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इस मशरूम से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों से मिलेगा निजात! 8 से 9 हजार रुपये प्रति किलो है कीमत

गैनोडर्मा लूसीडम को ऋषि के नाम से भी जाना जाता है.गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाती है. खुम्ब अनुसंधान केंद्र ने मशरूम पर रिसर्च करके उसे बाजार में उतारा जाता है.

गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम
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Published : Nov 4, 2019, 2:02 PM IST

सोलन: खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन ने गैनोडर्मा लूसीडम नाम की प्रजाति का मशरूम विकसित किया है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की बाजार में ज्यादातर मांग है. इस मशरूम को कैंसर और एड्से जैसे बीमारियों के लिए रामबाण बताया जा रहा है. वहीं, अगर मशरूम की इस प्रजाति के प्रोडक्ट्स की बात की जाए तो गैनोडर्मा कैप्सूल, गैनोडर्मा कॉफी और गैनोडर्मा टी जैसे प्रोडक्ट बाजार में उतारे जा चुके हैं.

Ganoderma lucidum
गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम.

कैप्सूल के रूप में किया जाता है इसका प्रयोग :
मशरूम अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम खाने में कड़वा होता है जिस कारण इसका उपयोग कैप्सूल के तौर पर किया जाता है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम कि इस प्रजाति का प्रयोग दवाइयों के रूप में ज्यादातर किया जाता है. जिस कारण इसकी बाजारों में कीमत 8000 से 9000 तक आंकी जाती है. वहीं, खुम्ब अनुसंधान केंद्र इसे 5000 प्रति किलो बेच रहा है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाती है. वहीं, यह मशरुम बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में सक्षम है.

Ganoderma lucidum
गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम.

लकड़ी के बुरादे में उगाई जाती है प्रजाति
वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि इस मशरूम को लकड़ी के बुरादे में उगाया जाता है. ब्लॉक बनाने के बाद इसमें मशरूम का बीज डाला जाता है और इसे 18 से 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है. हल्की ग्रोथ के बाद इसे 23 से 25 डिग्री तापमान में रखते हैं. यह मशरूम 35 से 40 दिन में तैयार हो जाती है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं और बेरोजगार युवा मशरूम कि इस प्रजाति की खेती करके अच्छी मात्रा में आजीविका कमा सकते हैं क्योंकि यह खेती कम लागत के साधनों से तैयार की जाती है.

वीडियो

सोलन: खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन ने गैनोडर्मा लूसीडम नाम की प्रजाति का मशरूम विकसित किया है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की बाजार में ज्यादातर मांग है. इस मशरूम को कैंसर और एड्से जैसे बीमारियों के लिए रामबाण बताया जा रहा है. वहीं, अगर मशरूम की इस प्रजाति के प्रोडक्ट्स की बात की जाए तो गैनोडर्मा कैप्सूल, गैनोडर्मा कॉफी और गैनोडर्मा टी जैसे प्रोडक्ट बाजार में उतारे जा चुके हैं.

Ganoderma lucidum
गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम.

कैप्सूल के रूप में किया जाता है इसका प्रयोग :
मशरूम अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम खाने में कड़वा होता है जिस कारण इसका उपयोग कैप्सूल के तौर पर किया जाता है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि गैनोडर्मा मशरूम कि इस प्रजाति का प्रयोग दवाइयों के रूप में ज्यादातर किया जाता है. जिस कारण इसकी बाजारों में कीमत 8000 से 9000 तक आंकी जाती है. वहीं, खुम्ब अनुसंधान केंद्र इसे 5000 प्रति किलो बेच रहा है. गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाती है. वहीं, यह मशरुम बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में सक्षम है.

Ganoderma lucidum
गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम.

