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कोरोना ने लीची की मिठास की फीकी, सही दाम न मिलने से किसान और बागवानों में रोष

जिला सिरमौर के पांवटा साहिब की लीची काफी फेमस मानी जाती है, लेकिन इस बार लीची की मिठास फीकी पड़ गई है. कोरोना कर्फ्यू की वजह से किसान मेहनत और फसल को बर्बाद होते हुए देख रहे हैं. बागवानों की मानें तो पिछले वर्ष पहले इन्हें लीची के पेड़ों पर स्प्रे करने के लिए मजदूर नहीं मिले और उसके बाद खराब मौसम इनका बार-बार इम्तेहान लेता रहा. जैसे-तैसे कुछ फसल बच गई तो अब आलम ये है कि बागवानों को लीची के सही दाम नहीं मिल रहे. पिछले वर्ष कई हजारों का नुकसान बागवानों को झेलना पड़ा.

litchi business in paonta sahib,  पांवटा साहिब में लीची का कारोबार
फोटो.
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Published : Jun 6, 2021, 4:43 PM IST

पांवटा साहिब: जानलेवा कोरोना वायरस अब लोगों की जिंदगी में वो नासूर बनता जा रहा है. इसके जख्मों को भरने के लिए सालों लग जाएंगे. इस महामारी ने हर तबके के लोगों को नुकसान पहुंचाया है. गरीब से लेकर अमीर, उद्योगपति से लेकर किसान.

इस वैश्विक बीमारी से कोई अछूता नहीं रहा. वहीं, इसका असर किसान बागवानों पर भी पड़ा है. दरअसल हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के पांवटा साहिब की लीची काफी फेमस मानी जाती है, लेकिन इस बार लीची की मिठास फीकी पड़ गई है.

वीडियो रिपोर्ट.

बागवानों को लीची के सही दाम नहीं मिल रहे

कोरोना कर्फ्यू की वजह से किसान मेहनत और फसल को बर्बाद होते हुए देख रहे हैं. बागवानों की मानें तो पिछले वर्ष पहले इन्हें लीची के पेड़ों पर स्प्रे करने के लिए मजदूर नहीं मिले और उसके बाद खराब मौसम इनका बार-बार इम्तेहान लेता रहा. जैसे-तैसे कुछ फसल बच गई तो अब आलम ये है कि बागवानों को लीची के सही दाम नहीं मिल रहे. पिछले वर्ष कई हजारों का नुकसान बागवानों को झेलना पड़ा.

काम करने की छूट तो मिली, लेकिन सही दाम नहीं मिल रहा

वहीं, इस वर्ष लीची की पैदावार कम हुई है. कोरोना कर्फ्यू में बगीचे में काम करने की छूट तो मिली है, लेकिन सुविधाएं और दाम न मिलने की वजह से उन्हें और परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. लीची की खेती करने वाले बागवानों से लेकर इन्हें बेचने वाले व्यापारी और ठेकेदार. सब के सब कर्फ्यू के आगे बेबस हो गए हैं.

litchi business in paonta sahib,  पांवटा साहिब में लीची का कारोबार
फोटो.

खरीददार दूर-दूर तक नहीं हैं

मौसम बागवानों का दुश्मन बना हुआ है तो दूसरी ओर फसल की अच्छी कीमत ना मिलने का डर बागवानों और किसानों को खाए जा रहा है. लीची की बंपर फसल तो तैयार है, लेकिन खरीददार दूर-दूर तक नहीं हैं. शहर में एक रेहड़ी-फहड़ी वाले ने बताया कि दूर-दूर तक ग्राहक नजर नहीं आ रहे हैं. यहां कभी लोगों के जमावड़े नजर आते थे. 2,000 से अधिक की लीची रोजाना बेची जाती थी. इस समय पांच सौ का आंकड़ा पार करना भी मुश्किल है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली दौरे पर सीएम जयराम ठाकुर, RSS की समन्वय बैठक में होंगे शामिल

पांवटा साहिब: जानलेवा कोरोना वायरस अब लोगों की जिंदगी में वो नासूर बनता जा रहा है. इसके जख्मों को भरने के लिए सालों लग जाएंगे. इस महामारी ने हर तबके के लोगों को नुकसान पहुंचाया है. गरीब से लेकर अमीर, उद्योगपति से लेकर किसान.

इस वैश्विक बीमारी से कोई अछूता नहीं रहा. वहीं, इसका असर किसान बागवानों पर भी पड़ा है. दरअसल हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के पांवटा साहिब की लीची काफी फेमस मानी जाती है, लेकिन इस बार लीची की मिठास फीकी पड़ गई है.

वीडियो रिपोर्ट.

बागवानों को लीची के सही दाम नहीं मिल रहे

कोरोना कर्फ्यू की वजह से किसान मेहनत और फसल को बर्बाद होते हुए देख रहे हैं. बागवानों की मानें तो पिछले वर्ष पहले इन्हें लीची के पेड़ों पर स्प्रे करने के लिए मजदूर नहीं मिले और उसके बाद खराब मौसम इनका बार-बार इम्तेहान लेता रहा. जैसे-तैसे कुछ फसल बच गई तो अब आलम ये है कि बागवानों को लीची के सही दाम नहीं मिल रहे. पिछले वर्ष कई हजारों का नुकसान बागवानों को झेलना पड़ा.

काम करने की छूट तो मिली, लेकिन सही दाम नहीं मिल रहा

वहीं, इस वर्ष लीची की पैदावार कम हुई है. कोरोना कर्फ्यू में बगीचे में काम करने की छूट तो मिली है, लेकिन सुविधाएं और दाम न मिलने की वजह से उन्हें और परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. लीची की खेती करने वाले बागवानों से लेकर इन्हें बेचने वाले व्यापारी और ठेकेदार. सब के सब कर्फ्यू के आगे बेबस हो गए हैं.

litchi business in paonta sahib,  पांवटा साहिब में लीची का कारोबार
फोटो.

खरीददार दूर-दूर तक नहीं हैं

मौसम बागवानों का दुश्मन बना हुआ है तो दूसरी ओर फसल की अच्छी कीमत ना मिलने का डर बागवानों और किसानों को खाए जा रहा है. लीची की बंपर फसल तो तैयार है, लेकिन खरीददार दूर-दूर तक नहीं हैं. शहर में एक रेहड़ी-फहड़ी वाले ने बताया कि दूर-दूर तक ग्राहक नजर नहीं आ रहे हैं. यहां कभी लोगों के जमावड़े नजर आते थे. 2,000 से अधिक की लीची रोजाना बेची जाती थी. इस समय पांच सौ का आंकड़ा पार करना भी मुश्किल है.

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