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अपना वजूद खो रहे लकड़ी के तीन मंजिला मकान, गर्मियों में ठंडे और ठंड में गरम रहते हैं ये घर

ट्रांसगिरी क्षेत्र शिलाई का दुर्गम गांव कांडी कयाणा एक ऐसा गांव है, जहां पर आज भी लकड़ी के तीन मंजिला मकान मौजूद है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में विकास की राह पर लोग इतने आगे बढ़ चुके हैं की लकड़ी से बने इन पुराने मकानों का वजूद खत्म होता जा रहा है. अब पुराने मकानों की जगह सीमेंट से नए मकान बनाए जा रहे है.

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Published : Oct 29, 2019, 9:52 AM IST

wooden house in kandi kayana village

पांवटा साहिब: जिला सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र शिलाई का कांडी कयाणा एक ऐसा गांव है, जहां पर आज भी लकड़ी के तीन मंजिला मकान मौजूद है. हालांकि शिलाई क्षेत्र में बहुत सी जगहों पर दो मंजिला मकान तो नजर आते हैं, लेकिन लकड़ी के बने तीन मंजिला मकान कम ही नजर आते हैं.

देवदार की लकड़ियों से बने ये मकान आज भी हमारी प्राचीनतम शैली को दिखाते हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण भूकंप से हमेशा ही ज्यादा नुकसान होने की संभावना बनी रहती है, लेकिन लकड़ी के मकान का सबसे बड़ा फायदा ये है कि भूकंप का इन मकानों पर कोई असर नहीं पड़ता.

इन लकड़ी के मकानों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि बरसात के दिनों में इन मकानों में सीलन नहीं आती, जबकि सीमेंट से तैयार किए गए मकानों में सीलन आ जाती है. दिलचस्प बात ये है कि मकान ये ठंड के मौसम में गर्म और गर्मियों मे ठंडे रहते हैं. इससे लोगों को हर मौसम में राहत मिलती है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में विकास की राह पर लोग इतने आगे बढ़ चुके हैं की लकड़ी से बने इन पुराने मकानों का वजूद खत्म होता जा रहा है. अब पुराने मकानों की जगह सीमेंट से नए मकान बनाए जा रहे है.

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पांवटा साहिब: जिला सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र शिलाई का कांडी कयाणा एक ऐसा गांव है, जहां पर आज भी लकड़ी के तीन मंजिला मकान मौजूद है. हालांकि शिलाई क्षेत्र में बहुत सी जगहों पर दो मंजिला मकान तो नजर आते हैं, लेकिन लकड़ी के बने तीन मंजिला मकान कम ही नजर आते हैं.

देवदार की लकड़ियों से बने ये मकान आज भी हमारी प्राचीनतम शैली को दिखाते हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण भूकंप से हमेशा ही ज्यादा नुकसान होने की संभावना बनी रहती है, लेकिन लकड़ी के मकान का सबसे बड़ा फायदा ये है कि भूकंप का इन मकानों पर कोई असर नहीं पड़ता.

इन लकड़ी के मकानों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि बरसात के दिनों में इन मकानों में सीलन नहीं आती, जबकि सीमेंट से तैयार किए गए मकानों में सीलन आ जाती है. दिलचस्प बात ये है कि मकान ये ठंड के मौसम में गर्म और गर्मियों मे ठंडे रहते हैं. इससे लोगों को हर मौसम में राहत मिलती है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में विकास की राह पर लोग इतने आगे बढ़ चुके हैं की लकड़ी से बने इन पुराने मकानों का वजूद खत्म होता जा रहा है. अब पुराने मकानों की जगह सीमेंट से नए मकान बनाए जा रहे है.

वीडियो
Intro:
बर्फ के मौसम में याद आने वाले मकान
देवदार के लकड़ी से तैयार किए गए तीन मंजिले मकान आज भी मजबूती दिखा रहे हैं
सीमेंट के मकान से अच्छे हैं लकड़ी के मकान
गरीबों में ठंडे और ठंड में गरम होते हैं लकड़ी का मकानBody:
ट्रांसगिरी क्षेत्र शिलाई का दुर्गम गांव कांडी कयाणा एक ऐसा गांव है जहां पर आज भी तीन मंजिला मकान देवदार लकड़ी के मौजूद है हालांकि शिलाइ क्षेत्र में दो मंजिला मकान तो नजर आते है लकड़ी के मकान की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि बरसात के दिनों में लकड़ी के मकानों में सीलन नहीं आती जबकि के सीमेंट से तैयार किए गए मकानों में सीलन आहे जाता है बुजुर्ग कहते हैं कि सर्दियों में लकड़ी के मकान गर्म होते हैं और गर्मियों मे लकड़ी से बने मकान ठंडे हो जाते हैं जिससे लोगों को हर मौसम में राहत मिलती है पर विकास की राह पर लोग इतने आगे बढ़ चुके हैं कि पुराने मकानों की जगह पर नए मकान बनाए जा रहे हैं जबकि लकड़ियों के कई वर्षों से बने मकान आज भी अपनी मजबूती के सबूत स्वयं दिखाते हैं

गांव के लोगों ने बताया कि तीन मंजिला मकान का रहस्य है पहले बिल्डिंग पर पशुओं को रखा जाता है दूसरे मकान में अपने कीमती औजार कीमती गहने व अपने घर के मौजूदा लोग इन दूसरे बिल्डिंग बनाते रखे जाते थे जबकि बाकी परिवार के सभी सदस्य तीसरी बिल्डिंग पर ही अपना गुजर-बसर करते थे कई पीढ़ियों से ऐसा ही चल रहा है लकड़ी का मकान का सबसे बड़ा फायदा है कि भूकंप का इन मकानों पर कोई असर नहीं होता इन तीन मंजिला मकानों को बुजुर्गों ने कितनी मजबूती से बनाए हैं ताकि और भी कई पीढ़ियां इसमें रह सकती है।

बाइट 80 वर्षीय बुद्धिजीवी कल्याण सिंहConclusion:
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