नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बेअंत सिंह हत्याकांड मामले के दोषी की दया याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है. शीर्ष अदालत ने दलीलों को सुनने के बाद इस मामले में केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त दिया.
यह मामला न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष आया. सुनवाई शुरू होते ही केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने पीठ के समक्ष कहा कि सरकार को कुछ और जानकारी प्राप्त करनी है और इस बात पर जोर दिया कि मामला संवेदनशील है.
नटराज ने कहा, 'फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है. यह अनुकूल नहीं है. बाद में केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी पीठ के समक्ष मामले में पेश हुए. मेहता ने कहा कि मामले में कुछ संवेदनशीलता है. मेहता ने कहा, 'कुछ एजेंसियों से परामर्श करना होगा.' मेहता की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने राजोआना की दया याचिका पर फैसला लेने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का और समय दिया.
प्रतिबंधित संगठन बब्बर खालसा के सदस्य 57 वर्षीय राजोआना को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या से जुड़े मामले में मौत की सजा सुनाई गई है. शीर्ष अदालत ने 18 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव को निर्देश दिया था कि वे राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका पेश करें और मामले पर दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का अनुरोध करें. हालांकि, सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध पर शीर्ष अदालत ने अपना आदेश स्थगित कर दिया.
मेहता ने न्यायालय से अनुरोध किया कि इस आदेश को प्रभावी नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि इस मुद्दे में 'संवेदनशीलता' शामिल है और न्यायालय को सूचित किया कि फाइल गृह मंत्रालय के पास है. राष्ट्रपति के पास नहीं. शीर्ष न्यायालय ने मेहता के अनुरोध पर सहमति जताते हुए मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर को तय की.
राजोआना बब्बर खालसा से जुड़ा था. ये पंजाब में उग्रवाद के दौरान हिंसक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार एक उग्रवादी सिख अलगाववादी समूह है. केंद्र ने कहा है कि उसकी रिहाई राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इसे खालिस्तान समर्थक भावना के फिर से उभरने की चिंताओं से जोड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में राजोआना के लिए अंतरिम राहत पर विचार करने से इनकार कर दिया था. उसने अपनी दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण अपनी सजा कम करने की मांग की थी.
राजोआना का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि यह एक चौंकाने वाला मामला है क्योंकि याचिकाकर्ता 29 साल से हिरासत में है और कभी जेल से बाहर नहीं आया. रोहतगी ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का पूर्ण उल्लंघन है क्योंकि उसकी दया याचिका 12 साल से विचाराधीन है.
31 अगस्त 1995 को एक बम धमाके में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत 16 लोगों की जान चली गई थी और 12 लोग घायल हो गए थे. याचिकाकर्ता को 27 जनवरी 1996 को गिरफ्तार किया गया था. ट्रायल कोर्ट ने 27 जुलाई 2007 को याचिकाकर्ता के साथ सह-आरोपी जगतार सिंह हवारा, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह और नसीब सिंह को दोषी ठहराया था.