सोलन: इस साल हिंदुस्तान आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. आजादी के इतने सालों बाद भी हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में मौजूद डगशाई जेल उन जगहों में से एक है, जिसकी बुरी यादें आज भी ताजा हैं. डगशाई जेल में हमारे स्वंतत्रता सेनानियों को बहुत सी तकलीफें दी गई, जिन्हें याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती है.
डगशाई जेल ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई. डगशाई इलाके को 1847 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थापित किया था. अंग्रेजों ने पटियाला के राजा से इस क्षेत्र के 5 गांवों को मिलाकर डगशाई की स्थापना की थी. यह जेल आज भी एक खौफनाक मंजर दर्शाती है. साल 1920 में महात्मा गांधी ने डगशाई जेल में 2 दिन बिताए थे.
महात्मा गांधी जेल में बंद आयरिश कैदियों से मिलने के आए थे. आयरिश सैनिकों की आकस्मिक गिरफ्तारी ने महात्मा गांधी को डगशाई आने के लिए प्रेरित किया था, ताकि वह यहां आकर इसका आंकलन का सके. गांधी जी के दौरे को लेकर अंग्रेजों ने उनके ठहरने की व्यवस्था छावनी क्षेत्र में की थी, लेकिन उन्होंने जेल में ही ठहरने की मांग की थी.
जेल में बनी कालकोठरी आज भी भयानक है. यहां पर अंधेरा है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों के समय में इस जेल में किस कदर कैदियों को यातनाएं दी जाती थीं. इस जेल की दीवारें आज भी अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी को बयां करती हैं. शारीरिक तनाव के अलावा कभी-कभी कैदियों को अनुशासनहीनता का अनुभव महसूस कराने के लिए मानवीय दंड भी दिया जाता था.
बताया जाता है कि कैदी को कैद करके दोनों दरवाजों के बीच में खड़ा किया जाता. दोनों दरवाजों पर ताला लगाने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता है कि कैदी बिना आराम किए कई घंटों इन दरवाजों के बीच में रहे. इस जेल में कैदियों का एक कार्ड भी बनता था. इस कार्ड में कैदी का पूरा ब्यौरा जिसमें उनका नाम, रंग, देश, अपराध, कारावास की अवधि और फैसले की तारीख लिखी जाती थी.
महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को शिमला में ट्रायल के दौरान डगशाई जेल लाया गया था. जेल के मुख्य द्वार के एंट्री के साथ वाले सेल में गोडसे को रखा गया था. यहां पर गोडसे की फोटो दीवार पर लटकी हुई है. गोडसे ही इस जेल का अंतिम कैदी था. उसके बाद जेल में कैदियों को रखना बंद कर दिया गया था.
पहाड़ पर बनी यह सेंट्रल जेल अंडमान निकोबार की जेल की तरह ही बनाई गई थी. यहां कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया था. यहां कैदियों के माथे पर गर्म सलाखों से दागा जाता था. इसलिए इसे 'दाग-ए-शाही' सजा कहा जाता था. दाग-ए-शाही नाम से ही डगशाई नाम उत्पन्न हुआ है.
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