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भस्मासुर से छिपते-छिपाते कुनिहार की शिव तांडव गुफा में छिप गए थे भोलेनाथ, शेषनाग ने की थी रक्षा! - शिव तांडव गुफा

शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है. यहां पर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी पर्यटक शिव परिवार के दर्शन के लिए आते हैं. गुफा में शिवरात्रि व श्रावण के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है. हर सोमवार को भोले बाबा के दर्शनों के लिए यहां लोगों का तांता लगा रहता है.

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Published : May 31, 2019, 9:25 PM IST

सोलन: जिला के कुनिहार में भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है. गुफा में हर सोमवार को श्रद्धालूओं का तांता लगा रहता है. शिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें श्रद्धालूओं का जमावड़ा देखने लायक होता है.

kunihar
शिव तांडव गुफा.

बताया जाता है कि शिव तांडव गुफा के अंदर गाय के थनों के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था, लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ के परिणाम के चलते अब चट्टानों से पानी गिरना भी बंद हो गया है.

मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था. शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है. यहां पर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी पर्यटक शिव परिवार के दर्शन के लिए आते हैं. गुफा में शिवरात्रि व श्रावण के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है. हर सोमवार को भोले बाबा के दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहता है. इस गुफा के अंदर प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है, यहां शिव परिवार के साथ-साथ नंदी की शिला भी स्थापित है. बताया जाता है कि गुफा में एक रास्ता भी होता था, लेकिन ये रास्ता अब बंद हो गया है. यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है.

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शिव तांडव गुफा.

गुफा का इतिहास
आपने शिव पुराण में ये कथा तो सुनी ही होगी कि भस्मासुर ने शिव आराधना कर शिव भगवान को प्रसन्न करने के बाद वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. भस्मासुर ने वरदान का प्रयोग भोले शंकर पर ही करना चाहा और फिर भोले शंकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में छुप रहे थे, जहां भी वे जाते प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते.

भोले शंकर ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया. संभवत इस गुफा के भीतर फनेसश्वर शेष नाग मग्न मुद्रा में फन फैलाए बैठे थे. त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशालकाय फन के नीचे छुपा लिया और जब भस्मासुर ने चिंघाड़ते हुए गुफा में प्रवेश किया तो वो फन फैलाए शेषनाग के डर से शिव के पास नहीं आ पाया और झुंझलाकर उलटे पांव लौट गया. गुफा में भोले शंकर अपनी पिंडी, शेषनाग फन और नंदी बैल का स्मृति चिन्ह छोड़कर अदृश्य हो गए.

ये भी पढ़ें: एनजीटी के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची प्रदेश सरकार, सैकड़ों शिमला वासियों को राहत की उम्मीद

गुफा के प्रवेश द्वार पर शिला रूपी फन फैलाए शेषनाग की आकृति अपने मस्तक के ऊपर समस्त गुफा का भार वहन किए हुए हैं. बताया जाता है कि पहले शिव गुफा के संकरण मार्ग का धोतक था. इसमें प्रदेश के लिए पेट के बल सरक कर या झुकते हुए रेंग कर जाना पड़ता था. गुफा में स्वयंभू तीन फुट ऊंचा शिवलिंग हैं, उनके दाहिनी ओर पूजित मां पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा, उनके ठीक सामने नंदी महाराज की आकृति है.

सोलन: जिला के कुनिहार में भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है. गुफा में हर सोमवार को श्रद्धालूओं का तांता लगा रहता है. शिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें श्रद्धालूओं का जमावड़ा देखने लायक होता है.

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शिव तांडव गुफा.

बताया जाता है कि शिव तांडव गुफा के अंदर गाय के थनों के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था, लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ के परिणाम के चलते अब चट्टानों से पानी गिरना भी बंद हो गया है.

मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था. शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है. यहां पर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी पर्यटक शिव परिवार के दर्शन के लिए आते हैं. गुफा में शिवरात्रि व श्रावण के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है. हर सोमवार को भोले बाबा के दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहता है. इस गुफा के अंदर प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है, यहां शिव परिवार के साथ-साथ नंदी की शिला भी स्थापित है. बताया जाता है कि गुफा में एक रास्ता भी होता था, लेकिन ये रास्ता अब बंद हो गया है. यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है.

kunihar
शिव तांडव गुफा.

गुफा का इतिहास
आपने शिव पुराण में ये कथा तो सुनी ही होगी कि भस्मासुर ने शिव आराधना कर शिव भगवान को प्रसन्न करने के बाद वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. भस्मासुर ने वरदान का प्रयोग भोले शंकर पर ही करना चाहा और फिर भोले शंकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में छुप रहे थे, जहां भी वे जाते प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते.

