चिंतपूर्णी: जिला ऊना के चिंतपूर्णी में स्थित शीतला मंदिर हिमाचल के सभी मंदिरों की तरह एक पहाड़ की चोटी पर है. चिंतपूर्णी के दर्शन के लिए ऊना आने वाले लोग माता शीतला के मंदिर में दर्शन करना नहीं भूलते हैं.
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से ही हुई थी. देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं. जब माता शीतला धरतीलोक पर आई तो राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई जगह नहीं दी. इससे माता शीतला क्रोधित हो गईं.
उसी क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा के शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आए और लोग उस गर्मी से बेहाल होने लगे. राजा को अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने माता शीतला से माफी मांगी और माता शीतला को उचित स्थान दिया. साथ ही लोगों ने माता शीतला के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध एवं कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई और माता शांत हुईं. तब से हर साल शीतला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडे बासी भोजन का प्रसाद मां को चढ़ाने लगे और व्रत करने लगे.
वैसे तो फाल्गुन मास की पूर्णिमा एवं फाल्गुन मास की संक्रांति से ही लोग सुबह माता शीतला पर लस्सी चढ़ाना शुरू कर देते हैं और पूरा महीना माता शीतला की पूजा करते हैं, लेकिन किसी कारण वश शीतला माता का पूजन न कर पाने वाले भक्त शीतला अष्टमी का व्रत करके अथवा मां पर कच्ची लस्सी चढ़ा कर मां की कृपा के पात्र बन सकते हैं.
माता शीतला के मंदिर में पहुंचने के लिए आपको चिंतपूर्णी से तलवाड़ा रोड पर 7 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है. वहीं, मंदिर पुजारी के अनुसार इस मंदिर में सती माता का हृदय गिरा था. इसलिये माता का नाम शीतला माता कहलाने लगा. दूसरे स्थानों में माता शीतला के मंदिर माता को मूर्ति रूप में पूजा जाता है. ऊना में स्थित इस मंदिर में माता जी पिंडी रूप में विराजमान हैं.