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युवाओं में बढ़ते स्ट्रेस और डिप्रेशन के क्या हैं कारण, तनाव से कैसे बचें जानिए ?

22 मार्च से शुरु हुए लॉकडाउन में आत्महत्या के मामले औसत से ज्यादा सामने आए हैं. जानकार इसका बड़ा कारण लॉकडाउन के कारण पैदा हुए अकेलेपन और सोशल डिस्टेंस को मान रहे हैं. चिंताजनक बात यह भी है कि आत्महत्या करने वालों में युवाओं की संख्या ज्यादा है मतलब अकेलापन युवाओं पर भारी पड़ रहा है.

suicide cases increased in himachal
जानलेवा साबित हुआ लॉकडाउन
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Published : Jun 25, 2020, 6:40 PM IST

Updated : Jun 28, 2020, 11:35 AM IST

शिमला: हिमाचल में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग युवाओं के लिए जानलेवा साबित हुई. यह बात इस साल के अब तक के आंकड़े कह रहे हैं. प्रदेश में कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन की वजह से घरों में बंद रह कर लोगों का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है.

इस तनाव का ज्यादा शिकार युवा वर्ग हो रहा है और यह तनाव उन्हें खुदकुशी जैसे खरतनाक कदम की ओर ले जा रहा है. प्रदेश में बीते 2 माह में 121 मामले खुदकुशी के प्रदेश में आए है ओर हैरान करने वाला तथ्य ये है कि ज्यादातर युवा ही है जो मानसिक तनाव की वजह से इस तरह के कदम उठा कर अपने जीवन को दर्दनाक तरीके से समाप्त कर रहे.

वीडियो.

वहीं, अगर इस तनाव की सबसे बड़ी वजह देखी जाए तो वह यह है कि जब स्ट्रेस ओर तनाव में व्यक्ति जा रहा होता है तो वह उस समय किसी से बात नहीं करता है और ना ही अपने तनाव के विषय मे किसी से बात करता है और यही तनाव उन्हें भीतर से इतना प्रभावित करता है कि वह खुदकुशी जैसे कदम उठाते है.

तनाव से ग्रसित युवाओं और अन्य लोगों को इस से बाहर निकालने के काम कर रही ब्लैक ब्लैंकेट एजुकेशन सोसायटी की सचिव मीनाक्षी रघुवंशी ने ईटीवी के संवाददाता से खास बातचीत में कहा कि प्रदेश में जो मामले लॉकडाउन के समय में खुदकुशी के आए है उसके पीछे की वजह है मानसिक तनाव.

मीनाक्षी ने बताया कि महामारी के चलते स्कूल, कॉलेज बंद है. यहां तक की बहुत से लोगों के व्यवसाय पर भी इसका प्रभाव पड़ा है जिसकी वजह से लोग तनाव में जा रहे है. यह मानसिक तनाव भी युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है. जब कोई व्यक्ति स्ट्रेस में होता है तो उससे उन्हें डिप्रेशन होता है और वही डिप्रेशन उन्हें खुदकुशी तक ले कर जाता है.

मनोचिकित्सक के पास आने से पहले अगर अभिभावक अपने बच्चों की मनोस्थिति को बेहतर तरीके से समझे और उनसे बात करें तो वह खुद भी उन्हें इस तनाव से बाहर ला सकते है. सबसे पहले बच्चें के अंदर जो व्यवहार में बदलाव आ रहे है उन्हें समझना जरूरी होता है. वहीं, बच्चें के तनाव में जाने का पहला चरण होता है. अगर अभिभावक उस बदलाव को समझ ले और बच्चें को अपने साथ ज्यादा से ज्यादा इन्वॉल्व करें तो बच्चा बहुत जल्द उस स्ट्रेस और तनाव से बाहर आ जाएगा.

लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रहने पर मजबूर हैं. दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिल पाने की वजह से लोग एक दूसरे के साथ समस्याएं, चिंताएं साझा नहीं कर पा रहे हैं. आपस में बातचीत से समस्या सुलझती भी थी और मन बहलता भी था लेकिन लॉकडाउन में सब बदल गया है. मनोचिकित्सक युवाओं को सलाह दे रहे हैं कि वह अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करें और चिंता न करें.

ये भी पढ़ें- रोहड़ू: किसानों और बागवानों को मिल रहा पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा

शिमला: हिमाचल में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग युवाओं के लिए जानलेवा साबित हुई. यह बात इस साल के अब तक के आंकड़े कह रहे हैं. प्रदेश में कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन की वजह से घरों में बंद रह कर लोगों का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है.

इस तनाव का ज्यादा शिकार युवा वर्ग हो रहा है और यह तनाव उन्हें खुदकुशी जैसे खरतनाक कदम की ओर ले जा रहा है. प्रदेश में बीते 2 माह में 121 मामले खुदकुशी के प्रदेश में आए है ओर हैरान करने वाला तथ्य ये है कि ज्यादातर युवा ही है जो मानसिक तनाव की वजह से इस तरह के कदम उठा कर अपने जीवन को दर्दनाक तरीके से समाप्त कर रहे.

वीडियो.

वहीं, अगर इस तनाव की सबसे बड़ी वजह देखी जाए तो वह यह है कि जब स्ट्रेस ओर तनाव में व्यक्ति जा रहा होता है तो वह उस समय किसी से बात नहीं करता है और ना ही अपने तनाव के विषय मे किसी से बात करता है और यही तनाव उन्हें भीतर से इतना प्रभावित करता है कि वह खुदकुशी जैसे कदम उठाते है.

तनाव से ग्रसित युवाओं और अन्य लोगों को इस से बाहर निकालने के काम कर रही ब्लैक ब्लैंकेट एजुकेशन सोसायटी की सचिव मीनाक्षी रघुवंशी ने ईटीवी के संवाददाता से खास बातचीत में कहा कि प्रदेश में जो मामले लॉकडाउन के समय में खुदकुशी के आए है उसके पीछे की वजह है मानसिक तनाव.

मीनाक्षी ने बताया कि महामारी के चलते स्कूल, कॉलेज बंद है. यहां तक की बहुत से लोगों के व्यवसाय पर भी इसका प्रभाव पड़ा है जिसकी वजह से लोग तनाव में जा रहे है. यह मानसिक तनाव भी युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है. जब कोई व्यक्ति स्ट्रेस में होता है तो उससे उन्हें डिप्रेशन होता है और वही डिप्रेशन उन्हें खुदकुशी तक ले कर जाता है.

मनोचिकित्सक के पास आने से पहले अगर अभिभावक अपने बच्चों की मनोस्थिति को बेहतर तरीके से समझे और उनसे बात करें तो वह खुद भी उन्हें इस तनाव से बाहर ला सकते है. सबसे पहले बच्चें के अंदर जो व्यवहार में बदलाव आ रहे है उन्हें समझना जरूरी होता है. वहीं, बच्चें के तनाव में जाने का पहला चरण होता है. अगर अभिभावक उस बदलाव को समझ ले और बच्चें को अपने साथ ज्यादा से ज्यादा इन्वॉल्व करें तो बच्चा बहुत जल्द उस स्ट्रेस और तनाव से बाहर आ जाएगा.

लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रहने पर मजबूर हैं. दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिल पाने की वजह से लोग एक दूसरे के साथ समस्याएं, चिंताएं साझा नहीं कर पा रहे हैं. आपस में बातचीत से समस्या सुलझती भी थी और मन बहलता भी था लेकिन लॉकडाउन में सब बदल गया है. मनोचिकित्सक युवाओं को सलाह दे रहे हैं कि वह अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करें और चिंता न करें.

ये भी पढ़ें- रोहड़ू: किसानों और बागवानों को मिल रहा पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा

Last Updated : Jun 28, 2020, 11:35 AM IST
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