सोलन: कोरोना महामारी से निपटने के लिए जिन दवाओं की जरूरत है, उनके कच्चे माल के लिए भारत चीन पर ही निर्भर है. देश के फार्मा हब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 650 दवा कंपनियां हैं, जो भारत और विदेश में भी दवा आपूर्ति करती हैं. इनमें से अधिकांश के लिए कच्चा माल चीन से आता है. चीन ने बीते दिनों भारत के लिए विमान सेवाएं बंद कर दी गई थी, नतीजतन दो सप्ताह तक एपीआइ की आपूर्ति बंद रही.
दवाइयों के लिए कम पड़ा कच्चा माल
भारत बेशक आकार के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है लेकिन आवश्यक दवाओं का उत्पादन कच्चे माल की कमी के कारण संकट में हैं. दवाएं इसलिए महंगी मिल रही हैं क्योंकि कच्चा माल नहीं है. भारत के लिए 85 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आता है, भारत में केवल 15 फीसदी बनता है. यह रॉ मटेरियल या कच्चा माल एपीआई के नाम से जाना जाता है यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट. बीते कुछ महीने के दौरान जीवन रक्षक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम कई गुणा बढ़े हैं. बढ़ती हुई मांग के जवाब में 50 फीसदी माल भी चीन से दवा उद्योग को नहीं मिल रहा है. अगर ऐसा ही रहा तो देशभर में जीवन रक्षक दवाओं का संकट पैदा हो सकता है. खास बात यह है कि कोरोना उपचार के दौरान इस्तेमाल हो रही दवाओं के कच्चे माल की मांग ही सबसे अधिक बढ़ी है.
650 दवा कम्पनियां हो रही प्रभावित
देश के फार्मा हब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 650 दवा कंपनियां हैं जो भारत और विदेश में भी दवा आपूर्ति करती हैं. दवा उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष डॉक्टर राजेश गुप्ता कहते हैं कि एपीआई की आपूर्ति कम होने और कीमतें बढ़ने से छोटे दवा उद्योग सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं. चीन से समय पर सामान नहीं आ रहा है. एपीआई के बढ़ते रेट का मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया गया है.
एपीआई के बढ़ते दाम
एपीआइ (प्रतिकिलो) | पुराना रेट | नया रेट |
पैरासिटामोल | 350 | 900 |
आइवरमेक्टिन | 15000 | 70000 |
डॉक्सीसाइक्लिन | 6000 | 15500 |
एजिथ्रोमाइसिन | 8500 | 14000 |
प्रोपीलीन ग्लाइकोल | 140 | 400 |
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