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हिमाचल को कर्ज से उबारेगा खैर का पेड़! SC ने 10 फॉरेस्ट डिवीजन में दी कटान की मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर कटान की मंजूरी दे दी है. ऐसे में खैर के पेड़ कटान से राज्य का खजाना भरने की उम्मीद है. गौरतलब है कि 5 साल पहले भाजपा नेता रमेश ध्वाला नेखैर से पूरे हिमाचल का कर्ज उतारने का मंत्र दिया था.

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हिमाचल को कर्ज से उबारेगा खैर का पेड़
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Published : May 21, 2023, 4:26 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश ₹76 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज में डूबा है. विगत एक दशक से कैग ये चेतावनी जारी कर रहा है कि हिमाचल लगातार डेब्ट ट्रैप में फंसता जा रहा है. ऐसे में ये सुनना आश्चर्यजनक है कि खैर के पेड़ पूरे हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं. इससे भी बढ़कर हैरत कि बात यह है कि अकेले कांगड़ा जिला के जंगलों में मौजूद खैर के पेड़ सारे हिमाचल का कर्ज चुकता कर सकते हैं. गौरतलब है कि 5 साल पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश चंद ध्वाला ने तत्कालीन सरकार को ये मंत्र दिया था. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को प्रदेश के दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति दी है. ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर क्या है खैर के पेड़ों की अहमियत और कैसे ये हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं?

2018 बजट सत्र में उठा था राज्य के कर्ज का मुद्दा: खैर के पेड़ों की अहमियत से पहले भाजपा नेता रमेश ध्वाला के उस दिलचस्प संबोधन की बात करते हैं, जो उन्होंने 2 अप्रैल 2018 को हिमाचल विधानसभा में दिया था. दरअसल, 2 अप्रैल 2018 में विधानसभा के बजट सत्र में प्रश्नकाल के दौरान हिमाचल प्रदेश के कर्ज पर चर्चा हो रही थी. दिसंबर 2017 में सत्ता संभालने के बाद जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार का ये पहला बजट सत्र था. तब कांग्रेस विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू (वर्तमान मुख्यमंत्री) ने प्रश्न संख्या 373 के तहत हिमाचल के कर्ज से संबंधित सवाल किया था.

रमेश ध्वाला ने बताया कर्ज को दूर करने का उपाय: तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर के जवाब के बाद रमेश ध्वाला ने अनुपूरक सवाल पूछने के दौरान हिमाचल के कर्ज को दूर करने के उपायों की झड़ी लगा दी थी. ध्वाला ने कहा था कि हिमाचल के जंगलों में अपार वन संपदा है. अकेले कांगड़ा जिला के खैर पूरे राज्य का कर्ज उतार सकते हैं. इसके अलावा वनों में बेशुमार सूखे पेड़ गिरे हुए हैं. वनों में पड़े सूखे पेड़ गल-सड़ रहे हैं, उन्हें बेचा जाना चाहिए. ध्वाला ने कहा था कि वन काटू खैर के पेड़ अवैध रूप से काट देते हैं. उन्होंने सदन में कहा था कि हिमाचल में ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और चंबा में खैर के पेड़ों की बहुतायत है. कहीं-कहीं तो आठ फीट ऊंचे खैर के पेड़ हैं. ध्वाला ने सदन में खुलासा किया था कि एक वन रेंज से खैर के 60 पेड़ वन काटुओं ने काट दिए. अगर सरकार को सुप्रीम कोर्ट से इन्हें काटने की अनुमति मिलती है तो, यह खैर का पेड़ राजस्व का बड़ा सोर्स होगा. तब सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि तीन वन रेज में खैर कटान की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिली है.

खैर पेड़ की अहमियत: खैर के पेड़ से कत्था मिलता है. कत्थे से औषधियां बनती हैं. इसकी लकड़ी से रेशम के कपड़ों की रंगाई भी होती है. ये चमड़ा उद्योग में भी काम आता है. पान और पान मसाला में भी कत्थे का प्रयोग होता है. इसके विविध उपयोग होते हैं. हिमाचल प्रदेश में गर्म जलवायु वाले इलाकों में इसके पेड़ बहुतायत में हैं. सरकारी वन भूमि और किसानों की निजी भूमि पर भी खैर के पेड़ मौजूद हैं. किसानों को भी इसको काटने की अनुमति मिलती है. इसे काटने की अनुमति मिलने पर किसानों को लाखों रुपए का लाभ होता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को सरकारी वन भूमि पर दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ काटने की अनुमति दी है. फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के प्रावधानों के तहत वन भूमि से किसी भी तरह के पेड़ काटने से पहले विभिन्न स्तरों पर अनुमति लेनी होती है. संबंधित राज्य सरकार सिल्वीकल्चर कटान के लिए सुप्रीम कोर्ट में अनुमति के लिए अपील दाखिल करती है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल के खजाने को मिलेगी प्राणवायु, सुप्रीम कोर्ट से 10 फॉरेस्ट डिवीजन में खैर कटान की अनुमति

