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बाबा बड़भाग सिंह में होली के दिन उमड़ा जनसैलाब, जानिए देशभर में क्यों प्रसिद्ध है 'बाबा' का नाम - श्रद्धालु

बाबा बड़भाग सिंह में होली के दिन उमड़ा जनसैलाब हर साल की तरह सबसे पहले झंडा चढ़ाने की रस्म अदा की गई श्रद्धालुओं ने रंग, गुलाल से जमकर होली खेली

ऊना में होला मोहल्ला मेले की धूम
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Published : Mar 21, 2019, 5:43 PM IST

Updated : Mar 21, 2019, 7:07 PM IST

ऊना: उत्तर भारत में यूं तो होला मोहल्ला पूरे पंजाब में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब के साथ लगते राज्यों में भी यह उसी जोशों-जूनून के साथ मनाया जाता है.

ऊना में होला मोहल्ला मेले की धूम

होला मोहल्ला का यही हर्षोउल्लास हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह में भी दिखाई देता है. मेले केदौरान डेरे सहित पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. यहां होला मोहल्ला का आयोजन पूरे दस दिनों तक किया जाता है, यहां हर बार की तरह मेले के आठवें दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है.

आठवें दिन जो कि होली के रंग का दिन होता है, इसी आठवें दिन हर साल की तरह सबसे पहले झंडा चढ़ाने की रस्म अदा की गई और फिर उसके बाद श्रद्धालुओं ने रंग, गुलाल से जमकर होली खेली.

डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर में सिख गुरु अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ. उन दिनों अफगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़ंत होती रहती थी.

बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे. कहते हैं कि एक दिन वो घूमते हुए आज के मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, जा पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए.

उस समय मैड़ी का यह क्षेत्र बिल्कुल वीरान था और दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं थी. कहते है कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था. नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बाबजूद बाबा बड़भाग सिंह इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना-सामना हो गया और बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया.

कहते हैं कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे.

यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है और हर वर्ष लाखों की तादाद में देश विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को इस बेरी के पेड़ के नीचे कुछ देर के लिए बिठाया जाए तो वो व्यक्ति प्रेत आत्मा के चंगुल से आजाद हो जाता है.

होला मोहल्ला मेला हर वर्ष फाल्गुन मास के विक्रमी महीने में पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है. दस दिनों तक मनाए जाने वाला यह मेला देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है.

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल और देश के अन्यों हिस्सों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु इस मेले में शरीक होने के लिए आते हैं. श्रद्धालुओं की माने तो यहां पर सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाए बाबा जी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

मेले में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा चाक चौबंद की गई है. मेला क्षेत्र को नौ सेक्टरों में बांटा गया है और प्रत्येक सेक्टर में एक-एक सेक्टर मजिस्ट्रेट और एक-एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की गई है.

मेले में करीब 1400 पुलिस और होमगार्ड के जवानों की तैनाती की गई है. असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के लिए मेला क्षेत्र में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं.

ऊना: उत्तर भारत में यूं तो होला मोहल्ला पूरे पंजाब में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब के साथ लगते राज्यों में भी यह उसी जोशों-जूनून के साथ मनाया जाता है.

ऊना में होला मोहल्ला मेले की धूम

होला मोहल्ला का यही हर्षोउल्लास हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह में भी दिखाई देता है. मेले केदौरान डेरे सहित पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. यहां होला मोहल्ला का आयोजन पूरे दस दिनों तक किया जाता है, यहां हर बार की तरह मेले के आठवें दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है.

आठवें दिन जो कि होली के रंग का दिन होता है, इसी आठवें दिन हर साल की तरह सबसे पहले झंडा चढ़ाने की रस्म अदा की गई और फिर उसके बाद श्रद्धालुओं ने रंग, गुलाल से जमकर होली खेली.

डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर में सिख गुरु अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ. उन दिनों अफगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़ंत होती रहती थी.

बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे. कहते हैं कि एक दिन वो घूमते हुए आज के मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, जा पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए.

उस समय मैड़ी का यह क्षेत्र बिल्कुल वीरान था और दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं थी. कहते है कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था. नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बाबजूद बाबा बड़भाग सिंह इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना-सामना हो गया और बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया.

