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सिरमौर में बने होली के रंग हैं खास, आटे में फल-सब्जियों के रंगों का इस्तेमाल कर बन रहा गुलाल

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में होली के रंगों को अलग तरीके से तैयार किया जा रहा है. यहां पर करीब 30 स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं ईको फ्रैंडली रंग तैयार कर रही हैं. महिलाओं की ओर से तैयार किए गए रंग मेड-इन-सिरमौर उत्पादों की श्रृंखला में शामिल कर बिक्री के लिए उतारे गए हैं. खास बात इन रंगों को बनाने की प्रक्रिया में है. दरअसल इन रंगों को बनान में पालक, चुकंदर, फूल, आटे और मैदे का प्रयोग किया जा रहा है. इन रंगों की कीमत 20 से लेकर 50 रुपए तक की रखी गई है.

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Published : Mar 25, 2021, 6:42 PM IST

Updated : Mar 26, 2021, 12:39 PM IST

सिरमौर: होली रंगों का त्योहार है. होली पर रंग गुलाल ना उड़े तो इसका मजा ही क्या है. बाजार में होली के लिए तरह-तरह के रंग उपलब्ध हैं. बाजार में उपलब्ध ज्यादातर रंगों में कैमिकल मौजूद होते हैं. ये त्वचा के साथ-साथ शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. साथ ही दिल के मरीजों, अस्थमा के रोगियों के लिए ये रंग काफी नुकसानदायक होते हैं.

समय के साथ बाजार में प्राकृतिक तरीके से बनाए गए हर्बल रंग भी मिलने लगे हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी समस्या है कि ये आसानी से उतरते नहीं हैं. इन्हें कपड़ों और शरीर से उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन हिमाचल के सिरमौर जिला में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं ईको फ्रैंडली रंग तैयार कर रही है. इन रंगों को अनाज के साथ फल और फूलों से बनाया जा रहा है.

सिरमौर के 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं इको फ्रैंडली रंगों को तैयार कर रही हैं. इस पहल के दो फायदे सामने आए हैं. एक तो महिलाएं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है तो दूसरा होली में रंगों से होने वाला खेल भी सुरक्षित हो गया है.

वीडियो रिपोर्ट.

स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने बनाए हर्बल रंग

होली के त्योहार पर अक्सर लोग सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सिरमौर के डीसी आरके परुथी ने एक पहल की और उनकी मेहनत रंग लाई. डीसी सिरमौर ने बताया कि विभिन्न विकास खंडों की करीब 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को प्राकृतिक तरीके से रंग तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया. रंगों को तैयार करने के लिए आरारोट, मक्की, मैदे इत्यादि के आटे का इस्तेमाल किया गया है. आटे में रंग लाने के लिए पालक, चुकंदर, गुलाब, गेंदे के फूल, गुलाब जल सहित फूड कलर डाले गए हैं. इन रंगों की कीमत 20 से लेकर 50 रुपए तक की रखी गई है.

सिंथेटिक रंगों की जगह हर्बल रंगों का करें इस्तेमाल- डीसी

डीसी सिरमौर ने लोगों से आग्रह किया है कि बाजारों में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल न करके महिलाओं की ओर से तैयार किए गए इन रंगों का प्रयोग करें. जिले में तैयार हो रहे हर्बल रंग नाहन में डीआरडीए कार्यालय के सामने बिक्री केंद्रो में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जिला के विभिन्न विकास खंडों शिलाई, पांवटा साहिब, संगड़ाह, राजगढ़ इत्यादि में खोली गई हिमईरा दुकानों से भी खरीदे जा सकते हैं. पच्छाद में यह रंग शी-हाट में बिक्री हेतू उपलब्ध करवाए गए हैं.

हर्बल रंगों से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास

शिलाई ब्लाक से ताल्लुक रखने वाली ललिता सिंह और लता ने बताया कि वह होली के लिए घरों में ही मिलने वाले प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर यह रंग बना रही हैं. रंगों को लेकर उन्हें ऑर्डर भी मिल रहे हैं. बीडीओ कार्यालय से भी उन्हें 150 पैकेट भेजने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा कि यह रंग पूरी तरह से सुरक्षित हैं. इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और वह आत्मनिर्भर भी बनेंगी. अरूणा और सुकेश लता का कहना है कि महिलाओं ने होली को ध्यान में रखते हुए यह कैमिकल फ्री रंग तैयार किए हैं.