खैर की उम्र 12 से 15 साल: खैर का पेड़ 12 से 15 साल तक रहता है. उसके बाद विभिन्न कारणों से ये खराब हो जाता है. जिसके बाद इसकी लकड़ी काम नहीं आती. जब खैर का पेड़ अधिकतम 15 साल तक ही कायम रहता है तो, सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार अपना पक्ष रखती है कि उसके वैज्ञानिक कटान की अनुमति दी जाए. तेरहवीं यानी पिछली विधानसभा में प्राक्कलन समिति के वन विभाग से संबंधित प्रतिवेदन में खैर के पेड़ के कटान के विभिन्न पहलुओं पर समिति ने वन विभाग से जानकारी ली थी. तब समिति को बताया गया कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद सुप्रीम कोर्ट में खैर के कटान की अनुमति से संबंधित अपील दाखिल की जाती है. पूर्व में 2018 में नूरपुर के जंगलों में सिर्फ दो साल के लिए खैर के पेड़ काटने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिली थी.

खैर पेड़ काटने की अनुमति SC से मिली: 2018-19 में 1019 और फिर 2019-20 में 13 हजार पेड़ काटने की इजाजत प्रायोगिक आधार पर सुप्रीम कोर्ट से मिली. खैर के पेड़ काटे जाएं तो उसके बाद आसपास की जगह पर पांच से छह खैर के पौधे खुद ही उग आते हैं. प्राक्कलन समिति का मानना था कि जब अधिकतम 15 साल में खैर का पेड़ खत्म हो ही जाता है तो, राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में वन विभाग के जरिए अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहिए. दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा की प्राक्कलन समिति के सभापति भी रमेश ध्वाला ही थे.

इस बार कटेंगे 16 हजार से अधिक खैर के पेड़: सुप्रीम कोर्ट से खैर कटान की अनुमति मिलने के बाद कुल पांच फॉरेस्ट डिविजन में 16 हजार से अधिक खैर के पेड़ सालाना कटेंगे. इससे कम से कम 200 करोड़ रुपए की आय होगी. अनुमान है कि यदि पूरे प्रदेश में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति मिल जाए तो, हिमाचल प्रदेश को सालाना 15 हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन फैलिंग पर रोक लगाई हुई है और एफसीए व एफआरए के तहत विभिन्न स्तरों पर अनुमति लेनी होती है, इसलिए हिमाचल सरकार के रास्ते में कई अड़चनें हैं. हिमाचल की हर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखकर अनुमति मांगती है, लेकिन कटान की अनुमति के रास्ते में कई अड़चनें पेश आती हैं. फिलहाल, अब दस फॉरेस्ट डिवीजन में कटान की अनुमति मिली है तो इससे राज्य सरकार के खजाने को राहत मिलेगी. निजी भूमि पर खैर के पेड़ कटान की अनुमति मिलने पर किसानों को भी लाखों रुपए का लाभ होता है. किसानों को भी समय-समय पर कानून के अनुसार अनुमति मिलती है.

शिमला: हिमाचल प्रदेश ₹76 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज में डूबा है. विगत एक दशक से कैग ये चेतावनी जारी कर रहा है कि हिमाचल लगातार डेब्ट ट्रैप में फंसता जा रहा है. ऐसे में ये सुनना आश्चर्यजनक है कि खैर के पेड़ पूरे हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं. इससे भी बढ़कर हैरत कि बात यह है कि अकेले कांगड़ा जिला के जंगलों में मौजूद खैर के पेड़ सारे हिमाचल का कर्ज चुकता कर सकते हैं. गौरतलब है कि 5 साल पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश चंद ध्वाला ने तत्कालीन सरकार को ये मंत्र दिया था. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को प्रदेश के दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति दी है. ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर क्या है खैर के पेड़ों की अहमियत और कैसे ये हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं?

2018 बजट सत्र में उठा था राज्य के कर्ज का मुद्दा: खैर के पेड़ों की अहमियत से पहले भाजपा नेता रमेश ध्वाला के उस दिलचस्प संबोधन की बात करते हैं, जो उन्होंने 2 अप्रैल 2018 को हिमाचल विधानसभा में दिया था. दरअसल, 2 अप्रैल 2018 में विधानसभा के बजट सत्र में प्रश्नकाल के दौरान हिमाचल प्रदेश के कर्ज पर चर्चा हो रही थी. दिसंबर 2017 में सत्ता संभालने के बाद जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार का ये पहला बजट सत्र था. तब कांग्रेस विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू (वर्तमान मुख्यमंत्री) ने प्रश्न संख्या 373 के तहत हिमाचल के कर्ज से संबंधित सवाल किया था.

