अहमदाबाद : राजस्थान के बाड़मेर में जन्मी शिल्पकार रूमा देवी भले ही आज चिर परिचित नाम हों, मगर उनका संघर्ष आसान नहीं रहा. भारत सरकार की नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित रूमा देवी ने बताया कि जब उन्होंने एम्ब्रॉयडरी शुरू की तो परिवार का सपोर्ट भी नहीं मिला. उन्होंने अपने परिवार से अलग कमरा लेकर काम शुरू किया. जब वह बाड़मेर में महिलाओं को साथ जोड़ने की प्रयास करती थी, तो लोग उन्हें अपने घरों में एंट्री नहीं देते थे. मगर उनकी मेहनत रंग लाई.
आज वह सफलता के नये आयाम जोड़ रही हैं. उनके एनजीओ ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के साथ करीब 30 हजार महिलाएं जुड़ी हैं. इसके अलावा उनकी टीम अब देश के अन्य राज्यों में भी महिलाओं को बेहतरीन शिल्प के जरिये लोकल प्रोडक्ट को क्वॉलिटी प्रॉडक्ट बनाने का गुर सिखा रही है.
उनकी सफलता की गूंज अमेरिका तक पहुंच चुकी है. रूमा देवी बताती हैं कि उन्हें अपनी शिल्प कला के बारे में बताने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट बुलाया गया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि रूमा देवी सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ी हैं और 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी.
रूमा देवी ने अपनी दादी से हस्तशिल्प सीखा. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दस महिलाओं के समूह के साथ की थी. इन महिलाओं ने चंदा इकट्ठा कर एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी थी. इनका हुनर देख ग्रामीण विकास में काम कर रहे एक सामाजिक संगठन ने उनकी मदद की.
उन्होंने पहली बार 2010 में दिल्ली में अपने कपड़ों का एग्जीबिशन लगाया. 2016 में राजस्थान हेरिटेज वीक में रूमा देवी ने कपड़ों का पहला फैशन शो आयोजित किया. इसके बाद तो उनका कारवां और बढ़ता गया. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने 2018 में उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से नवाजा. अब वह राजस्थान सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से राजीविका की ब्रांड एंबेसडर भी हैं.
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