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तिरंगा के प्रति समर्पण और सम्मान की अनोखी कहानी हैं संतराम - संतराम तिरंगे की सेवा कर रहे

कोरबा में 24 वर्षों से संतराम तिरंगे की सेवा कर रहे हैं. सूरज की पहली किरण के साथ झंडा फहराते हैं और फिर दिन ढलते ही उतारने की ड्यूटी करते हैं. तिरंगे प्रति उनके समर्पण की हर कोई मिसाल दे रहा है.

Santram Tricolor service in Korba
कोरबा में संताराम की तिरंगा सेवा
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Published : Aug 14, 2022, 12:43 AM IST

कोरबा: तिरंगे की सेवा वह भी लगातार 24 सालों से, जबसे जिला अस्तित्व में आया, तब से, एक व्यक्ति निरंतर बिना रुके बिना चूके तिरंगे की सेवा कर रहा है. ये और कोई नहीं हैं, जिले में चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के पद पर पदस्थ संतराम हैं. दरअसल 57 वर्षीय संतराम जिला कलेक्टर कार्यालय के छत पर हर दिन सूरज की पहली किरण के साथ तिरंगा फहराते हैं. प्रोटोकॉल के मुताबिक सूरज डूबने के ठीक पहले तिरंगे को उतार लेते हैं. यह काम वह लगातार लगभग ढाई दशक से करते आ रहे हैं. तिरंगे के प्रति सम्मान और संतराम के समर्पण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह त्यौहार और छुट्टी वाले दिन भी जिला मुख्यालय में तिरंगा फहराना नहीं भूलते और ना चूकते हैं.

तिरंगे के प्रति समर्पण की कहानी

यह भी पढ़ें: जांजगीर चांपा के लालकिला में मनाया जाएगा आजादी का अमृत महोत्सव

1998 में अस्तित्व में आया कोरबा जिला, तब से मिली यह जिम्मेदारी: संतराम कहते हैं कि "1998 में कोरबा जिला अस्तित्व में आया. तब से मुझे मुख्यालय में तिरंगा फहराने और इसे वापस उतारने की जिम्मेदारी मिली. राष्ट्रीय ध्वज के प्रति समर्पण और सम्मान मेरी आदत बन चुकी है. संडे को जब छुट्टी होती है, तब भी मेरे दिमाग में यह बात चलती रहती है कि ठीक समय पर ध्वजारोहण करना है. दिन ढलने के पहले ही दौड़ते हुए जाकर तिरंगे को वापस उतार लेना है. मेरी मानसिकता अब उसी तरह से बन गई है".

लगातार 24 वर्षों से यह काम कर रहा हूं, तिरंगे की सेवा कर रहा हूं. 1 दिन भी ऐसा नहीं होगा, जब मैंने इस काम को पूरा ना किया हो. अब इस काम के लिए मैंने कलेक्ट्रेट कार्यालय में हरीश और रामेश्वर को भी तिरंगा फहराना और इसे नीचे उतारा सिखा दिया है. दोनों नौजवान अभी-अभी कलेक्ट्रेट कार्यालय में काम करने आए हैं. हाल फिलहाल में बीते कुछ समय से वह भी मेरे इस काम में मदद कर रहे हैं.

तिरंगा फहराने और इसे उतारने का है अलग तरीका: दरअसल प्रतिदिन तिरंगे को फहराना और इसे उतारने का भी एक खास प्रोटोकॉल होता है. संतराम ने प्रशिक्षण लिया था और वह बेहद करीने से तिरंगे को फहराते हैं. इसके बाद इसे उतारते हैं. तिरंगे को फोल्ड करने का भी एक साथ खास तरीका होता है. तिरंगे को फोल्ड करने के बाद अशोक चक्र ऊपर से रखना चाहिए. संतराम इन सभी प्रोटोकॉल से भली भांति परिचित हैं.



छुट्टियों में भी संतराम ठीक समय पर फहराते और उतारते हैं झंडा: संतराम तिरंगे की सेवा के प्रति बेहद समर्पित हैं. अब इसे देशभक्ति की भावना कहें या अपने कार्य के प्रति समर्पण. संतराम तिरंगे की सेवा में ढाई दशक से लगे हुए हैं. रविवार की छुट्टी को भी राष्ट्रीय ध्वज चढ़ाना और शाम को इसे उतारने का काम संतराम बखूबी निभाते हैं. होली, दिवाली हो या फिर बरसात का मौसम. तपती गर्मी हो या कड़कड़ाती ठंड. संतराम हर मौसम में कलेक्ट्रेट पहुंचते हैं. यहां के छत पर ध्वजा फहराते हैं और शाम को इसे वापस उतार लेते हैं.

