घंटे से अधिक की मैराथन चर्चा के बाद अपने जवाब में केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राम मनोहर लोहिया, डॉ अंबेडकर, पेरियार और पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जिक्र किए जाने पर कहा कि दलों की विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन दिलों में सबके एक ही भावना होती है, कि समाज के वंचित तबके का कल्याण करना है. इसके बाद लोक सभा में 127वें संविधान संशोधन को लेकर मतविभाजन हो रहा है.
जातिगत जनगणना को लेकर वीरेंद्र कुमार ने कहा कि 2011 में जब जनगणना हुई थी तो सरकार किसकी थी. उन्होंने सवाल पूछा कि तत्कालीन सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन क्यों नहीं कराया.
केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कांग्रेस को जवाब देते हुए वीरेंद्र कुमार ने बताया कि जब 102वां संशोधन लाया गया था, तब कांग्रेस ने उसका समर्थन किया था. इसलिए अब कांग्रेस के पास सवाल उठाने का नैतिक अधिकार नहीं है. मराठा आरक्षण राज्य का विषय है और अब केंद्र ने उन्हें इस पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र कर दिया है.
इससे पहले केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने दोपहर करीब 12.10 बजे उस विधेयक को पेश किया जो राज्य को ओबीसी सूची पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है. उन्होंने ओबीसी के कल्याण पर केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए सूचीबद्ध कदमों के बारे में बताया.
अधिनियम में किए जा रहे संशोधनों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा, मेडिकल कॉलेजों में अब ओबीसी छात्रों के लिए करीब 4,000 और सीटें उपलब्ध होंगी. यह संशोधन ओबीसी की राज्य सूची के संबंध में राज्य सरकारों की शक्ति को बहाल करेगा.
इसके बाद कांग्रेस की ओर से अधीर रंजन चौधरी ने 127वें संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी बातें रखीं. उन्होंने कहा कि सरकार की इस पहल का वे स्वागत करते हैं, लेकिन इसके साथ ही कई अहम कानूनी प्रावधान करने की जरूरत है. उन्होंने आरक्षण में कांग्रेस के योगदान को याद किया साथ ही पंचायती राज अधिनियम को लागू करने में राजीव गांधी के योगदान की सराहना की.
इसी बीच पेगासस जासूसी मुद्दे पर कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इजरायल, फ्रांस, हंगरी हर जगह पेगासस पर जांच हो रही है, कहीं तो सरकार बदलने की नौबत आ चुकी है. लेकिन हमारे यहां छोटी सी चर्चा करने पर भी डर रहे हैं.
इस दौरान अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि 2018 में 102वां संविधान संशोधन लाया गया. आपने ओबीसी कमीशन बनाया लेकिन आपने राज्यों के अधिकारों का हनन किया. आप अपनी गलती सुधारने के लिए यह अधिनियम ला रहे हैं. यूपी, उत्तराखंड में चुनाव, इसलिए आप लोगों को खुश करने के लिए ये संशोधन लाए.
उन्होंने कहा, जनहित के लिए हम इस बिल का समर्थन करते हैं. हमारी मांग है कि 50 फीसदी की बाध्यता पर कुछ किया जाए. जैसे- तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण है. इसी तरह दूसरे राज्यों को भी ये ताकत दी जाए कि वो आरक्षण की व्यवस्था को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ा सकें.
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उन्होंने कहा, देश में आरक्षण के लिए जातिवाद जिम्मेदार है. इन वर्गों को ऐतिहासिक रूप से दबा दिया गया है और आरक्षण उनके उत्थान के लिए एक सकारात्मक कार्रवाई है.
इसके बाद बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य ने इस विषय पर कहा कि 2011 में कांग्रेस की सरकार थी, जनगणना हुई लेकिन ओबीसी की संख्या नहीं बताई गई. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि आजादी के बाद से कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन सरकार ने ओबीसी समाज को हक नहीं दिलाया.
