शिमला: हिमाचल प्रदेश की पहचान शांत पहाड़ी राज्य के रूप में है. यहां सियासत में भी देश के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शांति है. सियासत में रिजार्ट पॉलिटिक्स भी फिलहाल दूर-दूर तक नहीं है, लेकिन ढाई दशक पहले यहां एक ऐसा घटनाक्रम हुआ (When MLA was kidnapped in Himachal) था, जिसे अभी भी याद किया जाता है. प्रदेश में पहली बार भाजपा सरकार को पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का अवसर 1998 में मिला था.
जब MLA का हुआ था 'अपहरण': प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में तो आई, परंतु सरकार का गठन बेहद नाटकीय अंदाज में हुआ था. एक विधायक का अपहरण उस समय खूब चर्चा में रहा था. पीएम नरेंद्र मोदी तब हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे. प्रदेश में 65 सीटों पर मतदान हुआ था. जनजातीय इलाकों की तीन सीटों पर मौसम के कारण मतदान बाकी 65 सीटों के साथ नहीं हो पाया था. चुनाव में भाजपा को 29 सीटें मिली थीं और कांग्रेस के हिस्से 31 सीटें आई थीं. चार सीटें हिमाचल विकास कांग्रेस को मिली थीं. वहीं, कांगड़ा के ओबीसी नेता रमेश चंद धवाला निर्दलीय जीत कर आए थे.
वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने किसी तरह रमेश धवाला को अपने पाले में ले लिया था. उन्हें ओक ओवर में एक तरह से बंधक बना कर रखा गयाथा. उनसे समर्थन की हामी भरवाई गई और मंत्री पद दिया गया. वीरभद्र सिंह ने सीएम पद की शपथ ले ली थी. यही कारण है कि वीरभद्र सिंह के नाम छह दफा सीएम पद की शपथ लेने का रिकार्ड है, हालांकि वास्तव में वे पांच बार ही सीएम रहे हैं. परंतु शपथ लेने के कारण तकनीकी रूप से वे सीएम ही कहे जाएंगे. (MLA Ramesh Chand Dhawala kidnapping case).
MLA ने भाजपा को दिया था समर्थन: खैर, रमेश धवाला कांग्रेस से भाजपा में आने के लिए छटपटा रहे थे. बाद में किसी तरह तत्कालीन भाजपा प्रभारी नरेंद्र मोदी ने रमेश धवाला तक संदेश पहुंचाया. रमेश धवाला को किसी तरह भाजपा ने राकेश पठानिया आदि की पहल से कांग्रेस के चंगुल से छुड़वाया. रमेश धवाला ने बाद में भाजपा को समर्थन दिया. हिमाचल विकास कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित सुखराम ने अपने करीबी गुलाब सिंह ठाकुर को किसी तरह से विधानसभा अध्यक्ष बनने के लिए मनाया. इस तरह कांग्रेस से एक सदस्य और कम हो गया. बहुमत साबित करने से पहले ही वीरभद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया था. तब हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल वीएस रमादेवी थीं.
ऐसे हुआ था 'अपहरण': वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा उस वाकये को याद करते हुए बताते हैं कि हिमाचल में ऐसा घटनाक्रम पहले पेश नहीं आया था. रमेश धवाला तब रातों-रात टॉक ऑफ दि टाउन हो गए थे. धनंजय शर्मा के अनुसार रमेश धवाला चुनाव जीतने के बाद 4 मार्च 1998 को चंडीगढ़ से होते हुए शिमला आ रहे थे. कालका के आसपास कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उन्हें रोक लिया और फिर हॉली लॉज ले आए. उसी रात हाईकोर्ट के पास शिल्ली चौक इलाके में खूब गहमागहमी भी हुई थी. रमेश धवाला भी याद करते हैं कि उस समय हॉली लॉज पहुंचाए जाने पर उनके पास कांग्रेस को समर्थन देने के अलावा और कोई चारा नहीं था.
उल्लेखनीय है कि रमेश धवाला भाजपा के दिग्गज नेता शांता कुमार के समर्थक रहे हैं. खैर, तब रमेश धवाला के समर्थन से हिमाचल में भाजपा की सरकार बनी और भाजपा पर लगा ढैय्या का दाग छूटा. बता दें कि उससे पहले दो बार शांता कुमार सीएम रहे, लेकिन उनकी सरकार ढाई साल ही चली. इसलिए कहा जाता था कि भाजपा को ढैय्या लगा हुआ है. फिर 1998 में भाजपा की सरकार पूरे पांच साल चली. हिमाचल की राजनीति की जब भी चर्चा होगी, रमेश धवाला से जुड़े इस प्रकरण की बात जरूर होगी. (MLA was kidnapped in Himachal)(Former CM Prem Kumar Dhumal)(Former CM Virbhadra Singh).
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