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छात्र अभिभावक मंच का सरकार के खिलाफ फूटेगा गुस्सा, 5 नवंबर को शिक्षा निदेशालय का किया जाएगा घेराव - shimla hindi news

प्रदेश के निजी स्कूल अब छात्रों से पूरी फीस ले सकेंगे. इतना ही नहीं जिन अभिभावकों को कोविड के संकट की वजह से पहले भी फीस छात्रों को नहीं दी हैं. निजी स्कूल अभिभावकों से एक साथ वसूल कर सकेंगे. यही वजह है कि अब छात्र अभिभावक मंच का आक्रोश बढ़ गया है. वह सरकार के इस फैसले के खिलाफ 5 नवंबर को शिक्षा निदेशालय का घेराव करने वाले हैं और वहां उग्र प्रदर्शन सरकार के इस आदेश के खिलाफ छात्र अभिभावक मंच की ओर से किया जाएगा.

छात्र अभिभावक मंच
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Published : Nov 2, 2020, 5:02 PM IST

शिमला: प्रदेश के निजी स्कूल अब छात्रों से पूरी फीस ले सकेंगे. इतना ही नहीं जिन अभिभावकों को कोविड के संकट की वजह से पहले भी फीस छात्रों को नहीं दी हैं. निजी स्कूल अभिभावकों से एक साथ वसूल कर सकेंगे. सरकार की ओर से प्रदेश के निजी स्कूलों को अभिभावकों से पूरी फीस लेने के छूट दे दी गई है जिसका छात्र अभिभावक मंच की ओर से कड़ा विरोध किया जा रहा है.

यही वजह है कि अब छात्र अभिभावक मंच का आक्रोश बढ़ गया है. वह सरकार के इस फैसले के खिलाफ 5 नवंबर को शिक्षा निदेशालय का घेराव करने वाले हैं और वहां उग्र प्रदर्शन सरकार के इस आदेश के खिलाफ छात्र अभिभावक मंच की ओर से किया जाएगा.

वीडियो.

मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस निर्णय को तुरन्त वापिस लिया जाए व निजी स्कूलों की ओर से छात्रों व अभिभावकों की पूर्ण फीस वसूली में की जा रही मानसिक प्रताड़ना पर रोक लगाई जाए. मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छः लाख छात्रों के दस लाख अभिभावकों सहित कुल सोलह लाख लोगों से निजी स्कूलों की पूर्ण फीस उगाही का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की हैं.

उन्होंने पूर्ण फीस वसूली पर कैबिनेट के निर्णय को बेहद चौंकाने वाला छात्र व अभिभावक विरोधी निर्णय बताया है. इस निर्णय के आने के बाद निजी स्कूलों ने छात्रों व अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है. निजी स्कूलों व संस्थानों ने दोबारा से छात्रों व अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के लिए मोबाइल मैसेज भेजना शुरू कर दिए हैं.

इन मैसेज में उन्हें डराया धमकाया जा रहा है कि अगर पूर्ण फीस जमा न की गई तो छात्रों को न केवल संस्थानों से बाहर कर दिया जाएगा अपितु उन्हें परीक्षाओं में भी नहीं बैठने दिया जाएगा. ऐसे अनेकों उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल रहे हैं. इसे जमा न करने की स्थिति में छात्रों को एग्जाम में न बैठने देने के धमकी भरे मैसेज भेजे जा रहे हैं.

विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि प्रदेश सरकार की निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत का पर्दाफाश हो चुका ह. इस मिलीभगत के कारण ही सरकार ने मई महीने में जान बूझकर अधिसूचना में अस्पष्टता दिखाई ताकि वक्त आने पर निजी स्कूलों को इसकी आड़ में लूट की खुली इजाजत दी जा सके. ट्यूशन फीस के अलावा बाकी अन्य चार्जेज सहित फीस माफी को अधिसूचना में जान बूझ कर नहीं दर्शाया गया.

सरकार की छात्र व अभिभावक विरोधी मंशा ओर उसकी निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत को छात्र अभिभावक मंच ने बखूबी भांप लिया था व कैबिनेट के निर्णय के तीन दिन के भीतर मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव व शिक्षा निदेशक को पत्र लिख कर इस पर कड़ा ऐतराज जाहिर किया था.