रमेश ध्वाला ने बताया कर्ज को दूर करने का उपाय: तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर के जवाब के बाद रमेश ध्वाला ने अनुपूरक सवाल पूछने के दौरान हिमाचल के कर्ज को दूर करने के उपायों की झड़ी लगा दी थी. ध्वाला ने कहा था कि हिमाचल के जंगलों में अपार वन संपदा है. अकेले कांगड़ा जिला के खैर पूरे राज्य का कर्ज उतार सकते हैं. इसके अलावा वनों में बेशुमार सूखे पेड़ गिरे हुए हैं. वनों में पड़े सूखे पेड़ गल-सड़ रहे हैं, उन्हें बेचा जाना चाहिए. ध्वाला ने कहा था कि वन काटू खैर के पेड़ अवैध रूप से काट देते हैं. उन्होंने सदन में कहा था कि हिमाचल में ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और चंबा में खैर के पेड़ों की बहुतायत है. कहीं-कहीं तो आठ फीट ऊंचे खैर के पेड़ हैं. ध्वाला ने सदन में खुलासा किया था कि एक वन रेंज से खैर के 60 पेड़ वन काटुओं ने काट दिए. अगर सरकार को सुप्रीम कोर्ट से इन्हें काटने की अनुमति मिलती है तो, यह खैर का पेड़ राजस्व का बड़ा सोर्स होगा. तब सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि तीन वन रेज में खैर कटान की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिली है.

खैर पेड़ की अहमियत: खैर के पेड़ से कत्था मिलता है. कत्थे से औषधियां बनती हैं. इसकी लकड़ी से रेशम के कपड़ों की रंगाई भी होती है. ये चमड़ा उद्योग में भी काम आता है. पान और पान मसाला में भी कत्थे का प्रयोग होता है. इसके विविध उपयोग होते हैं. हिमाचल प्रदेश में गर्म जलवायु वाले इलाकों में इसके पेड़ बहुतायत में हैं. सरकारी वन भूमि और किसानों की निजी भूमि पर भी खैर के पेड़ मौजूद हैं. किसानों को भी इसको काटने की अनुमति मिलती है. इसे काटने की अनुमति मिलने पर किसानों को लाखों रुपए का लाभ होता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को सरकारी वन भूमि पर दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ काटने की अनुमति दी है. फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के प्रावधानों के तहत वन भूमि से किसी भी तरह के पेड़ काटने से पहले विभिन्न स्तरों पर अनुमति लेनी होती है. संबंधित राज्य सरकार सिल्वीकल्चर कटान के लिए सुप्रीम कोर्ट में अनुमति के लिए अपील दाखिल करती है.
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खैर की उम्र 12 से 15 साल: खैर का पेड़ 12 से 15 साल तक रहता है. उसके बाद विभिन्न कारणों से ये खराब हो जाता है. जिसके बाद इसकी लकड़ी काम नहीं आती. जब खैर का पेड़ अधिकतम 15 साल तक ही कायम रहता है तो, सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार अपना पक्ष रखती है कि उसके वैज्ञानिक कटान की अनुमति दी जाए. तेरहवीं यानी पिछली विधानसभा में प्राक्कलन समिति के वन विभाग से संबंधित प्रतिवेदन में खैर के पेड़ के कटान के विभिन्न पहलुओं पर समिति ने वन विभाग से जानकारी ली थी. तब समिति को बताया गया कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद सुप्रीम कोर्ट में खैर के कटान की अनुमति से संबंधित अपील दाखिल की जाती है. पूर्व में 2018 में नूरपुर के जंगलों में सिर्फ दो साल के लिए खैर के पेड़ काटने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिली थी.

खैर पेड़ काटने की अनुमति SC से मिली: 2018-19 में 1019 और फिर 2019-20 में 13 हजार पेड़ काटने की इजाजत प्रायोगिक आधार पर सुप्रीम कोर्ट से मिली. खैर के पेड़ काटे जाएं तो उसके बाद आसपास की जगह पर पांच से छह खैर के पौधे खुद ही उग आते हैं. प्राक्कलन समिति का मानना था कि जब अधिकतम 15 साल में खैर का पेड़ खत्म हो ही जाता है तो, राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में वन विभाग के जरिए अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहिए. दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा की प्राक्कलन समिति के सभापति भी रमेश ध्वाला ही थे.

इस बार कटेंगे 16 हजार से अधिक खैर के पेड़: सुप्रीम कोर्ट से खैर कटान की अनुमति मिलने के बाद कुल पांच फॉरेस्ट डिविजन में 16 हजार से अधिक खैर के पेड़ सालाना कटेंगे. इससे कम से कम 200 करोड़ रुपए की आय होगी. अनुमान है कि यदि पूरे प्रदेश में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति मिल जाए तो, हिमाचल प्रदेश को सालाना 15 हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन फैलिंग पर रोक लगाई हुई है और एफसीए व एफआरए के तहत विभिन्न स्तरों पर अनुमति लेनी होती है, इसलिए हिमाचल सरकार के रास्ते में कई अड़चनें हैं. हिमाचल की हर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखकर अनुमति मांगती है, लेकिन कटान की अनुमति के रास्ते में कई अड़चनें पेश आती हैं. फिलहाल, अब दस फॉरेस्ट डिवीजन में कटान की अनुमति मिली है तो इससे राज्य सरकार के खजाने को राहत मिलेगी. निजी भूमि पर खैर के पेड़ कटान की अनुमति मिलने पर किसानों को भी लाखों रुपए का लाभ होता है. किसानों को भी समय-समय पर कानून के अनुसार अनुमति मिलती है.

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