सोलन: हिमाचल प्रदेश जो आज विश्व स्तर पर अपनी एक अलग छाप छोड़ रहा है. अगर हिमाचल प्रदेश के किसी भी क्षेत्र के इतिहास की बात चल रही हो और 18 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे डॉ. वाईएस परमार को स्मरण ना किया जाए तो यह घोर अन्याय होगा. हिमाचल प्रदेश और परमार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
साधन ना होने पर भी धरतीपुत्र डॉ. यशवंत सिंह परमार ने पैदल यात्रा करके सभी जिलों और अन्य क्षेत्रों के सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक जानकारी प्राप्त की. उन्होंने न केवल समाजशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की बल्कि समाज में परिवर्तन लाने के लिए भी क्रियाशील रहे.
1 नवंबर 1968 को एक लंबे संघर्ष के उपरांत विशाल हिमाचल अस्तित्व में आया था. ब्रिटिश गुलामी के दिनों में ही पर्वतीय राज्यों की स्थापना की लहर चल पड़ी थी, भारत की स्वतंत्रता का ख्वाब साकार होने और 26 रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया. ब्रिटिश काल में शिमला हिल स्टेट्स और परिवर्तन काल में हिमालय प्रांत जैसे नाम लिए जाते रहे.
सोलन शहर को जाता है हिमाचल के नामकरण का श्रेय
भारतीय संघ में विलय के लिए बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह ने बहुत प्रयास किए हैं, अनेक सभाएं की और केंद्रीय नेताओं, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और पद्धमिसितारमैया से संपर्क बनाया. 26 जनवरी 1948 को एक बैठक बघाट हॉल में हुई जहां ''हिमालया प्रांत'' का नाम हिमाचल प्रदेश रखा गया. हिमाचल के नामकरण का श्रेय सोलन शहर को जाता है.
विधिवत 15 अप्रैल सन 1948 को हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया, इसे केंद्र शासित चीफ कमिश्नर प्रोविंस का दर्जा दिया गया. केंद्र सरकार ने एनसी मेहता को प्रमुख चीफ कमिश्नर और ईपी मून को डिप्टी कमिश्नर के रूप में हिमाचल भेजा. चीफ कमिश्नर ने शिमला हिल्स की पहाड़ी रास्तों को मिलाकर महासू जिला बना दिया.
1952 तक केंद्र सरकार के संरक्षण में विकसित होता रहा. लोकप्रिय सरकार न होने से पहाड़ी नेता और प्रजा का स्वराज का सपना पूरा हुआ. डॉ. यशवंत सिंह के नेतृत्व में केंद्रीय सरकार से संवैधानिक संघर्ष किया, 'पार्ट सी स्टेट' का दर्जा देकर इसके लिए विधानमंडल की व्यवस्था कर ली.
पहाड़ी राज्यों में हिमाचल का अग्रणी स्थान
24 मार्च 1952 को डॉ. परमार प्रथम मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश के बने, पड़ोसी राज्य पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों चाहते थे कि हिमाचल का पंजाब में विलय हो जाए और वृहत पंजाब बना दिया जाए, लेकिन हिमाचल प्रदेश के दूरदर्शी मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश को सभी पहाड़ी क्षेत्रों में अग्रणी स्थान प्रदान करने में एक ठोस सुधार किया. उन्होंने एक लंबी जद्दोजहद के उपरांत 'विशाल हिमाचल' बनाने में सफलता प्राप्त की.
1 नवंबर 1966 को पंजाब के पुनर्गठन के समय उसके पहाड़ी क्षेत्रों - कांगड़ा, लाहौल स्पीति, शिमला और कुल्लू को हिमाचल में मिला दिया, अभी तक सोलन महासू जिले की तहसील थी. महासू विस्तृत क्षेत्र वाला जिला था. जोकि प्रशासन की पहुंच से बाहर हुआ करता था. महासू जिला की राजधानी कुसुम्पटी थी, क्योंकि शिमला सदर हिमाचल का अंग नहीं था.
अब शुरू हुआ सोलन के अस्तित्व में आने का रास्ता
सितंबर 1972 को महासू जिला के दो भाग कर दिए गए शिमला और सोलन. इसका श्रेय डॉक्टर परमार को जाता है, डॉक्टर परमार ने कहा था हिमाचल प्रदेश के 4 जिलों में महासू जिले की संस्कृति और उत्पत्ति अपने आप में भिन्न है. इसकी सीमाएं जहां एक और कालका से लगती है .