विजेंद्र मेहरा ने कहा कि यह एक बेहद हास्यास्पद व चौंकाने वाली बात है कि एक भी दिन स्कूल गए बिना ही छात्रों व अभिभावकों से मनचाही फीस उगाही जा रही है. एक भी दिन स्कूल न लगने के बावजूद पूर्ण फीस वसूली का निर्णय सरकार के निजी स्कूलों के प्रति प्रेम व उनके मुनाफे को बढ़ाने की नीति को बेनकाब करता हैं.

शिमला जैसे विंटर स्कूलों में फाइनल एग्जाम की डेटशीट व पाठयक्रम भी जारी हो चुका है. एक भी दिन स्कूल नहीं लगे हैं. स्कूल का छात्रों पर कोई भी खर्चा नहीं हुआ है. उनके बिजली, पानी के बिल भी नाम मात्र हैं. उन्होंने कहा है कि नियमित स्कूल न चलने के कारण निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों ने आधे अध्यापकों, कर्मचारियों, ड्राइवरों, सुरक्षा स्टाफ व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर कोरोना काल में भी चांदी कूटी है.

इन स्कूलों ने कुल फीस व चार्जेज के अस्सी प्रतिशत हिस्से को टयूशन फीस में परिवर्तित करके अभिभावकों से ज्यादातर फीस भी वसूल ली है. इसके विपरीत बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज के लिए नए मोबाइल व डेटा इस्तेमाल करने पर अभिभावकों पर हज़ारों रुपये का अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है.

उन्होंने हैरानी जताई कि प्रदेश सरकार की कैबिनेट हिमाचल उच्च न्यायालय के एक निर्णय को आधार बनाकर निजी स्कूलों को खुली लूट की इजाजत दे रही है, जबकि इसी सरकार ने 27 अप्रैल 2016 को उच्च न्यायालय की ओर से स्कूलों की ओर से वसूली जाने वाली टयूशन फीस के अलावा एडमिशन फीस, बिल्डिंग फंड, एनुअल चार्जेज व अन्य विविध फंडों पर लगाई गयी रोक के निर्णय को लागू करने में पिछले चार वर्षों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इसी से स्पष्ट है कि जब न्यायालय का निर्णय निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के पक्ष में आता है तो सरकार निर्णय को रातोंरात लागू कर देती है, जबकि निर्णय इन निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के खिलाफ आता है तो सरकार चार वर्षों तक उस निर्णय को लागू नहीं करती है. उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि यह दोहरा रवैया किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होगा. उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को तुरंत वापिस लिया जाए.

शिमला: प्रदेश के निजी स्कूल अब छात्रों से पूरी फीस ले सकेंगे. इतना ही नहीं जिन अभिभावकों को कोविड के संकट की वजह से पहले भी फीस छात्रों को नहीं दी हैं. निजी स्कूल अभिभावकों से एक साथ वसूल कर सकेंगे. सरकार की ओर से प्रदेश के निजी स्कूलों को अभिभावकों से पूरी फीस लेने के छूट दे दी गई है जिसका छात्र अभिभावक मंच की ओर से कड़ा विरोध किया जा रहा है.

यही वजह है कि अब छात्र अभिभावक मंच का आक्रोश बढ़ गया है. वह सरकार के इस फैसले के खिलाफ 5 नवंबर को शिक्षा निदेशालय का घेराव करने वाले हैं और वहां उग्र प्रदर्शन सरकार के इस आदेश के खिलाफ छात्र अभिभावक मंच की ओर से किया जाएगा.

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मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस निर्णय को तुरन्त वापिस लिया जाए व निजी स्कूलों की ओर से छात्रों व अभिभावकों की पूर्ण फीस वसूली में की जा रही मानसिक प्रताड़ना पर रोक लगाई जाए. मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छः लाख छात्रों के दस लाख अभिभावकों सहित कुल सोलह लाख लोगों से निजी स्कूलों की पूर्ण फीस उगाही का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की हैं.

