सोलन: डॉ. परमार ने पहाड़ों के विकास का खाका तैयार किया और उनका जीवन आज भी उनके चहेतों के बीच जिंदा है. डॉ. परमार को चाय और छोले पूरी खाना बेहद पसंद था, इसलिए जब भी वह सिरमौर से शिमला जाते या फिर शिमला से सिरमौर जाते हुए सोलन रुकते थे, तो वह सोलन बस स्टैंड पर एक छोटी सी दुकान जिसका नाम प्रेमजी हुआ करता था, वहां पर अकसर बैठा करते थे.
भले ही आज डॉ. यशवंत सिंह परमार हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनके चहेतों के दिलों में आज भी उनकी यादें मौजूद हैं. सोलन के प्रेमचंद शर्मा बताते हैं कि जितने बड़े आदमी डॉ. यशवंत सिंह परमार थे, उनके बारे में बात भी करना या उनके बारे में कुछ भी बोलना ठीक नहीं लगता है. उन्होंने बताया कि आज भी जब उनकी याद आती है तो मन उल्लास से भर जाता है. प्रेमचंद कहते हैं कि आज अगर वह हमारे बीच होते तो हिमाचल में ऐसा विकास होता जो कभी सोच भी नहीं सकते.
विकास को देते थे प्राथमिकता
प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि जब वह डॉ. परमार से मिले तो वह बहुत कम आयु के थे उनकी उम्र उस समय लगभग 20 से 25 साल की आयु की रही होगी, लेकिन डॉ. परमार का मार्गदर्शन उन्हें मिलता था. उन्होंने कहा कि एक बार जब वह शिमला उनसे मिलने गए तो दफ्तरों में बैठने और ना ही पानी पीने की सुविधा होती थी.
डॉ. परमार के शब्द आज भी गूंजते है कानों में
प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि जब भी डॉ. परमार गांव जाते थे या फिर सोलन में रुकते थे तो वह हमेशा उनकी दुकान पर चाय और पुरी का नाश्ता किया करते थे, एक बार की बात है जब उन्होंने चाय और पूरी के पैसे लेने से मना किया तो डॉ. परमार खड़े होकर कहने लगे कि प्रेम तुम मेरा दुकान में आने का रास्ता बंद कर रहे हो.
आज भी दुकान में परमार जी के साथ लगाए ठहाके आते हैं याद
प्रेमचंद शर्मा ने एक वाक्य याद करते हुए बताया कि एक बार की बात है जब डॉ. परमार अपने गांव सिरमौर जा रहे थे तो बस ओल्ड बस स्टैंड पर खड़ी थी और डॉ. परमार उनकी दुकान पर चाय पीने के लिए आ गए, उस समय प्रेमचंद शर्मा ने कहा कि डॉ. परमार मैं आपका सामान फ्रंट सीट पर रख देता हूं तो डॉ.परमार जोर -जोर से ठहाका लगाकर हंसने लगे.
हमेशा करते थे हिमाचल के विकास की बातें
प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि जब भी वह परमार साहब से मिले तब-तब वह हमेशा हिमाचल के लोगों की विकास की बातें किया करते थे. वह कहते थे कि जिस तरह से बड़े-बड़े शहरों में हर सुविधा हर व्यक्ति को मिलती है, उसी तरह हर सुविधा हिमाचल के हर एक गांव में मिले. प्रेमचंद शर्मा ने कहा कि डॉ. परमार हमेशा 100 साल आगे की सोच रखते थे, हिमाचल का आदमी भी हर सुबे की तरह हर चीजों में आगे रहे यह डॉक्टर परमार की सोच हुआ करती थी.
प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि जब डॉ. परमार साहब इस्तीफा देकर अपने घर वापस जा रहे थे तो वह उस समय भी उनकी दुकान पर चाय पीने के लिए रुके थे, लेकिन जो नूर उनके चेहरे पर हमेशा रहता था, वह उस दिन भी मौजूद था. उस समय एक पल के लिए भी उन्हें ऐसा नहीं लगा कि वह अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आए हैं.