सिरमौर: गिरिपार क्षेत्र के मुख्य त्योहारों में शामिल बूढ़ी दिवाली की तैयारियों जोरों पर हैं. 24 नवंबर से बूढ़ी दिवाली का जश्न शुरू हो जाएगा, जो पांच दिन तक चलेगा. यह पर्व मशाल यात्रा के साथ शुरू हो जाएगा. बूढ़ी दिवाली के लिए विशेष तौर पर बनाए जाने वाले गेहूं के नमकीन मूड़ा और पापड़ सहित शुरुआती तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. बढ़ी दिवाली हिंदुओं के मुख्य धार्मिक त्योहार दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है. दावतों और खुशियों का यह त्योहार ना सिर्फ सिरमौर जिले के गिरीपार क्षेत्र में बल्कि उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र में भी धूमधाम से मनाया जाता है. बूढ़ी दीपावली का जश्न 5 दिनों तक चलता है. इस दौरान पारंपरिक लोक नृत्य और दावतों के दौर चलते हैं. बूढ़ी दिवाली सिरमौर जिले की सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है. (Budhi Diwali in Giripar) (Budhi Diwali celebration)
इस पर्व के लिए गृहणियों ने विशेष तौर पर परोसे जाने वाले गेहूं की नमकीन यानी मूड़ा व शाकुली यानी पापड़ बनाने का कार्य पूरा कर लिया है. बूढ़ी दिवाली की तैयारियां लगभग एक महीना पहले से शुरू हो जाती है. महिलाएं गेहूं के स्वादिष्ट और पौष्टिक मुड़े बनाती हैं. इसी तरह चावल को को पीसकर उसे पापड़ तैयार किए जाते हैं. घर पर बने मूड़े और पापड़ के साथ अखरोट, खील बताशे सहित कई स्वादिष्ट चीजें परोसी जाती हैं. क्षेत्र के करीब 3 लाख हाटी समुदाय के लोग अब 24 नवंबर से बूढ़ी दिवाली मनाते हैं.
बूढ़ी दिवाली के सबसे जरूरी रिवायत मशाल जुलूस रहता है. इस दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में लोग पतली लकड़ी की मशालें जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है और मशाल जुलूस निकालते हैं. मान्यता है कि इस जुलूस के माध्यम से गांव में बसी बुरी आत्माओं और आपदाओं को बाहर खदेड़ कर गांव के बाहर जला दिया जाता है. एक मान्यता यह भी है कि मशाल जुलूस क्षेत्र को सुख समृद्धि प्रदान करने वाले और आपदाओं और महामारी आदि से बचाने वाले देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भी निकाली जाती है.
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क्या होता है पहले दिन: बूढ़ी दिवाली के दिन लोग तड़के उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है. अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है. कुछ घंटों तक टीले व धार पर लोक नृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव में आ जाते है. इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है.
बूढ़ी दिवाली मान्यता: बूढ़ी दिवाली के संबंध में क्षेत्र के बुजुर्ग बताते है कि दीपावली के समय के बाद सर्दी का मौसम शुरू होता है. किसानों को अपनी फसल व पशुओं का चारा एकत्रित करना होता है. इसलिए एक महीने तक सारा काम निपटाने के बाद आराम से बूढ़ी दिवाली आनंद उठाते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार ये क्षेत्र पहले अन्य शहरी इलाकों से कटा रहता था, जिस कारण इस पर्व की जानकारी देरी से मिली.
मुख्य व्यंजन: इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली है. बूढ़ी दिवाली का पारंपरिक व्यंजन मुड़ा है जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाई में भूनकर तैयार किया जाता है. इस मूड़े के साथ अखरोट की गीरी, खीले, बताशे व मुरमुरे आदि मिलाए जाते है. इसके अलावा शाम को पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं.