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राजा ने किया था माता शीतला का अपमान, पूरी प्रजा को भुगताना पड़ा था बीमारी का प्रकोप!

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से ही हुई थी. देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं. जब माता शीतला धरतीलोक पर आई तो राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई जगह नहीं दी.

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Published : Nov 30, 2019, 6:49 PM IST

Updated : Dec 1, 2019, 7:58 AM IST

sheetla mata temple in una
sheetla mata temple in una

चिंतपूर्णी: जिला ऊना के चिंतपूर्णी में स्थित शीतला मंदिर हिमाचल के सभी मंदिरों की तरह एक पहाड़ की चोटी पर है. चिंतपूर्णी के दर्शन के लिए ऊना आने वाले लोग माता शीतला के मंदिर में दर्शन करना नहीं भूलते हैं.
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से ही हुई थी. देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं. जब माता शीतला धरतीलोक पर आई तो राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई जगह नहीं दी. इससे माता शीतला क्रोधित हो गईं.

उसी क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा के शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आए और लोग उस गर्मी से बेहाल होने लगे. राजा को अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने माता शीतला से माफी मांगी और माता शीतला को उचित स्थान दिया. साथ ही लोगों ने माता शीतला के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध एवं कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई और माता शांत हुईं. तब से हर साल शीतला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडे बासी भोजन का प्रसाद मां को चढ़ाने लगे और व्रत करने लगे.

वीडियो रिपोर्ट

वैसे तो फाल्गुन मास की पूर्णिमा एवं फाल्गुन मास की संक्रांति से ही लोग सुबह माता शीतला पर लस्सी चढ़ाना शुरू कर देते हैं और पूरा महीना माता शीतला की पूजा करते हैं, लेकिन किसी कारण वश शीतला माता का पूजन न कर पाने वाले भक्त शीतला अष्टमी का व्रत करके अथवा मां पर कच्ची लस्सी चढ़ा कर मां की कृपा के पात्र बन सकते हैं.

माता शीतला के मंदिर में पहुंचने के लिए आपको चिंतपूर्णी से तलवाड़ा रोड पर 7 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है. वहीं, मंदिर पुजारी के अनुसार इस मंदिर में सती माता का हृदय गिरा था. इसलिये माता का नाम शीतला माता कहलाने लगा. दूसरे स्थानों में माता शीतला के मंदिर माता को मूर्ति रूप में पूजा जाता है. ऊना में स्थित इस मंदिर में माता जी पिंडी रूप में विराजमान हैं.

चिंतपूर्णी: जिला ऊना के चिंतपूर्णी में स्थित शीतला मंदिर हिमाचल के सभी मंदिरों की तरह एक पहाड़ की चोटी पर है. चिंतपूर्णी के दर्शन के लिए ऊना आने वाले लोग माता शीतला के मंदिर में दर्शन करना नहीं भूलते हैं.
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से ही हुई थी. देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं. जब माता शीतला धरतीलोक पर आई तो राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई जगह नहीं दी. इससे माता शीतला क्रोधित हो गईं.

उसी क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा के शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आए और लोग उस गर्मी से बेहाल होने लगे. राजा को अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने माता शीतला से माफी मांगी और माता शीतला को उचित स्थान दिया. साथ ही लोगों ने माता शीतला के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध एवं कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई और माता शांत हुईं. तब से हर साल शीतला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडे बासी भोजन का प्रसाद मां को चढ़ाने लगे और व्रत करने लगे.

वीडियो रिपोर्ट

वैसे तो फाल्गुन मास की पूर्णिमा एवं फाल्गुन मास की संक्रांति से ही लोग सुबह माता शीतला पर लस्सी चढ़ाना शुरू कर देते हैं और पूरा महीना माता शीतला की पूजा करते हैं, लेकिन किसी कारण वश शीतला माता का पूजन न कर पाने वाले भक्त शीतला अष्टमी का व्रत करके अथवा मां पर कच्ची लस्सी चढ़ा कर मां की कृपा के पात्र बन सकते हैं.

