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मोदी के दोबारा पीएम बनने के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य जहां भाजपा ने पलटी बाजी, 17 राज्यों में सरकार

महाराष्ट्र 17 वां राज्य है, जहां पर भाजपा की सीधी या फिर अपने सहयोगियों के साथ सरकार बन चुकी है. नरेंद्र मोदी के दोबारा पीएम बनने के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य है, जहां पर पार्टी ने बाजी पलट दी.

pm modi, shah
पीएम मोदी, अमित शाह
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Published : Jun 30, 2022, 8:00 PM IST

नई दिल्ली : महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के पतन के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे का नेतृत्व स्वीकार करते हुए उनकी अगुवाई वाली सरकार को समर्थन देने का चौंकाने वाला फैसला किया है. नई सरकार के गठन के साथ ही कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य हो गया है, जहां चुनावों में सरकार बनाने में विफल होने के बावजूद सत्ता की बाजी पलटने में केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सफल रही.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी बार देश की कमान संभालने के बाद यह पहला मौका होगा, जब देश के कुल 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में से भाजपा अब 16 राज्यों महाराष्ट्र (सहित) और एक केंद्रशासित प्रदेश में सीधे या फिर सहयोगियों के साथ सत्ता में होगी. गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की अपनी सरकारें हैं. बिहार, नगालैंड, मेघालय और पुदुचेरी में भाजपा प्रमुख सहयोगी दल की भूमिका निभा रही है. इस कड़ी में अब नया नाम महाराष्ट्र का जुड़ गया है.

भाजपा आज जिन 12 राज्यों में अपने बूते सरकार में हैं, उनमें कर्नाटक और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां वह विरोधी दलों की सरकार पलटने के बाद सत्ता में काबिज हुई है. महाराष्ट्र में इसी प्रकार की स्थिति निर्मित कर भाजपा ने मुख्यमंत्री का पद शिवसेना के बागी गुट को सौंप दिया और सरकार में शामिल होने की घोषणा की.

वर्ष 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में 105 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में उसकी सरकार भी बनी लेकिन विश्वास मत में सात सीटें वोट कम पड़ने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

इसके बाद राज्य में कांग्रेस की मदद से जनता दल (सेक्यूलर) के नेता एचडी कुमारस्वामी ने गठबंधन सरकार बनाई और वह खुद मुख्यमंत्री बने, लेकिन 14 महीने के भीतर ही उनकी भी सरकार गिर गई, क्योंकि गठबंधन के 17 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इससे भाजपा को राज्य में फिर से सरकार बनाने का मौका मिल गया. येदियुरप्पा फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन जुलाई 2021 में पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और भाजपा सरकार की कमान बसवराज बोम्मई के हाथों में सौंप दी. बोम्मई तब से राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की कहानी भी बहुत कुछ कर्नाटक जैसी है. अंतर ये था कि चुनावों के बाद कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप उभरी थी, वहीं मध्य प्रदेश में भाजपा 109 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर थी. साल 2018 के इस चुनाव में कांग्रेस ने 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 114 सीटें जीती. बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी लेकिन 15 महीने बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया. वजह थी पार्टी की अंदरूनी बगावत. कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अंदरूनी मतभेदों के चलते अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी. ऐसे में कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

बाद में सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया. इसके बाद राज्य में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनी और वह आज भी कायम है. हालांकि महाराष्ट्र की परिस्थितियां थोड़ी भिन्न थी. भाजपा ने अपने सबसे पुराने और वैचारिक सहयोगी शिवसेना के साथ मिलकर 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ा. नतीजों के बाद दोनों में मुख्यमंत्री पद साझा करने को लेकर चली रस्साकशी की वजह से राज्य में एक महीने तक किसी की सरकार नहीं बन सकी. इसके बाद यहां नये राजनीतिक समीकरण देखने को मिले. हिन्दुत्व की पैरोकार भाजपा और शिवसेना का वर्षों पुराना गठबंधन टूट गया. भाजपा ने राकांपा के अजित पवार के साथ मिलकर रातोंरात सरकार बना ली, लेकिन बहुमत न होने के चलते देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ गया था.

शिवसेना ने विपरीत विचारधारा वाले दलों राकांपा और कांग्रेस से गठबंधन कर महा विकास आघाड़ी (एमवीए) बना ली और उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पार्टी नेता मनोहर जोशी और नारायण राणे के बाद पार्टी के तीसरे नेता बने. मध्य प्रदेश की तर्ज पर यहां भी सत्ताधारी दल में विद्रोह हो गया. इस बगावत का नेतृत्व राज्य सरकार के कद्दावर मंत्री एकनाथ शिंदे ने किया. उनकी बगावत के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में बुधवार को बड़ा उलटफेर हुआ और ढाई साल सरकार चलाने के बाद ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया. अब शिंदे राज्य के नये मुख्यमंत्री बन चुके हैं.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले बिहार सहित सात राज्यों में भाजपा की सरकारें थी. मोदी जब प्रधानमंत्री बने तब पार्टी की कमान अमित शाह को सौंपी गई. इसके बाद भाजपा ने तेजी से अपने पैर पसारने आरंभ किए और 2018 में उसने 21 राज्यों में अपनी और गठबंधन दलों के साथ सरकार बनाई. हालांकि इसके बाद हुए कुछ राज्यों के चुनावों में उसे हार का भी सामना करना पड़ा. झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य उसके हाथ से निकल गए. निकले तो कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र भी थे लेकिन इनमें से दो में वह बाजी पलट कर सरकार बना चुकी है और तीसरे में नयी सरकार में शामिल होने जा रही है.

