हैदराबाद : कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई 2021 में गंगा में शवों को प्रवाहित करने वाली खबरें सुर्खियां बनती रहीं. मीडिया रिपोर्टस में अनुमान लगाया गया था कि गंगा में कोरोना संक्रमित करीब1000 शवों का जलप्रवाह किया गया. नैशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने दावा किया है कि कोरोना के दौरान गंगा में 300 से अधिक शव नहीं फेंके गए थे. राजीव रंजन मिश्रा ने एनएमसीजी के साथ काम कर चुके आईडीएएस अधिकारी पुस्कल उपाध्याय के साथ मिलकर एक किताब लिखी है, गंगा: रीइमेजिनिंग, रिजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग. इस किताब में उन्होंने कोरोना काल में गंगा में प्रवाहित किए शवों के बारे में बताया है. प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने गुरुवार को इस किताब का विमोचन किया.
राजीव रंजन मिश्रा 1987 बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. वह दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga) और नमामि गंगे प्रोजेक्ट से जुड़े रहे. राजीव रंजन मिश्रा 31 दिसंबर 2021 को रिटायर हो जाएंगे.
राजीव रंजन मिश्रा ने अपनी किताब के चैप्टर 'फ्लोटिंग कॉर्प्स: ए रिवर डिफिल्ड (Floating Corpses A River Defiled)' में बताया कि कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान यूपी और बिहार के श्मशान घाटों पर शवों की संख्या बढ़ गई. गंगा मृतकों के लिए आसान डंपिंग ग्राउंड बन गई. राजीव रंजन ने लिखा है कि जब मीडिया में शवों के प्रवाहित होने की खबरें सुर्खियां बन रही थीं, तब वह मेदांता में कोविड संक्रमण का इलाज करा रहे थे.
11 मई को उन्होंने सभी 59 जिला गंगा समितियों को गंगा में उतराते शवों के निपटान के लिए आवश्यक कार्रवार्ई कर रिपोर्ट पेश करने को कहा था. कुछ दिनों बाद, इसने यूपी और बिहार से संबंध में रिपोर्ट मांगी गई. इसके बाद गंगा और इसकी सहायक नदियों में मिली लाशों के डेटा का मिलान जिलेवार किया गया. गंगा किनारे बसे जिलों के डीएम और पंचायत अधिकारियों की रिपोर्ट के बाद वह निष्कर्ष पर पहुंचे कि गंगा में उतराते शवों की संख्या 300 से अधिक नहीं थी.
किताब में उन्होंने खुलासा किया कि इनमें अधिकतर मामले यूपी में कन्नौज और बलिया के बीच तक ही सीमित थी. बिहार में पाए गए उतराते शव भी यूपी में प्रवाहित हुए थे. जब इस बारे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के निदेशक ने रिपोर्ट तलब की तो उत्तरप्रदेश प्रदेश के अफसरों ने उन्हें शवों के जलप्रवाह के नियम के बारे में जानकारी दी. उन्होंने लिखा है कोविड -19 श्मशान प्रोटोकॉल के बारे में ग्रामीण आबादी की अज्ञानता के कारण ऐसी स्थिति आई. इसका दूसरा पहलू यह था कि गरीबी से त्रस्त लोग जिन्होंने कोविड -19 से लड़ने के लिए डॉक्टर की फीस और दवाओं पर अपना सारा पैसा खर्च कर दिया था, वे महंगे श्मशान शुल्क का भुगतान करने की स्थिति में नहीं थे.