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बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए 'रोड़ा' बने आजाद मुसाफिर! जानें सीट का इतिहास

हिमाचल विधानसभा चुनाव में इस बार पच्छाद विधानसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हैं. कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद 7 बार विधायक रहे गंगूराम मुसाफिर बीजेपी और कांग्रेस की प्रत्याशियों के लिए मुसीबत बने हुए हैं. (Pachhad Assembly Seat) (Independent candidate Ganguram Musafir)

Political equation of Pachhad assembly seat
पच्छाद विधानसभा सीट का इतिहास
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Published : Nov 27, 2022, 4:06 PM IST

Updated : Nov 27, 2022, 4:18 PM IST

नाहन: पच्छाद विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. भाजपा व कांग्रेस की महिला प्रत्याशियों की राह के बीच निर्दलीय प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर के होने से यहां चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है. यहां से भाजपा की तरफ से लगातार दूसरी मर्तबा रीना कश्यप चुनावी मैदान में हैं, तो भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी पार्टी के टिकट पर चुनाव में अपना भाग्य अजमा रही हैं. बड़ी बात यह है कि कांग्रेस से टिकट न मिलने से बागी हुए गंगूराम मुसाफिर ने निर्दलीय ही ताल ठोंकी है. ऐसे में दो महिला प्रत्याशियों की राह में 7 बार जनता के दुलारे रहे मुसाफिर खड़े हैं. (himachal assembly elections 2022) (Ganguram Musafir)

पच्छाद विधानसभा सीट हिमाचल निर्माता डॉ वाईएस परमार का गृह क्षेत्र रही है. साल 1952 में डॉ परमार यहां से पहली बार विधायक बने थे. दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप भी इसी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं. वह भी यहां से दो मर्तबा विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं. यहां से लगातार 7 बार विधायक रहने का रिकार्ड गंगूराम मुसाफिर के नाम दर्ज है, लेकिन 2007 के चुनाव के बाद से मुसाफिर 8वीं बार चुनावी मैदान में हैं.

Political equation of Pachhad assembly seat
पच्छाद विधानसभा सीट का इतिहास

गंगूराम मुसाफिर का राजनीतिक सफर: कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले गंगूराम मुसाफिर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से 7 बार जनता के दुलारे रहे हैं, लेकिन 2007 के चुनाव से जनता उन्हें नकार रही है. इस बार कांग्रेस का टिकट न मिलने से नाराज मुसाफिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे है. वन विभाग में सेवारत रहे मुसाफिर को इलाके की जनता ने चुनाव मैदान में उतरने की सलाह दी थी. यह वर्ष 1982 की बात है. कांग्रेस विचारधारा से प्रभावित मुसाफिर को उस समय पार्टी टिकट नहीं मिला, तो वह आजाद उम्मीदवार के रूप में ही लड़े और जीत हासिल की. बाद में उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया.

सिरमौर जिला की पच्छाद सीट से उस समय शुरू हुआ जीत का यह सिलसिला वर्ष 1985, 90, 93, 98, 2003 और वर्ष 2007 में भी जारी रहा. मगर इसके बाद से यह सीट भाजपा की झोली में गई. पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले गंगूराम मुसाफिर विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी कर चुके हैं. वे अक्सर कोई न कोई शेर सुनाते नजर आते हैं.

मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुके कद्दावर नेता यदि अपने निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति से राजधानी शिमला में मिलते समय ठेठ सिरमौरी बोली में हालचाल पूछता हो, तो इसे राजनेता का विशेष गुण ही समझा जाएगा. फोन पर तुरंत अपने कार्यकर्ताओं की आवाज पहचान लेना, गलती होने पर एकदम से माफी मांग लेना, ये कुछ खास बाते थी, जो चुनावी मैदान में गंगूराम मुसाफिर की पीठ नहीं लगने देती थी, लेकिन 2007 के चुनाव के बाद से जनता उन्हें विधायक की कुर्सी से दूर रखे हुए हैं.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के चुनावी रण में इस बार उतरे हैं भाजपा कांग्रेस के 8 मुखिया, किस-किस को मिलेगी 2022 में सरदारी

