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हेमकुंड यात्रा शुरू होने से गुरुद्वारा पांवटा साहिब में उमड़े श्रद्धालु, भीड़ ने तोड़े सारे रिकॉर्ड

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Published : Jun 25, 2022, 11:03 AM IST

पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारा (Paonta sahib gurudwara) में पिछले 15 दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. भीड़ ने पिछले 5 वर्ष का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. यहां पर श्रद्धालुओं के भारी तादाद में पहुंचने से गुरुद्वारा प्रबंधन को भी श्रद्धालुओं तक सुविधा पहुंचाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. पढ़ें पूरी खबर..

Paonta sahib gurudwara
Paonta sahib gurudwara

पांवटा साहिब: पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारा (Paonta sahib gurudwara) में पिछले 15 दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. भीड़ ने पिछले 5 वर्ष का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. यहां पर श्रद्धालुओं के भारी तादाद में पहुंचने से गुरुद्वारा प्रबंधन को भी श्रद्धालुओं तक सुविधा पहुंचाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. दरअसल हेमकुंड की यात्रा शुरू होने से गुरुद्वारे में इन दिनों इतनी भीड़ देखने को मिल रही है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों के लोग भारी तादाद में पांवटा साहिब पहुंच रहे हैं.

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान हरभजन सिंह ने बताया कि हेमकुंड की यात्रा शुरू (Hemkund Yatra Started) होने से श्रद्धालु पहले पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में दर्शन करने पहुंचते हैं, उसके बाद हेमकुंड जाते हैं. उन्होंने कहा कि रोजाना यहां 4 से 5 हजार लोग दर्शन करने पहुंचते थे, जिनके लिए गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी द्वारा प्रबंध किया जाता था. उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते यहां बीते दो सालों से कम संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे थे, लेकिन इस बार 20 से 25 हजार श्रद्धालु रोजाना यहां पहुंच रहे हैं, जिससे यहां पर गुरुद्वारा प्रबंधव कमेटी द्वारा सुविधाएं प्रदान करने में मुसीबत झेलनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे लंगर की व्यवस्था पूरी की गई है.

बता दें कि हिमाचल उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसा जिला सिरमौर का पांवटा साहिब सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है. पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था. इस जगह का नाम पहले पाओंटिका था. पौंटा शब्द का अर्थ है पैर, इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता है. ऐसा माना जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह एक बार अपने घोड़े से कहीं जा रहे थे और इसी स्थान पर पहुंच कर उनका घोड़े अपने आप रुक गया था. जिसके बाद गुरु गोबिंद सिंह ने इसी स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित किया था और इसे पाओंटिका नाम दिया था. उन्होंने अपने जीवन के साढ़े 4 वर्ष यहीं गुजारे थे.

ये भी पढ़ें: कैबिनेट में अग्निवीरों के लिए पैकेज का ऐलान करेगी सरकार: राकेश पठानिया

पांवटा साहिब: पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारा (Paonta sahib gurudwara) में पिछले 15 दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. भीड़ ने पिछले 5 वर्ष का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. यहां पर श्रद्धालुओं के भारी तादाद में पहुंचने से गुरुद्वारा प्रबंधन को भी श्रद्धालुओं तक सुविधा पहुंचाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. दरअसल हेमकुंड की यात्रा शुरू होने से गुरुद्वारे में इन दिनों इतनी भीड़ देखने को मिल रही है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों के लोग भारी तादाद में पांवटा साहिब पहुंच रहे हैं.

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान हरभजन सिंह ने बताया कि हेमकुंड की यात्रा शुरू (Hemkund Yatra Started) होने से श्रद्धालु पहले पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में दर्शन करने पहुंचते हैं, उसके बाद हेमकुंड जाते हैं. उन्होंने कहा कि रोजाना यहां 4 से 5 हजार लोग दर्शन करने पहुंचते थे, जिनके लिए गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी द्वारा प्रबंध किया जाता था. उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते यहां बीते दो सालों से कम संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे थे, लेकिन इस बार 20 से 25 हजार श्रद्धालु रोजाना यहां पहुंच रहे हैं, जिससे यहां पर गुरुद्वारा प्रबंधव कमेटी द्वारा सुविधाएं प्रदान करने में मुसीबत झेलनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे लंगर की व्यवस्था पूरी की गई है.

बता दें कि हिमाचल उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी के किनारे बसा जिला सिरमौर का पांवटा साहिब सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है. पांवटा साहिब को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था. इस जगह का नाम पहले पाओंटिका था. पौंटा शब्द का अर्थ है पैर, इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता है. ऐसा माना जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह एक बार अपने घोड़े से कहीं जा रहे थे और इसी स्थान पर पहुंच कर उनका घोड़े अपने आप रुक गया था. जिसके बाद गुरु गोबिंद सिंह ने इसी स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित किया था और इसे पाओंटिका नाम दिया था. उन्होंने अपने जीवन के साढ़े 4 वर्ष यहीं गुजारे थे.

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