भोले शंकर ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया. संभवत इस गुफा के भीतर फनेसश्वर शेष नाग मग्न मुद्रा में फन फैलाए बैठे थे. त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशालकाय फन के नीचे छुपा लिया और जब भस्मासुर ने चिंघाड़ते हुए गुफा में प्रवेश किया तो वो फन फैलाए शेषनाग के डर से शिव के पास नहीं आ पाया और झुंझलाकर उलटे पांव लौट गया. गुफा में भोले शंकर अपनी पिंडी, शेषनाग फन और नंदी बैल का स्मृति चिन्ह छोड़कर अदृश्य हो गए.

ये भी पढ़ें: एनजीटी के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची प्रदेश सरकार, सैकड़ों शिमला वासियों को राहत की उम्मीद

गुफा के प्रवेश द्वार पर शिला रूपी फन फैलाए शेषनाग की आकृति अपने मस्तक के ऊपर समस्त गुफा का भार वहन किए हुए हैं. बताया जाता है कि पहले शिव गुफा के संकरण मार्ग का धोतक था. इसमें प्रदेश के लिए पेट के बल सरक कर या झुकते हुए रेंग कर जाना पड़ता था. गुफा में स्वयंभू तीन फुट ऊंचा शिवलिंग हैं, उनके दाहिनी ओर पूजित मां पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा, उनके ठीक सामने नंदी महाराज की आकृति है.


---------- Forwarded message ---------
From: Ricky Yogesh <rickyyogesh000@gmail.com>
Date: Fri, May 31, 2019, 3:27 PM
Subject: यहां पर शिवलिंग, शेष नाग व नंदि बैल का स्मृति चिन्ह विराजमान
To: <rajneeshkumar@etvbharat.com>


यहां पर शिवलिंग, शेष नाग व नंदि बैल का स्मृति चिन्ह विराजमान





सोलन जिला के कुनिहार में भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है शिव तांडव गुफा कुनिहार प्राचीनतम इतिहास है गुफा के अंदर गाय के थनों के आकार की चट्टानों से कभी  शिवलिंग पर दूध गिरता था लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ का परिणाम है कि अब चट्टानों  से पानी गिरना बंद हो गया है।


मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था। शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है यहां पर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्य से भी पर्यटक शिव परिवार के दर्शन के लिए आते  हैं यहां पर शिवरात्रि व श्रावण मास के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है वह हर सोमवार को भोले बाबा के दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहता है इस गुफा के अंदर ही प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है यहां शिव परिवार के साथ-साथ नंदी की शिला स्थापित है बताया जाता है कि गुफा से एक रास्ता भी होता था लेकिन अब बंद हो गया है यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है।


गुफा का इतिहास

भस्मासुर ने शिव आराधना करके जब शिव भगवान को प्रसन्न करके वरदान मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा।  
भाग्य की विडंबना का खेल देखिए भस्मासुर ने वरदान की परीक्षा भोले  शंकर पर ही परखनी चाहि फिर क्या था भोले शंकर प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में अपने आप को छुपाते फिरते जा रहे थे जहां भी वे जाते प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते। भोले शंकर ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राण रक्षा के लिए प्रवेश किया। संभवत इस गुफा के भीतर फनेसश्वर शेष नाग  मग्न मुद्रा में फन फैलाए बैठे हैं त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशाल काय फन के नीचे छुपा लिया।  दूसरे क्षण भस्मासुर ने चिंघाड़ते हुए  शिव ड्यार कुनिहार में प्रवेश किया और चारों और भोलेनाथ की खोज कि पर वह फन फैलाए शेषनाग के डर से  उनके नीचे नहीं जा सका।  और झुंझलाकर उलटे पांव लौट गया। महादेव सुरक्षित हुए और गुफा में भोले शंकर प्रतीक अपनी पिंडी शेषनाग फन और नंदी बैल का समृति चिन्ह छोड़कर अदृश्य हो गए।


इस के प्रवेश द्वार पर शीला रूपी फन फैलाए शेष जी की आकृति अपने मस्तक के ऊपर समस्त गुफा का भार वहन किए हुए हैं।  बताया जाता है कि पहले शिव गुफा के संकरण मार्ग का धोतक था इसमें प्रदेश के लिए पेट के बल सरक कर अथवा झुकते हुए रेंग कर जाना पड़ता था। 


गुफा में स्वयंभू तीन फुट ऊंचा शिवलिंग हैं उनके दाहिनी और पूजित मां पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा, उनके ठीक सामने नंदी महाराज की आकृति इस भूभाग में एक और आश्चर्य वह है स्वयंभू शिवलिंग की पिंडी के ऊपर बने गाय के स्तन जनश्रुति के अनुसार सतयुग में इन स्थानों से पिंडी के ऊपर गाय के दूध की धारा टपकती थी। शिव गुफा से जुड़ी कई लोक गथाएं भी हैं।
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