कहते हैं कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे.

यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है और हर वर्ष लाखों की तादाद में देश विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को इस बेरी के पेड़ के नीचे कुछ देर के लिए बिठाया जाए तो वो व्यक्ति प्रेत आत्मा के चंगुल से आजाद हो जाता है.

होला मोहल्ला मेला हर वर्ष फाल्गुन मास के विक्रमी महीने में पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है. दस दिनों तक मनाए जाने वाला यह मेला देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है.

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल और देश के अन्यों हिस्सों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु इस मेले में शरीक होने के लिए आते हैं. श्रद्धालुओं की माने तो यहां पर सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाए बाबा जी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

मेले में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा चाक चौबंद की गई है. मेला क्षेत्र को नौ सेक्टरों में बांटा गया है और प्रत्येक सेक्टर में एक-एक सेक्टर मजिस्ट्रेट और एक-एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की गई है.

मेले में करीब 1400 पुलिस और होमगार्ड के जवानों की तैनाती की गई है. असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के लिए मेला क्षेत्र में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं.

ऊना
होला मोहल्ला मेला मैड़ी में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब,  मेले के आठंवे दिन चढ़ाये झंडे, श्रद्धालुओं ने जमकर उड़ाया गुलाल, मेले में सुरक्षा और सुविधायों के पुख्ता इंतजाम।

उत्तर भारत में यूँ तो होला मोहल्ला पूरे पंजाब में खूब धाम से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब के साथ लगते राज्यों में भी यह उसी जोशो जूनून के साथ मनाया जाता है। होला मोहल्ला का यही हर्षो उल्लास हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह में भी दिखाई देता है। मेले के 
दौरान डेरे सहित पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। यहाँ होला मोहल्ला का आयोजन पूरे दस दिनों तक किया जाता है, यहाँ हर बार की तरह मेले के आठंवे दिन श्रद्धालुओं का खूब सैलाब उमड़ा। आठवाँ दिन जोकि होली के रंग का दिन होता है, इसी आठवें दिन हर साल की तरह सबसे पहले झंडा चढाने की रस्म अदा की गयी और फिर उसके बाद श्रद्धालुओं ने रंगो गुलाल से जमकर होली खेली। डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो बर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर में सिख गुरू अर्जुन देव जी के बंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ। उन दिनों अफगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़तें होती रहती थी। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते है कि एक दिन वो घूमते हुए आज के मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, जा पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए। उस समय मैड़ी का यह क्षेत्र बिल्कुल वीरान था और दूर दूर तक कोई आबादी नहीं थी। कहते है कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बाबजूद बाबा बड़भाग सिंह इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना सामना हो गया तथा बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहरसिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते है कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे। यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है तथा हर बर्ष लाखों की तादाद में देश विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते है। ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को इस कुछ देर के लिए इस बेरी के पेड़ के नीचे बिठाया जाए तो वो व्यक्ति प्रेत आत्मायों के चंगुल से आजाद हो जाता है। होला मोहल्ला मेला हर बर्ष फाल्गुन के विक्रमी महीने में पुर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। दस दिनों तक मनाए जाने वाला यह मेला देश ही नहीं अपितु विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल तथा देश के अन्यों हिस्सों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु इस मेले में शरीक होने के लिए आते है। श्रद्धालुओं की माने तो यहां पर सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाए बाबा जी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है। 

बाइट -- श्रद्धालु 
  HOLA MOHALLA 7 

बाइट -- श्रद्धालु 
 HOLA MOHALLA 8

बाइट -- विनोद धीमान (मेला अधिकारी)
              HOLA MOHALLA 11

  मेले में देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा चाक चौबंद की गई है । मेला क्षेत्र को नौ सैक्टरों में बांटा गया है तथा प्रत्येक सैक्टर में एक-एक सैक्टर मैजिस्ट्रेट तथा एक-एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की गई है तथा मेले में 1400 के करीब पुलिस और होमगार्ड के जवानों की तैनाती की गई है । असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के लिए मेला क्षेत्र में जगह जगह पर सीसीटीवी कैमरा भी स्थापित किए गए है 

Last Updated : Mar 21, 2019, 7:07 PM IST
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