ये भी पढ़ें : Eknath Shinde : ऑटो चालक से सीएम पद का सफर, जानिए एकनाथ शिंदे के बारे में

नई दिल्ली : महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के पतन के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे का नेतृत्व स्वीकार करते हुए उनकी अगुवाई वाली सरकार को समर्थन देने का चौंकाने वाला फैसला किया है. नई सरकार के गठन के साथ ही कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य हो गया है, जहां चुनावों में सरकार बनाने में विफल होने के बावजूद सत्ता की बाजी पलटने में केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सफल रही.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी बार देश की कमान संभालने के बाद यह पहला मौका होगा, जब देश के कुल 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में से भाजपा अब 16 राज्यों महाराष्ट्र (सहित) और एक केंद्रशासित प्रदेश में सीधे या फिर सहयोगियों के साथ सत्ता में होगी. गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की अपनी सरकारें हैं. बिहार, नगालैंड, मेघालय और पुदुचेरी में भाजपा प्रमुख सहयोगी दल की भूमिका निभा रही है. इस कड़ी में अब नया नाम महाराष्ट्र का जुड़ गया है.

भाजपा आज जिन 12 राज्यों में अपने बूते सरकार में हैं, उनमें कर्नाटक और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां वह विरोधी दलों की सरकार पलटने के बाद सत्ता में काबिज हुई है. महाराष्ट्र में इसी प्रकार की स्थिति निर्मित कर भाजपा ने मुख्यमंत्री का पद शिवसेना के बागी गुट को सौंप दिया और सरकार में शामिल होने की घोषणा की.

वर्ष 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में 105 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में उसकी सरकार भी बनी लेकिन विश्वास मत में सात सीटें वोट कम पड़ने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

इसके बाद राज्य में कांग्रेस की मदद से जनता दल (सेक्यूलर) के नेता एचडी कुमारस्वामी ने गठबंधन सरकार बनाई और वह खुद मुख्यमंत्री बने, लेकिन 14 महीने के भीतर ही उनकी भी सरकार गिर गई, क्योंकि गठबंधन के 17 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इससे भाजपा को राज्य में फिर से सरकार बनाने का मौका मिल गया. येदियुरप्पा फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन जुलाई 2021 में पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और भाजपा सरकार की कमान बसवराज बोम्मई के हाथों में सौंप दी. बोम्मई तब से राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की कहानी भी बहुत कुछ कर्नाटक जैसी है. अंतर ये था कि चुनावों के बाद कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप उभरी थी, वहीं मध्य प्रदेश में भाजपा 109 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर थी. साल 2018 के इस चुनाव में कांग्रेस ने 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 114 सीटें जीती. बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी लेकिन 15 महीने बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया. वजह थी पार्टी की अंदरूनी बगावत. कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अंदरूनी मतभेदों के चलते अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी. ऐसे में कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

बाद में सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया. इसके बाद राज्य में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनी और वह आज भी कायम है. हालांकि महाराष्ट्र की परिस्थितियां थोड़ी भिन्न थी. भाजपा ने अपने सबसे पुराने और वैचारिक सहयोगी शिवसेना के साथ मिलकर 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ा. नतीजों के बाद दोनों में मुख्यमंत्री पद साझा करने को लेकर चली रस्साकशी की वजह से राज्य में एक महीने तक किसी की सरकार नहीं बन सकी. इसके बाद यहां नये राजनीतिक समीकरण देखने को मिले. हिन्दुत्व की पैरोकार भाजपा और शिवसेना का वर्षों पुराना गठबंधन टूट गया. भाजपा ने राकांपा के अजित पवार के साथ मिलकर रातोंरात सरकार बना ली, लेकिन बहुमत न होने के चलते देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ गया था.

शिवसेना ने विपरीत विचारधारा वाले दलों राकांपा और कांग्रेस से गठबंधन कर महा विकास आघाड़ी (एमवीए) बना ली और उसके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पार्टी नेता मनोहर जोशी और नारायण राणे के बाद पार्टी के तीसरे नेता बने. मध्य प्रदेश की तर्ज पर यहां भी सत्ताधारी दल में विद्रोह हो गया. इस बगावत का नेतृत्व राज्य सरकार के कद्दावर मंत्री एकनाथ शिंदे ने किया. उनकी बगावत के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में बुधवार को बड़ा उलटफेर हुआ और ढाई साल सरकार चलाने के बाद ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया. अब शिंदे राज्य के नये मुख्यमंत्री बन चुके हैं.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले बिहार सहित सात राज्यों में भाजपा की सरकारें थी. मोदी जब प्रधानमंत्री बने तब पार्टी की कमान अमित शाह को सौंपी गई. इसके बाद भाजपा ने तेजी से अपने पैर पसारने आरंभ किए और 2018 में उसने 21 राज्यों में अपनी और गठबंधन दलों के साथ सरकार बनाई. हालांकि इसके बाद हुए कुछ राज्यों के चुनावों में उसे हार का भी सामना करना पड़ा. झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य उसके हाथ से निकल गए. निकले तो कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र भी थे लेकिन इनमें से दो में वह बाजी पलट कर सरकार बना चुकी है और तीसरे में नयी सरकार में शामिल होने जा रही है.

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