लकड़ी के बुरादे में उगाई जाती है प्रजाति
वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि इस मशरूम को लकड़ी के बुरादे में उगाया जाता है. ब्लॉक बनाने के बाद इसमें मशरूम का बीज डाला जाता है और इसे 18 से 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है. हल्की ग्रोथ के बाद इसे 23 से 25 डिग्री तापमान में रखते हैं. यह मशरूम 35 से 40 दिन में तैयार हो जाती है. डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं और बेरोजगार युवा मशरूम कि इस प्रजाति की खेती करके अच्छी मात्रा में आजीविका कमा सकते हैं क्योंकि यह खेती कम लागत के साधनों से तैयार की जाती है.

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Intro: Etv bharat Exclusive.....एड्स और कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन ने ढूंढ निकाला रामबाण

:- मशरूम कि ईस प्रजाति से लीवर प्रॉब्लम और एड्स जैसी बीमारियों का निकाला जाएगा समाधान

:- कुंभ अनुसंधान केंद्र में इस मशरूम की कीमत ₹5000 किलो, वहीं पंजाब हरियाणा जैसे प्रदेशों में 8000 से 9000

:- कम लागत की इस मशरूम की खेती से बेरोजगार युवा और महिलाये के लिए बन सकता है आजीविका का साधन

खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन में मशरूम की कई प्रजातियां पाई जाती है। खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन में मशरूम पर रिसर्च करके उसे बाजार में उतारा जाता है।
वहीं अगर बात मशरुम के दवाइयों के रूप में उपयोग में लाए जाने की की जाए तो मशरूम अनुसंधान केंद्र सोलन ने एक नई मशरुम की प्रजाति जिसका नाम गैनोडर्मा लूसीडम है जिसे ऋषि के नाम से भी जाना जाता है का शोध किया है।

बाजार मे आये दिन बढ़ रही है मांग:-
बात अगर गेनोडरमा लूसीडम कि ईस मशरुम प्रजाति की जाए तो इस मशरूम की बाजार में ज्यादातर मांग रहती है वहीं अगर मशरूम की इस प्रजाति के प्रोडक्ट्स की की जाए तो बाजार मे गैनोडर्मा कैप्सूल,गैनोडर्मा कॉफी और गैनोडर्मा टी जैसे प्रोडक्ट बाजार में इसके पाए जाते हैं।





Body:कैप्सूल के रूप में किया जाता है इसका प्रयोग खाने में होता है कड़वा:-
मशरूम अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि गेनोडरमा मशरूम खाने में कड़वा होता है जिस कारण इसका उपयोग कैप्सूल के तौर पर किया जाता है।



पंजाब छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इसकी कीमत 8000 से 9000:-
डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि गेनोवर्मा मशरूम कि ईस प्रजाति का प्रयोग दवाइयों के रूप में ज्यादातर किया जाता है। जिस कारण इसकी बाजारों में कीमत 8000 से 9000 तक आंकी जाती है।वहीं अगर बात खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन की की जाए तो इसे ₹5000 प्रति किलो बेचा जा रहा है।


कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के लिए मशरूम की प्रजाति फायदेमंद:-
गनोडरमा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाती है वही यह मशरुम बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में सक्षम है।



Conclusion:लकड़ी के बुरादे में उगाई जाती हिरेशियम मशरूम:-
वैज्ञानिक सतीश शर्मा ने बताया कि इस मशरूम को लकड़ी के बुरादे में उगाया जाता है । ब्लॉक बनाने के बाद इसमें मशरूम का बीज डाला जाता है, और इसे 18 से 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है, थोड़ी सी ग्रोथ के बाद इसे 23 से 25 डिग्री तापमान में रखते हैं ।यह मशरूम 35 से 40 दिन में तैयार हो जाती है।


ग्रामीण महिलाओं और बेरोजगार युवाओं के लिए बन सकता है आजीविका का सहारा:-
डॉक्टर सतीश शर्मा ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं और बेरोजगार युवा मशरूम कि इस प्रजाति की खेती करके अच्छी मात्रा में आजीविका कमा सकते हैं क्योंकि यह खेती कम लागत के साधनों से तैयार की जाती है।
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