लगातार दूसरी बार चुनावी मैदान में भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप: इस सीट से वर्तमान भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप दूसरी बार पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रही है. साल 2019 में पच्छाद में हुए उपचुनाव में रीना को पहली बार पार्टी ने यहां से टिकट दिया और वह जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचीं. यहां से विधायक सुरेश कश्यप लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे. लिहाजा, इस सीट पर उपचुनाव हुए थे. साल 2022 के इस चुनाव में भी भाजपा ने रीना कश्यप के नाम पर ही दांव खेला है. रीना ने हिमाचल विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में एमए की शिक्षा ग्रहण की है. वह अपने मधुर स्वभाव के कारण भी क्षेत्र में जानी जातीं हैं.

दयाल प्यारी पर कांग्रेस ने पहली बार खेला दांव: पच्छाद से भाजपा नेता रहीं दयाल पहली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कांग्रेस में शामिल हो गईं. वह कांग्रेस का यहां से टिकट भी हासिल करने में कामयाब रहीं. इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी दयाल प्यारी की राहें भी इस चुनाव में आसान नहीं हैं, क्योंकि यहां से कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा उन्हें यहां से टिकट देने से नाराज चल रहा है. सीधे-सीधे यह कार्यकर्ता मुसाफिर को टिकट देने की वकालत कर रहे थे. जमा दो तक की शिक्षा ग्रहण करने वाली दयाल प्यारी पच्छाद से जिला परिषद की सदस्य भी रह चुकी हैं. साल 2017 के चुनाव में भी वह पच्छाद से बतौर निर्दलीय उपचुनाव में उतरी थी और अच्छी खासी वोट हासिल करने में कामयाब रही थीं. हालांकि वह जीत दर्ज नहीं कर सकी, लिहाजा इस चुनाव में दयाल प्यारी पर भी सबकी निगाहें टिकी है.

ये भी पढे़ं- Jhanduta Assembly Seat: एक दशक से झंडूता सीट पर BJP दबदबा, क्या इस बार भी जीत बरकरार रख पाएंगे JR Katwal

कितनी संपत्ति के मालिक हैं तीनों प्रत्याशी: पच्छाद से निर्दलीय प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर करोड़पति हैं. उनके 1 करोड़ 57 लाख, 95 हजार 970 की चल संपति हैं, जबकि 1 करोड़ 70 लाख रुपये की अचल संपति के भी वह मालिक हैं. करीब 24 लाख रुपये की उन पर देनदारी है. वहीं, भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के पास 66 लाख 31 हजार 682 रुपये की चल के अलावा 84 लाख 01 हजार 682 रुपये की अचल संपति है. रीना पर 42 लाख 14 हजार 263 रुपये की देनदारियां भी हैं. उधर, कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी 18 लाख 06 हजार 532 रुपये चल संपति की मालिक है. तकरीबन 45 लाख रुपये की उनके पास अचल संपति हैं. वहीं 3 लाख 45 हजार की उन पर देनदारियां हैं.

78.30 प्रतिशत हुआ इस बार मतदान: पच्छाद विधानसभा सीट पर इस बार 78.30 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ. अभी पोस्टल बैलेट से मतदान जारी है. लिहाजा, आंशिक रूप से इसमें बढ़ोतरी दर्ज होगी. यहां कुल 76,609 मतदाताओं में से इस बार 59,983 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. इसमें 31,539 पुरूष व 28,443 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि एक थर्ड जेंडर मतदाता ने भी यहां मत डाला. इससे पहले 2017 के चुनाव में इस सीट पर 78.25 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ था.