उत्तर में इसकी सीमाएं तिब्बत को छूती है, पेप्सू राज्य का कोहिस्तान जिला जिसका मुख्यालय कंडाघाट है, शिमला कस्बा इसमें जतोग छावनी इलाके शामिल हैं. इन क्षेत्रों की भाषा रीति रिवाज व संस्कृति हिमाचल से मिलती है, इसीलिए महासू के दो भाग होने चाहिए और यह 1 सितंबर 1972 को हो गया.
1 सितम्बर 1972 को रखी गई थी सोलन की नीव
सितंबर 1972 को अस्तित्व में आने के बाद से जिला सोलन लगातार विकास की राह पर चल रहा है. प्राचीन ऐतिहासिक शिवालिक की पहाड़ियों से सोलन घिरा हुआ है, दून और सपरून इसकी दो घाटियां हैं जहां फल और अनाज काफी मात्रा में पैदा होते हैं, गिरी-गंगा नदी इसकी सीमाएं से छूती हुई जिला सिरमौर में बहती हैं.
सोलन जिला राजाओं के शासन से जुड़ा हुआ है, 12 ठकुराइओं में से एक बघाट ठकुराई थी जिसके राणा दुर्गा सिंह को अच्छे प्रशासन के लिए ब्रिटिश सरकार ने राजा की उपाधि प्रदान की थी, राजा दुर्गा सिंह अपने वंश के 77वें राजा थे इनका महल राज देवी माता शूलिनी के मंदिर के साथ ही स्थित है. राजा दुर्गा सिंह एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जिन्हें लोग महर्षि दुर्गा सिंह के नाम से भी पुकारते थे.
शिक्षा हब में भी जिला सोलन पकड़ रहा रफ्तार
1972 से जिला बनने के उपरांत सोलन जिला में लगातार प्रगति व विकास चल रहा है. सोलन इस समय प्रदेश का एजुकेशन हब बन चुका है. जिले में ही डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्योनिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी स्थापित है, जो एशिया में दूसरे स्थान पर है यहां फलों तथा वन संपदा पर खोज काम किया जाता है.
इसके अतिरिक्त जिला में आठ विश्वविद्यालय हैं जहां मानविकी, विज्ञान, वाणिज्य, इंजीनियरिंग, चिकित्सा की विधि और होटल मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में अध्ययनरत शोध कार्य किया जाता है. यहां न केवल भारत बल्कि अन्य पड़ोसी देशों से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं.
मशरूम सिटी का दर्जा भी है प्राप्त
इस जिले में खुम्भ उत्पादन केंद्र भी स्थापित है जहां अनुसंधान कार्य किया था है सोलन शहर मशरूम सिटी के नाम से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है, खुम्भ के बीजों का निर्यात कई राज्यों तथा विदेशों में यहां से किया जाता है वहीं अब किसान भी मशरूम की खेती से अपनी आजीविका कमा रहे हैं.
रेड गोल्ड ऑफ सिटी का दर्जा भी है प्राप्त
जिला सोलन में अधिकतर लोग कृषि पर आधारित है. सोलन जिला की प्रमुख फसल टमाटर मानी जाती है हर सालों सोलन सब्जी मंडी मे लाखों का टमाटर का व्यापार होता है,शायद इसी वजह से ही भारत मे सोलन को रेड गोल्ड ऑफ सिटी का दर्जा भी दिया गया है.
पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा सोलन
पर्यटन की दृष्टि से सोलन ऊंचाइयां छू रहा है जिसने आर्थिकी को सुदृढ़ करने में अपना भरपूर योगदान दिया है, सोलन धर्मपुर, कसौली, चायल, सपाटू, डगशाई, धारों की धार, अश्विनी खड्ड, गांधीग्राम जैसे स्थल सालभर पर्यटकों को लुभाते हैं, जिसमें युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है और स्थानों का सौंदर्यीकरण भी हो रहा है. जम्मू-कश्मीर जैसे पर्यटन स्थलों को छोड़ सैलानी सोलन और शिमला को तरजीह दे रहे हैं.
शिवालीक की फैली हुई पहाड़ियां और मध्य की सर-सब्ज वादियां मानो आपस में प्रतियोगिता कर रही हो और शिखर पर पहुंचने के लिए उड़ान भर रही हो. प्रशासन द्वारा वनों के संरक्षण तथा जनता ने हरियाली को बढ़ाया है. जिले में कृषि बागवानी और सब्जी उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके कारण नैसर्गिक सौंदर्य बढ़ रहा है, शायद यही कारण है कि समूचा सोलन जनपद भारत की आंख का तारा बनता जा रहा है.