सोलन: खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन ने गैनोडर्मा लूसीडम नाम की प्रजाति का मशरूम विकसित किया है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की बाजार में ज्यादातर मांग है. इस मशरूम को कैंसर और एड्से जैसे बीमारियों के लिए रामबाण बताया जा रहा है. वहीं, अगर मशरूम की इस प्रजाति के प्रोडक्ट्स की बात की जाए तो गैनोडर्मा कैप्सूल, गैनोडर्मा कॉफी और गैनोडर्मा टी जैसे प्रोडक्ट बाजार में उतारे जा चुके हैं.
कैप्सूल के रूप में किया जाता है इसका प्रयोग :
मशरूम अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम खाने में कड़वा होता है जिस कारण इसका उपयोग कैप्सूल के तौर पर किया जाता है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम कि इस प्रजाति का प्रयोग दवाइयों के रूप में ज्यादातर किया जाता है. जिस कारण इसकी बाजारों में कीमत 8000 से 9000 तक आंकी जाती है. वहीं, खुम्ब अनुसंधान केंद्र इसे 5000 प्रति किलो बेच रहा है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाती है. वहीं, यह मशरुम बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में सक्षम है.
लकड़ी के बुरादे में उगाई जाती है प्रजाति
वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि इस मशरूम को लकड़ी के बुरादे में उगाया जाता है. ब्लॉक बनाने के बाद इसमें मशरूम का बीज डाला जाता है और इसे 18 से 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है. हल्की ग्रोथ के बाद इसे 23 से 25 डिग्री तापमान में रखते हैं. यह मशरूम 35 से 40 दिन में तैयार हो जाती है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं और बेरोजगार युवा मशरूम कि इस प्रजाति की खेती करके अच्छी मात्रा में आजीविका कमा सकते हैं क्योंकि यह खेती कम लागत के साधनों से तैयार की जाती है.