रांची : झारखंड कांग्रेस के प्रभारी रहे आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए हैं. चर्चा है कि वह विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ लड़ेंगे. लेकिन उन्होंने जिस झारखंड में कांग्रेस को सत्ता दिलाई, उस झारखंड कांग्रेस की सियासत बिन आरपीएन कैसे चलेगी. इस मामले पर झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर से भी बार बार संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.
वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव भी इस मसले पर कुछ भी बोलने से बचते दिखे. एक बात तो स्पष्ट है कि कई ऐसे मौके आए हैं जब कांग्रेस के एक गुट ने सरकार और संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए विरोध के स्वर ऊंचे किए थे. ऐसे मौकों पर आरपीएन सिंह ही वो शख्स थे जिन्होंने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बिठाया था. जब भी वो रांची आते थे तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से व्यक्तिगत रूप से जरूर मिलते थे.
अब प्रदेश कांग्रेस में इस बात की चर्चा है कि आरपीएन सिंह की जगह कौन लेगा. अब सवाल है कि आरपीएन सिंह के करीबी माने जाने वाले प्रदीप यादव, बंधु तिर्की, इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला, ममता देवी, राजेश कच्छप और दीपिका पांडे सिंह का क्या स्टैंड होगा. आंकड़ों को देखें तो जेएमएम के 30, कांग्रेस के 16 + 2, आरजेडी के एक विधायक के समर्थन से सरकार चल रही है. इस लिहाज से सरकार में शामिल विधायकों की संख्या 49 है, जो मैजिक फिगर से 8 ज्यादा है.
इसके अलावा एनसीपी और भाकपा माले के एक-एक विधायक का सरकार को बाहर से समर्थन प्राप्त है. इस लिहाज से अगर आरपीएन सिंह के साथ नजर आए 6 से 8 विधायक कोई स्टैंड लेते भी हैं तो इसका सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
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झारखंड कांग्रेस में फिलहाल बड़े जनाधार वाले नेता एक्टिव नहीं दिख रहे हैं, रामेश्वर उरांव एक पूर्व अधिकारी रहे हैं. जब वह प्रदेश अध्यक्ष थे तब उनके कामकाज पर बहुत सवाल उठ रहे थे. कई नेता तो इतना तक कहते थे कि रामेश्वर उरांव पार्टी को कंपनी की तरह चला रहे हैं. कांग्रेस में बड़े बड़े नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया. जिसमें सुबोधकांत सहाय, प्रदीप बलमुचू का नाम अहम है.
भाजपा में शामिल होने से पहले आरपीएन सिंह ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम अपने इस्तीफे में लिखा है कि मैं तत्काल प्रभाव से पार्टी की सदस्यता छोड़ता हूं. आपने देश, नागरिकों और पार्टी की सेवा के लिए जो अवसर दिया, उसके लिए धन्यवाद. कांग्रेस आलाकमान ने आरपीएन सिंह को साल 2017 में पहली बार झारखंड का प्रभारी बनाया था. उनके मार्गदर्शन में ही पार्टी ने झामुमो और राजद के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इसका जबरदस्त फायदा भी मिला था. पार्टी को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी गठबंधन की सरकार में कांग्रेस के चार विधायक मंत्री बने. बाद के दिनों में आरपीएन सिंह की पहल पर ही जेवीएम के विधायक प्रदीप सिंह और बंधु तिर्की भी कांग्रेस में शामिल हुए. 2019 के शानदार रिजल्ट का ही परिणाम था कि आलाकमान ने आरपीएन सिंह को सितंबर 2020 में लगातार दूसरी बार प्रदेश प्रभारी का जिम्मा सौंपा.
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बता दें कि आरपीएन सिंह की पहल पर ही रामेश्वर उरांव की जगह राजेश ठाकुर की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी. हालांकि, झारखंड में सुबोकांत सहाय हर मोर्चे पर आरपीएन सिंह का विरोध करते रहे थे. पिछले दिनों उन्होंने ईटीवी भारत को दिए बयान में कहा था कि आरपीएन सिंह ने प्रदेश में पार्टी का बेड़ा गर्क कर रखा है. पता नहीं आलाकमान को यह सब क्यों नहीं दिख रहा है. अब सवाल है कि क्या आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद झारखंड की राजनीति खासकर प्रदेश कांग्रेस के संगठनात्मक स्वरूप पर कोई असर दिखेगा ? फिलहाल प्रदेश कांग्रेस का कोई भी नेता इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा है.
बता दें कि आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश में ओबीसी के एक बड़े चेहरे के रूप में देखे जाते हैं. पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान उनके कांग्रेस को छोड़ने के पीछे की वजह का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. आरपीएन सिंह 15 वीं लोकसभा में कुशीनगर के सांसद रह चुके हैं. वे देश के गृह राज्य मंत्री की भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 16वीं लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के राजेश पांडेय से हार गए थे. आरपीएन सिंह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर पडरौना से विधायक भी चुने जा चुके हैं.