माता शीतला के मंदिर में पहुंचने के लिए आपको चिंतपूर्णी से तलवाड़ा रोड पर 7 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है. वहीं, मंदिर पुजारी के अनुसार इस मंदिर में सती माता का हृदय गिरा था. इसलिये माता का नाम शीतला माता कहलाने लगा. दूसरे स्थानों में माता शीतला के मंदिर माता को मूर्ति रूप में पूजा जाता है. ऊना में स्थित इस मंदिर में माता जी पिंडी रूप में विराजमान हैं.

Intro:इतिहास शीतला माता मन्दिरBody:इतिहास
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला जी की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी से ही हुई थी। ब्रह्मा जी ने माता शीतला को धरती पर पूजे जाने के लिए भेजा था। देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं। तब उनके पास दाल के दाने भी थे। उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई स्थान नहीं दिया तो माता शीतला क्रोधित हो गईं।


उसी क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा के शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आए और लोग उस गर्मी से संतप्त हो गए। राजा को अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने माता शीतला से माफी मांगकर उन्हें उचित स्थान दिया। लोगों ने माता शीतला के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध एवं कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई और माता शांत हुईं। तब से हर साल शीतला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडे बासी भोजन का प्रसाद मां को चढ़ाने लगे और व्रत करने लगे।


वैसे तो फाल्गुन मास की पूर्णिमा एवं फाल्गुन मास की संक्रांति से ही लोग नियम से प्रात: माता शीतला पर लस्सी चढ़ाना शुरू कर देते हैं तथा पूरा महीना माता शीतला की पूजा करते हैं परंतु जिन्होंने अब तक शीतला माता का पूजन किसी कारणवश नहीं किया है वे शीतला अष्टमी का व्रत करके अथवा मां पर कच्ची लस्सी चढ़ा कर मां की कृपा के पात्र बन सकते हैं।
: चिंतपूर्णी मंदिर के ठीक पीछे
यह चिंतपूर्णी मंदिर के ठीक पीछे है और हिमाचल प्रदेश के सभी मंदिरों की तरह, एक पहाड़ की चोटी पर है। 9 देवी मंदिरों में से एक, यहाँ के लोग अच्छे, मधुर, स्वागत करने वाले और मददगार हैं। पंजाब की तुलना में अधिकांश चीजें एचपी में सस्ती हैं, इसलिए मंदिर के चारों ओर एक नज़र डालें, जिसके पैर में एक छोटा और व्यस्त टाउन सेंटर है, इसके अलावा और कुछ नहीं जो मुझे डर है। वास्तव में एक बहुत ही पवित्र स्थान।
: अच्छी जगह
एक बार जब आप चिंतपूर्णी मंदिर में आते हैं, तो आपको इस स्थान पर भी जाना चाहिए। चिंतपूर्णी से तलवाड़ा रोड पर, आपको बस 10 मिनट और 7 किलोमीटर की यात्रा करनी है और आप यहाँ हैं। यदि आप पानी से प्यार करते हैं, तो आप शिटला टीम्पल से लिंक रोड पर ब्यास नदी तक जा सकते हैं, जो 25 किलोमीटर दूर है और बहुत मज़ा आ सकता है
: पुजारी जी के अनुसार यहां सती माता जी का हृदय गिरा था इसलिये माता जी का नाम शीतला माता कहाने लगा बताते चले की वैसे कई जगह कई शहरों में माता शीतला का मंदिर है पर वहाँ मूर्ति रूप में माता जी का पूजन होता है पर यहाँ माता जी पिंडी रूप में विराजमान है कहते है जो कई बच्चों को माता निकलती है वह इसी का ही रूप है यहाँ जो कुण्ड दिखाया गया है लोग इसी के ही छींटे ले कर अपनी कई बीमारियों से छुटकारा पाते है
वैसे श्रद्धलुओं की सुविधा के लिए गर्मियों व सर्दियों में मन्दिर को बजे 5 खोल दिया जाता है व गर्मियों मे 9 बजे व सर्दियों 8 बजे मन्दिर बंद कर दिया जाता है

:पुजारी बाइट
:श्रद्धालु बाइटConclusion:
Last Updated : Dec 1, 2019, 7:58 AM IST
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