संघमित्रा मौर्य ने कांग्रेस पर आरक्षण रद्द करने के लिए NEET लाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा, NEET एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर आधारित है और गरीब इस पाठ्यक्रम को नहीं पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि ओबीसी लोगों को केवल चुनाव के दौरान याद किया जाता है. अगर ओबीसी लिस्ट से जुड़े इस संशोधन पर मुहर लग जाती है तो हम सिर्फ चुनावों में याद नहीं किए जाएंगे.
DMK सांसद टी.आर बालू ने बिल का समर्थन किया और कहा कि आरक्षण में 50 फीसदी की बाध्यता भी खत्म होनी चाहिए.
टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा, बिल देश के संघीय ढांचे को बनाए रखने की दृष्टि से किया बनाया गया है पर आज उसकी आवाज दबाई जा रही है.
शिवसेना सांसद ने विनायक राउत ने मराठा आंदोलन को लेकर मराठी में अपनी बात रखी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में राज्य का समर्थन नहीं करने के लिए केंद्र सरकार पर हमला बोला, जिसके कारण मराठा आरक्षण को रोका गया.
इस दौरान मंत्री भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने काका कालेलकर आयोग को लागू नहीं किया था. कांग्रेस ने ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया. यह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी जिसने क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ा दी थी. मोदी सरकार ने संवैधानिक आयोग बनाया और पिछड़े समाज को अधिकार देने का काम किया.
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने 50 फीसदी की बाध्यता वाले मामले में कहा कि केंद्र सरकार अगर महाराष्ट्र सरकार के साथ खड़ी रहे तो ये समस्या भी दूर हो जाएगी. इसके अलावा सुप्रिया सुले ने ओबीसी के डेटा की मांग भी रखी.
सांसद रितेश पांडे ने कहा कि पहले आरक्षण ने पिछड़े और एससी-एसटी लोगों को बहुत मदद की है. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. रितेश पांडे ने कहा कि सरकार एक तरफ ओबीसी समुदाय के उत्थान का ढिंढोरा पीट रही है और दूसरी तरफ सरकारी नौकरियां कम की जा रही हैं. 97 फीसदी नौकरियां प्राइवेट सेक्टर में हैं और बची हुई 3 फीसदी नौकरियां भी संविदा पर दी जा रही हैं और वोट लेने के लिए बीजीपी सरकार ओबीसी समुदाय को गुमराह कर रही है.
सीपीएम सांसद ए.एम आरिफ ने बिल का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि अगर अगले साल यूपी में चुनाव न होते तो सरकार ये कदम न उठाती.
नेशनल कॉन्फ्रेंस सांसद हसनैन मसूदी ने कहा कि इस सरकार ने राज्यों के अधिकार छीन लिए और अब अपनी गलतियों को बिल लाकर सुधारना चाह रही है. उन्होंने कहा कि ऐसी ही नाइंसाफी 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को तोड़कर की गई थी. हसनैन मसूदी ने सवाल उठाया कि क्या आप सभी राज्यों के टुकड़े कर सकते हैं, अगर नहीं तो फिर जम्मू-कश्मीर के साथ ऐसा क्यों किया गया. शिकायतों और सवालों के बावजूद उन्होंने ओबीसी बिल का समर्थन किया.
डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि आप सारे अधिकार पीएम और गृहमंत्री के पास रखना चाहते हैं, इसलिए ऐसे हालात पैदा हुए हैं. उन्होंने ओबीसी बिल को चुनाव से जोड़ते हुए कहा, मैं उम्मीद करता हूं कि यूपी चुनाव हर साल हो, ताकि ज्यादा ओबीसी मंत्री बनाए जाएं.
इससे पहले सोमवार को लोकसभा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' पेश किया गया था. यह विधेयक राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes) की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने विधेयक पेश करने के बाद सोमवार को कहा था कि विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष का विरोध राजनीतिक है. उन्होंने विधेयक के संबंध में कहा कि विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार इसे लाने की मांग कर रहे हैं.