ये भी पढ़ें: 'सफेद चांदी' के बीच जमकर झूम रहे पर्यटक, 'नो मास्क नो सर्विस' के साथ पुलिस भी मुस्तैद

सिरमौर: होली रंगों का त्योहार है. होली पर रंग गुलाल ना उड़े तो इसका मजा ही क्या है. बाजार में होली के लिए तरह-तरह के रंग उपलब्ध हैं. बाजार में उपलब्ध ज्यादातर रंगों में कैमिकल मौजूद होते हैं. ये त्वचा के साथ-साथ शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. साथ ही दिल के मरीजों, अस्थमा के रोगियों के लिए ये रंग काफी नुकसानदायक होते हैं.

समय के साथ बाजार में प्राकृतिक तरीके से बनाए गए हर्बल रंग भी मिलने लगे हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी समस्या है कि ये आसानी से उतरते नहीं हैं. इन्हें कपड़ों और शरीर से उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन हिमाचल के सिरमौर जिला में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं ईको फ्रैंडली रंग तैयार कर रही है. इन रंगों को अनाज के साथ फल और फूलों से बनाया जा रहा है.

सिरमौर के 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं इको फ्रैंडली रंगों को तैयार कर रही हैं. इस पहल के दो फायदे सामने आए हैं. एक तो महिलाएं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है तो दूसरा होली में रंगों से होने वाला खेल भी सुरक्षित हो गया है.

वीडियो रिपोर्ट.

स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने बनाए हर्बल रंग

होली के त्योहार पर अक्सर लोग सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सिरमौर के डीसी आरके परुथी ने एक पहल की और उनकी मेहनत रंग लाई. डीसी सिरमौर ने बताया कि विभिन्न विकास खंडों की करीब 30 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को प्राकृतिक तरीके से रंग तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया. रंगों को तैयार करने के लिए आरारोट, मक्की, मैदे इत्यादि के आटे का इस्तेमाल किया गया है. आटे में रंग लाने के लिए पालक, चुकंदर, गुलाब, गेंदे के फूल, गुलाब जल सहित फूड कलर डाले गए हैं. इन रंगों की कीमत 20 से लेकर 50 रुपए तक की रखी गई है.

सिंथेटिक रंगों की जगह हर्बल रंगों का करें इस्तेमाल- डीसी

डीसी सिरमौर ने लोगों से आग्रह किया है कि बाजारों में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल न करके महिलाओं की ओर से तैयार किए गए इन रंगों का प्रयोग करें. जिले में तैयार हो रहे हर्बल रंग नाहन में डीआरडीए कार्यालय के सामने बिक्री केंद्रो में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जिला के विभिन्न विकास खंडों शिलाई, पांवटा साहिब, संगड़ाह, राजगढ़ इत्यादि में खोली गई हिमईरा दुकानों से भी खरीदे जा सकते हैं. पच्छाद में यह रंग शी-हाट में बिक्री हेतू उपलब्ध करवाए गए हैं.

हर्बल रंगों से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास

शिलाई ब्लाक से ताल्लुक रखने वाली ललिता सिंह और लता ने बताया कि वह होली के लिए घरों में ही मिलने वाले प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर यह रंग बना रही हैं. रंगों को लेकर उन्हें ऑर्डर भी मिल रहे हैं. बीडीओ कार्यालय से भी उन्हें 150 पैकेट भेजने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा कि यह रंग पूरी तरह से सुरक्षित हैं. इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और वह आत्मनिर्भर भी बनेंगी. अरूणा और सुकेश लता का कहना है कि महिलाओं ने होली को ध्यान में रखते हुए यह कैमिकल फ्री रंग तैयार किए हैं.

ये भी पढ़ें: 'सफेद चांदी' के बीच जमकर झूम रहे पर्यटक, 'नो मास्क नो सर्विस' के साथ पुलिस भी मुस्तैद

Last Updated : Mar 26, 2021, 12:39 PM IST
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