शिलाई/सिरमौर: जिला सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र में आज भी अपनी संस्कृति को संजोय रखने वाली महिलाएं बूढ़ी दिवाली की तैयारियों में जूट गई हैं. क्षेत्र की महिलाएं ढेर सारे पारंपरिक पकवान बनाने की तैयारी कर रही हैं. इस क्षेत्र की पुरानी परंपरा के अनुसार आज भी यहां पर दिवाली के एक माह बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है.
दिवाली के बाद ही बूढ़ी दीवाली की तैयारियां शुरू हो जाती है. जिसमें क्षेत्र की महिलाएं कई प्रकार के पकवान बनाती हैं. जैसे शाकुली, मूड़ा, चावल से बनी फुल बोडी आदि तैयार की हैं. इस साल यह दिवाली 14 दिसंबर से शुरू हो रही है, जिसमें की क्षेत्र के लोगों के द्वारा दीवाली में मेहमानों को परोसा जाएगा. इस दौरान जो भी मेहमान घर पर आते हैं, उन्हें यह पकवान परोसे जाते हैं.
इस वजह से शुरू हुई परंपरा
बुजुर्गों की माने तो यहां के लोगों को दिवाली के एक माह बाद लोगों को पता लगा कि भगवान श्री राम अयोध्या वापस आ गए हैं और उस उपलक्ष में यहां के बुद्धिजीवियों ने एक माह बाद बूढ़ी दिवाली मनाने का निर्णय लिया था, जोकि आज भी बरकरार है.
मशालों के साथ जुलूस का आयोजन
वहीं, इसके पीछे का एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ा है. पांडव वंशज के लोग ब्रह्म मुहूर्त में बलिराज का दहन भी करते हैं. अमावस्या की सुबह तड़के हाथ में मशालें लेकर ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते लोग बूढ़ी दिवाली की शुरुआत करते हैं. मशालों का यह जुलूस गांव के बाहर तक जाता है. जहां एकत्र घास फूस को जलाया जाता है.
कई दिनों तक मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली
बूढ़ी दिवाली के त्यौहार पर लोग खाने-पीने के साथ-साथ नाच गाने का भी जमकर लुत्फ उठाते उठाते हैं. कई दिनों तक नाच गाना और मस्ती का दौर चलता है. परंपरागत वेशभूषा में ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते हैं. इस अवसर पर स्थानीय देवी देवताओं की भी विधिवत पूजा की जाती है और उनको दिवाली का हिस्सा अर्पित किया जाता है. त्यौहार की एक खासियत यह भी है कि क्षेत्र के लोग खासकर युवा देश में कहीं भी हों बूढ़ी दिवाली पर अपने घर जरूर पहुंचते हैं.