हैदराबाद : क्रिसमस वैसे तो क्रिश्चियन का त्योहार है. मगर यह जानकर आपको सुखद आश्चर्य होगा कि रामकृष्ण मिशन के मठों में भी 25 दिसंबर की शाम यीशु का जन्मोत्सव मनाया जाता है. मठों में भी क्रिसमस चर्च की तरह सेलिब्रेट किया जाता है. यीशु की तस्वीर के सामने मिशन के संत केक, लोजेंज, फल, पेस्ट्री और मिठाई ऑफर करते हैं. कैंडल और फूलों से सजे यीशु की पूजा के साथ अंग्रेजी और बंगाली में बाइबल भी पढ़ी जाती है. 26 देशों में रामकृष्ण मिशन के 237 मठों में क्रिसमस सेलिब्रेट करने की प्रथा वर्षों से चली आ रही है.
ठाकुर रामकृष्ण ने कहा था कि मैंने चौदह वर्षों तक हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध धर्म का पालन किया है, मुझे पता चला है कि ईश्वर सभी धर्मों का मूल है. मिशन में ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के इसी विचार को आगे बढ़ाया जा रहा है. बेलूर मठ के संत आज भी क्रिसमस सेलिब्रेट करते हैं.
रामकृष्ण मिशन में यीशु के जन्मदिन के उत्सव क्रिसमस के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं. मठ सूत्रों के अनुसार श्री रामकृष्ण ने दक्षिणेश्वर मंदिर में हर प्रकार की साधना की थी. हिंदू शैव साधना, शक्ति साधना, वैष्णव साधना, वेदांत साधना करने के बाद वह जानना चाहते थे कि मुस्लिम समुदाय के लोग भगवान को कैसे याद करते हैं.
यह जानने के लिए उन्होंने नमाज भी पढ़ी थी. इसके बाद ठाकुर को ईसाई परंपरा में ईश्वर पूजा के बारे में इच्छा हुई. फिर उन्होंने एक भक्त को ईसाई धर्म के बारे में पढ़ने के लिए कहा था.
एक दिन ठाकुर रामकृष्ण ने एक जमींदार के घर मरियम की गोद में नन्हे यीशु का चित्र देखा. वह तस्वीर देखकर ध्यान में चले गए. तीन दिनों तक वह पूरी तरह ध्यान में रहे और इस दौरान पूजा के लिए दक्षिणेश्वर मंदिर भी नहीं गए. बताया जाता है कि जब वह ध्यान से उठे तो उन्हें यीशु के दर्शन हुए.
रामकृष्ण मिशन के मठों में क्रिसमिस सेलिब्रेट करने के पीछे एक और कहानी छिपी है. ठाकुर रामकृष्ण के निधन के चार महीने बाद स्वामी विवेकानंद और उनके अन्य शिष्य हुगली के श्रीरामपुर के एक गांव अंतापुर पहुंचे. उन्हें यह भी नहीं पता था कि यह क्रिसमस की पूर्व संध्या थी. उनके हृदय में त्याग की जबरदस्त भावना उमड़ रही थी.
सूर्यास्त के बाद विवेकानंद और अन्य शिष्यों ने पारंपरिक हिंदू पद्धति से 'धुनी' जलाई और चारो तरफ ध्यान करने के लिए बैठ गए. इस दौरान सभी बाइबल का पाठ भी किया. स्वामी विवेकानंद ने ईसा मसीह के असाधारण बलिदान के जीवन के बारे में बात की और अपने गुरु भाइयों को त्याग और सेवा की प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रेरित किया. अगली सुबह उन्होंने महसूस किया कि पिछली शाम पवित्र क्रिसमस की पूर्व संध्या थी. माना जाता है तभी से रामकृष्ण मिशन के मठों में क्रिसमस मनाने की परंपरा शुरू हुई. अंतापुर में आज भी मिशन का मठ मौजूद है.
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