उन्होंने पूर्ण फीस वसूली पर कैबिनेट के निर्णय को बेहद चौंकाने वाला छात्र व अभिभावक विरोधी निर्णय बताया है. इस निर्णय के आने के बाद निजी स्कूलों ने छात्रों व अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है. निजी स्कूलों व संस्थानों ने दोबारा से छात्रों व अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के लिए मोबाइल मैसेज भेजना शुरू कर दिए हैं.

इन मैसेज में उन्हें डराया धमकाया जा रहा है कि अगर पूर्ण फीस जमा न की गई तो छात्रों को न केवल संस्थानों से बाहर कर दिया जाएगा अपितु उन्हें परीक्षाओं में भी नहीं बैठने दिया जाएगा. ऐसे अनेकों उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल रहे हैं. इसे जमा न करने की स्थिति में छात्रों को एग्जाम में न बैठने देने के धमकी भरे मैसेज भेजे जा रहे हैं.

विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि प्रदेश सरकार की निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत का पर्दाफाश हो चुका ह. इस मिलीभगत के कारण ही सरकार ने मई महीने में जान बूझकर अधिसूचना में अस्पष्टता दिखाई ताकि वक्त आने पर निजी स्कूलों को इसकी आड़ में लूट की खुली इजाजत दी जा सके. ट्यूशन फीस के अलावा बाकी अन्य चार्जेज सहित फीस माफी को अधिसूचना में जान बूझ कर नहीं दर्शाया गया.

सरकार की छात्र व अभिभावक विरोधी मंशा ओर उसकी निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत को छात्र अभिभावक मंच ने बखूबी भांप लिया था व कैबिनेट के निर्णय के तीन दिन के भीतर मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव व शिक्षा निदेशक को पत्र लिख कर इस पर कड़ा ऐतराज जाहिर किया था.

विजेंद्र मेहरा ने कहा कि यह एक बेहद हास्यास्पद व चौंकाने वाली बात है कि एक भी दिन स्कूल गए बिना ही छात्रों व अभिभावकों से मनचाही फीस उगाही जा रही है. एक भी दिन स्कूल न लगने के बावजूद पूर्ण फीस वसूली का निर्णय सरकार के निजी स्कूलों के प्रति प्रेम व उनके मुनाफे को बढ़ाने की नीति को बेनकाब करता हैं.

शिमला जैसे विंटर स्कूलों में फाइनल एग्जाम की डेटशीट व पाठयक्रम भी जारी हो चुका है. एक भी दिन स्कूल नहीं लगे हैं. स्कूल का छात्रों पर कोई भी खर्चा नहीं हुआ है. उनके बिजली, पानी के बिल भी नाम मात्र हैं. उन्होंने कहा है कि नियमित स्कूल न चलने के कारण निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों ने आधे अध्यापकों, कर्मचारियों, ड्राइवरों, सुरक्षा स्टाफ व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर कोरोना काल में भी चांदी कूटी है.

इन स्कूलों ने कुल फीस व चार्जेज के अस्सी प्रतिशत हिस्से को टयूशन फीस में परिवर्तित करके अभिभावकों से ज्यादातर फीस भी वसूल ली है. इसके विपरीत बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज के लिए नए मोबाइल व डेटा इस्तेमाल करने पर अभिभावकों पर हज़ारों रुपये का अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है.

उन्होंने हैरानी जताई कि प्रदेश सरकार की कैबिनेट हिमाचल उच्च न्यायालय के एक निर्णय को आधार बनाकर निजी स्कूलों को खुली लूट की इजाजत दे रही है, जबकि इसी सरकार ने 27 अप्रैल 2016 को उच्च न्यायालय की ओर से स्कूलों की ओर से वसूली जाने वाली टयूशन फीस के अलावा एडमिशन फीस, बिल्डिंग फंड, एनुअल चार्जेज व अन्य विविध फंडों पर लगाई गयी रोक के निर्णय को लागू करने में पिछले चार वर्षों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इसी से स्पष्ट है कि जब न्यायालय का निर्णय निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के पक्ष में आता है तो सरकार निर्णय को रातोंरात लागू कर देती है, जबकि निर्णय इन निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के खिलाफ आता है तो सरकार चार वर्षों तक उस निर्णय को लागू नहीं करती है. उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि यह दोहरा रवैया किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होगा. उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को तुरंत वापिस लिया जाए.

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