कोरबा: तिरंगे की सेवा वह भी लगातार 24 सालों से, जबसे जिला अस्तित्व में आया, तब से, एक व्यक्ति निरंतर बिना रुके बिना चूके तिरंगे की सेवा कर रहा है. ये और कोई नहीं हैं, जिले में चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के पद पर पदस्थ संतराम हैं. दरअसल 57 वर्षीय संतराम जिला कलेक्टर कार्यालय के छत पर हर दिन सूरज की पहली किरण के साथ तिरंगा फहराते हैं. प्रोटोकॉल के मुताबिक सूरज डूबने के ठीक पहले तिरंगे को उतार लेते हैं. यह काम वह लगातार लगभग ढाई दशक से करते आ रहे हैं. तिरंगे के प्रति सम्मान और संतराम के समर्पण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह त्यौहार और छुट्टी वाले दिन भी जिला मुख्यालय में तिरंगा फहराना नहीं भूलते और ना चूकते हैं.

तिरंगे के प्रति समर्पण की कहानी

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1998 में अस्तित्व में आया कोरबा जिला, तब से मिली यह जिम्मेदारी: संतराम कहते हैं कि "1998 में कोरबा जिला अस्तित्व में आया. तब से मुझे मुख्यालय में तिरंगा फहराने और इसे वापस उतारने की जिम्मेदारी मिली. राष्ट्रीय ध्वज के प्रति समर्पण और सम्मान मेरी आदत बन चुकी है. संडे को जब छुट्टी होती है, तब भी मेरे दिमाग में यह बात चलती रहती है कि ठीक समय पर ध्वजारोहण करना है. दिन ढलने के पहले ही दौड़ते हुए जाकर तिरंगे को वापस उतार लेना है. मेरी मानसिकता अब उसी तरह से बन गई है".

लगातार 24 वर्षों से यह काम कर रहा हूं, तिरंगे की सेवा कर रहा हूं. 1 दिन भी ऐसा नहीं होगा, जब मैंने इस काम को पूरा ना किया हो. अब इस काम के लिए मैंने कलेक्ट्रेट कार्यालय में हरीश और रामेश्वर को भी तिरंगा फहराना और इसे नीचे उतारा सिखा दिया है. दोनों नौजवान अभी-अभी कलेक्ट्रेट कार्यालय में काम करने आए हैं. हाल फिलहाल में बीते कुछ समय से वह भी मेरे इस काम में मदद कर रहे हैं.

तिरंगा फहराने और इसे उतारने का है अलग तरीका: दरअसल प्रतिदिन तिरंगे को फहराना और इसे उतारने का भी एक खास प्रोटोकॉल होता है. संतराम ने प्रशिक्षण लिया था और वह बेहद करीने से तिरंगे को फहराते हैं. इसके बाद इसे उतारते हैं. तिरंगे को फोल्ड करने का भी एक साथ खास तरीका होता है. तिरंगे को फोल्ड करने के बाद अशोक चक्र ऊपर से रखना चाहिए. संतराम इन सभी प्रोटोकॉल से भली भांति परिचित हैं.



छुट्टियों में भी संतराम ठीक समय पर फहराते और उतारते हैं झंडा: संतराम तिरंगे की सेवा के प्रति बेहद समर्पित हैं. अब इसे देशभक्ति की भावना कहें या अपने कार्य के प्रति समर्पण. संतराम तिरंगे की सेवा में ढाई दशक से लगे हुए हैं. रविवार की छुट्टी को भी राष्ट्रीय ध्वज चढ़ाना और शाम को इसे उतारने का काम संतराम बखूबी निभाते हैं. होली, दिवाली हो या फिर बरसात का मौसम. तपती गर्मी हो या कड़कड़ाती ठंड. संतराम हर मौसम में कलेक्ट्रेट पहुंचते हैं. यहां के छत पर ध्वजा फहराते हैं और शाम को इसे वापस उतार लेते हैं.

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