ये रहे यहां से अब तक विधायक: पच्छाद विधानसभा सीट पर अधिकतर समय कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. यहां से 1952 में डॉ वाईएस परमार पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद 1957 में मांगा राम, 1962 में माता राम, 1967 में जालम सिंह, 1977 में श्रीराम जख्मी, 1982, 1985, 1990, 1993, 1998, 2003 व 2007 में गंगूराम मुसाफिर, 2012 व 2017 में सुरेश कश्यप, 2019 में रीना कश्यप विधायक रहीं हैं.

नाहन: पच्छाद विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. भाजपा व कांग्रेस की महिला प्रत्याशियों की राह के बीच निर्दलीय प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर के होने से यहां चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है. यहां से भाजपा की तरफ से लगातार दूसरी मर्तबा रीना कश्यप चुनावी मैदान में हैं, तो भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी पार्टी के टिकट पर चुनाव में अपना भाग्य अजमा रही हैं. बड़ी बात यह है कि कांग्रेस से टिकट न मिलने से बागी हुए गंगूराम मुसाफिर ने निर्दलीय ही ताल ठोंकी है. ऐसे में दो महिला प्रत्याशियों की राह में 7 बार जनता के दुलारे रहे मुसाफिर खड़े हैं. (himachal assembly elections 2022) (Ganguram Musafir)

पच्छाद विधानसभा सीट हिमाचल निर्माता डॉ वाईएस परमार का गृह क्षेत्र रही है. साल 1952 में डॉ परमार यहां से पहली बार विधायक बने थे. दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप भी इसी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं. वह भी यहां से दो मर्तबा विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं. यहां से लगातार 7 बार विधायक रहने का रिकार्ड गंगूराम मुसाफिर के नाम दर्ज है, लेकिन 2007 के चुनाव के बाद से मुसाफिर 8वीं बार चुनावी मैदान में हैं.

Political equation of Pachhad assembly seat
पच्छाद विधानसभा सीट का इतिहास

गंगूराम मुसाफिर का राजनीतिक सफर: कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले गंगूराम मुसाफिर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से 7 बार जनता के दुलारे रहे हैं, लेकिन 2007 के चुनाव से जनता उन्हें नकार रही है. इस बार कांग्रेस का टिकट न मिलने से नाराज मुसाफिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे है. वन विभाग में सेवारत रहे मुसाफिर को इलाके की जनता ने चुनाव मैदान में उतरने की सलाह दी थी. यह वर्ष 1982 की बात है. कांग्रेस विचारधारा से प्रभावित मुसाफिर को उस समय पार्टी टिकट नहीं मिला, तो वह आजाद उम्मीदवार के रूप में ही लड़े और जीत हासिल की. बाद में उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया.

सिरमौर जिला की पच्छाद सीट से उस समय शुरू हुआ जीत का यह सिलसिला वर्ष 1985, 90, 93, 98, 2003 और वर्ष 2007 में भी जारी रहा. मगर इसके बाद से यह सीट भाजपा की झोली में गई. पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले गंगूराम मुसाफिर विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी कर चुके हैं. वे अक्सर कोई न कोई शेर सुनाते नजर आते हैं.

मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुके कद्दावर नेता यदि अपने निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति से राजधानी शिमला में मिलते समय ठेठ सिरमौरी बोली में हालचाल पूछता हो, तो इसे राजनेता का विशेष गुण ही समझा जाएगा. फोन पर तुरंत अपने कार्यकर्ताओं की आवाज पहचान लेना, गलती होने पर एकदम से माफी मांग लेना, ये कुछ खास बाते थी, जो चुनावी मैदान में गंगूराम मुसाफिर की पीठ नहीं लगने देती थी, लेकिन 2007 के चुनाव के बाद से जनता उन्हें विधायक की कुर्सी से दूर रखे हुए हैं.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के चुनावी रण में इस बार उतरे हैं भाजपा कांग्रेस के 8 मुखिया, किस-किस को मिलेगी 2022 में सरदारी

लगातार दूसरी बार चुनावी मैदान में भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप: इस सीट से वर्तमान भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप दूसरी बार पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रही है. साल 2019 में पच्छाद में हुए उपचुनाव में रीना को पहली बार पार्टी ने यहां से टिकट दिया और वह जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचीं. यहां से विधायक सुरेश कश्यप लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे. लिहाजा, इस सीट पर उपचुनाव हुए थे. साल 2022 के इस चुनाव में भी भाजपा ने रीना कश्यप के नाम पर ही दांव खेला है. रीना ने हिमाचल विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में एमए की शिक्षा ग्रहण की है. वह अपने मधुर स्वभाव के कारण भी क्षेत्र में जानी जातीं हैं.

