ETV Bharat / state

गिरीपार के पारंपरिक बिशू मेले में बनती थी जोड़ियां, प्राचीन काल से चला आ रहा है मिलन का त्योहार

बिशू मेले के दौरान शिरोमणी शिरगुल के मंदिर में नए साल में खुशहाली, सुख समृद्धि, प्रेम व भाईचारा बना रहे इसके लिए बुरांश के फूल चढ़ाए जाते है. कुलिष्ट से आशीर्वाद लेने के बाद मिलन का ये त्योहार एक महीने तक चलता है.

बिशू मेले में ठोडा नृत्य
author img

By

Published : Apr 23, 2019, 5:32 AM IST

Updated : Apr 23, 2019, 7:39 AM IST

नाहन: प्राचीन व पारंपरिक मेलों का धनी ट्रांसगिरी क्षेत्र में इन दिनों बिशू मेले की धूम है. जिला सिरमौर के अलावा जिला शिमला व उतराखंड में इस दिनों जगह-जगह पर बिशू मेले का आयोजन हो रहा है. संक्रांति से लेकर जगह-जगह बिशू मेले मनाए जा रहे हैं.

बिशू मेले में ठोडा नृत्य खेल के जरिए लोगों का मनोरंजन किया जाता है. साथ कुश्ती दंगल, सांस्कृतिक लोकगीत, हारुल व नाटियों का दौर भी मेले में जारी रहता है. बिशू मेले में पूरे देश से पहलवान पहुंचते हैं. वहीं, इस दौरान क्षेत्र में मेहमानों की खूब आवभगत भी की जाती है.

traditional Bishu fair
बिशू मेला में नाटी डालते लोग

दरअसल गिरीपार क्षेत्र में इन दिनों बिशू मेले की धूम मची है. शिरोमणी शिरगुल के मंदिर में नए साल में खुशहाली, सुख समृद्धि, प्रेम व भाईचारा बना रहे इसके लिए बुरांश के फूल चढ़ाए जाते है. सबसे पहले लोग गांव के साझा आंगन के एकत्रित होते हैं. सभी बुरांश के फूल लेकर आते हैं और फिर ढोल नगाड़ों के साथ देव महिमा का गान शुरू होता है. मंदिर परिसर पहुंच कर कुलिष्ट को फूल अर्पित किए जाते हैं. पूजा अर्चना के बाद से समूचे क्षेत्र में मेले का आयोजन शुरू होता है.

समूचे क्षेत्र में एक दो दिनों तक अलग-अलग जगह पर आपसी मिलन के प्रतीक बिशु मेलों का आयोजन पूरे महीने चलता रहता है. प्राचीन काल से चली आ रही मेले की परंपरा को क्षेत्रीय लोग आज भी संजोए हुए हैं. मेले के दिन गांव में लोग एकत्रित होकर देव छड़ी को साक्षी मान कर आपसी भाईचारे में रहने का कुलिष्ट से आशीर्वाद लेकर पौराणिक संस्कृति के आधार पर देवछड़ी को गाजेबाजे के साथ मेला स्थल तक पहुंचाते हैं.

गिरीपार का पारंपरिक बिशू मेला

मेला स्थल पर सभी लोग देवता का आशीर्वाद लेते हैं और मेले का शुभारंभ होता है. इसके बाद लोकनाटी, हारुल का दौर शुरू होता है. जिसमें सभी मेहमानों से मनोरंजन करवाया जाता है. कुश्ती दंगल में प्रथम रहने वाली टीम को समानित किया जाता है. इसी तरह ठोडा नृत्य में भी अव्वल रहने वाली टीम को उपहार से सम्मानित किया जाता है.

शाम को महिलाएं बाहर से आए मेहमानों व खिलाड़ियों को खाने में ऊलऊले, टेलपक्की, अस्कोलि, पटांडे समेत दर्जनभर से ज्यादा पारंपरिक व्यंजन परोसती हैं. पुराने जमाने में युवाओं व युवतियों के लिए वर मेलों के माध्यम से ही ढूंढे जाते थे. तब आपसी संपर्क के सूत्रधारक बिशु मेले ही हुआ करते थे.

traditional Bishu fair
बिशू मेले में ठोडा नृत्य

गिरीपार क्षेत्र आज भी अपनी पंरपरा नहीं भूला है. क्षेत्र के युवाओं के लिए बिशु मेले ही बाहरी क्षेत्र से घर आने और सभी रिश्तेदार, सगे संबंधी समेत बाहरी लोगों से मिलने का माध्यम है. इसलिए हर वर्ष मेले का आयोजन निर्धारित तारीख पर पौराणिक संस्कृति के आधार पर ढोल धमाकों के साथ किया जाता है.