दयाल प्यारी पर कांग्रेस ने पहली बार खेला दांव: पच्छाद से भाजपा नेता रहीं दयाल पहली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कांग्रेस में शामिल हो गईं. वह कांग्रेस का यहां से टिकट भी हासिल करने में कामयाब रहीं. इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी दयाल प्यारी की राहें भी इस चुनाव में आसान नहीं हैं, क्योंकि यहां से कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा उन्हें यहां से टिकट देने से नाराज चल रहा है. सीधे-सीधे यह कार्यकर्ता मुसाफिर को टिकट देने की वकालत कर रहे थे. जमा दो तक की शिक्षा ग्रहण करने वाली दयाल प्यारी पच्छाद से जिला परिषद की सदस्य भी रह चुकी हैं. साल 2017 के चुनाव में भी वह पच्छाद से बतौर निर्दलीय उपचुनाव में उतरी थी और अच्छी खासी वोट हासिल करने में कामयाब रही थीं. हालांकि वह जीत दर्ज नहीं कर सकी, लिहाजा इस चुनाव में दयाल प्यारी पर भी सबकी निगाहें टिकी है.

ये भी पढे़ं- Jhanduta Assembly Seat: एक दशक से झंडूता सीट पर BJP दबदबा, क्या इस बार भी जीत बरकरार रख पाएंगे JR Katwal

कितनी संपत्ति के मालिक हैं तीनों प्रत्याशी: पच्छाद से निर्दलीय प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर करोड़पति हैं. उनके 1 करोड़ 57 लाख, 95 हजार 970 की चल संपति हैं, जबकि 1 करोड़ 70 लाख रुपये की अचल संपति के भी वह मालिक हैं. करीब 24 लाख रुपये की उन पर देनदारी है. वहीं, भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के पास 66 लाख 31 हजार 682 रुपये की चल के अलावा 84 लाख 01 हजार 682 रुपये की अचल संपति है. रीना पर 42 लाख 14 हजार 263 रुपये की देनदारियां भी हैं. उधर, कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी 18 लाख 06 हजार 532 रुपये चल संपति की मालिक है. तकरीबन 45 लाख रुपये की उनके पास अचल संपति हैं. वहीं 3 लाख 45 हजार की उन पर देनदारियां हैं.

78.30 प्रतिशत हुआ इस बार मतदान: पच्छाद विधानसभा सीट पर इस बार 78.30 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ. अभी पोस्टल बैलेट से मतदान जारी है. लिहाजा, आंशिक रूप से इसमें बढ़ोतरी दर्ज होगी. यहां कुल 76,609 मतदाताओं में से इस बार 59,983 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. इसमें 31,539 पुरूष व 28,443 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि एक थर्ड जेंडर मतदाता ने भी यहां मत डाला. इससे पहले 2017 के चुनाव में इस सीट पर 78.25 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ था.

ये रहे यहां से अब तक विधायक: पच्छाद विधानसभा सीट पर अधिकतर समय कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. यहां से 1952 में डॉ वाईएस परमार पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद 1957 में मांगा राम, 1962 में माता राम, 1967 में जालम सिंह, 1977 में श्रीराम जख्मी, 1982, 1985, 1990, 1993, 1998, 2003 व 2007 में गंगूराम मुसाफिर, 2012 व 2017 में सुरेश कश्यप, 2019 में रीना कश्यप विधायक रहीं हैं.

Last Updated : Nov 27, 2022, 4:18 PM IST
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