नाहन: प्राचीन व पारंपरिक मेलों का धनी ट्रांसगिरी क्षेत्र में इन दिनों बिशू मेले की धूम है. जिला सिरमौर के अलावा जिला शिमला व उतराखंड में इस दिनों जगह-जगह पर बिशू मेले का आयोजन हो रहा है. संक्रांति से लेकर जगह-जगह बिशू मेले मनाए जा रहे हैं.

बिशू मेले में ठोडा नृत्य खेल के जरिए लोगों का मनोरंजन किया जाता है. साथ कुश्ती दंगल, सांस्कृतिक लोकगीत, हारुल व नाटियों का दौर भी मेले में जारी रहता है. बिशू मेले में पूरे देश से पहलवान पहुंचते हैं. वहीं, इस दौरान क्षेत्र में मेहमानों की खूब आवभगत भी की जाती है.

traditional Bishu fair
बिशू मेला में नाटी डालते लोग

दरअसल गिरीपार क्षेत्र में इन दिनों बिशू मेले की धूम मची है. शिरोमणी शिरगुल के मंदिर में नए साल में खुशहाली, सुख समृद्धि, प्रेम व भाईचारा बना रहे इसके लिए बुरांश के फूल चढ़ाए जाते है. सबसे पहले लोग गांव के साझा आंगन के एकत्रित होते हैं. सभी बुरांश के फूल लेकर आते हैं और फिर ढोल नगाड़ों के साथ देव महिमा का गान शुरू होता है. मंदिर परिसर पहुंच कर कुलिष्ट को फूल अर्पित किए जाते हैं. पूजा अर्चना के बाद से समूचे क्षेत्र में मेले का आयोजन शुरू होता है.

समूचे क्षेत्र में एक दो दिनों तक अलग-अलग जगह पर आपसी मिलन के प्रतीक बिशु मेलों का आयोजन पूरे महीने चलता रहता है. प्राचीन काल से चली आ रही मेले की परंपरा को क्षेत्रीय लोग आज भी संजोए हुए हैं. मेले के दिन गांव में लोग एकत्रित होकर देव छड़ी को साक्षी मान कर आपसी भाईचारे में रहने का कुलिष्ट से आशीर्वाद लेकर पौराणिक संस्कृति के आधार पर देवछड़ी को गाजेबाजे के साथ मेला स्थल तक पहुंचाते हैं.

गिरीपार का पारंपरिक बिशू मेला

मेला स्थल पर सभी लोग देवता का आशीर्वाद लेते हैं और मेले का शुभारंभ होता है. इसके बाद लोकनाटी, हारुल का दौर शुरू होता है. जिसमें सभी मेहमानों से मनोरंजन करवाया जाता है. कुश्ती दंगल में प्रथम रहने वाली टीम को समानित किया जाता है. इसी तरह ठोडा नृत्य में भी अव्वल रहने वाली टीम को उपहार से सम्मानित किया जाता है.

शाम को महिलाएं बाहर से आए मेहमानों व खिलाड़ियों को खाने में ऊलऊले, टेलपक्की, अस्कोलि, पटांडे समेत दर्जनभर से ज्यादा पारंपरिक व्यंजन परोसती हैं. पुराने जमाने में युवाओं व युवतियों के लिए वर मेलों के माध्यम से ही ढूंढे जाते थे. तब आपसी संपर्क के सूत्रधारक बिशु मेले ही हुआ करते थे.

traditional Bishu fair
बिशू मेले में ठोडा नृत्य

गिरीपार क्षेत्र आज भी अपनी पंरपरा नहीं भूला है. क्षेत्र के युवाओं के लिए बिशु मेले ही बाहरी क्षेत्र से घर आने और सभी रिश्तेदार, सगे संबंधी समेत बाहरी लोगों से मिलने का माध्यम है. इसलिए हर वर्ष मेले का आयोजन निर्धारित तारीख पर पौराणिक संस्कृति के आधार पर ढोल धमाकों के साथ किया जाता है.

Intro:Body:

bishu fair


Conclusion:
Last Updated : Apr 23, 2019, 7:39 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.