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जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाई? जानें इसका समृद्ध इतिहास

धर्मनगरी हरिद्वार कुंभ मेले के रंग में रंग चुकी है. आज निरंजनी अखाड़े की भव्य पेशवाई निकाली जाएगी. जानिए क्या है शाही पेशवाई की परंपरा.

Maha Kumbh Haridwar mela 2021
जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाई
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Published : Mar 3, 2021, 11:08 AM IST

हरिद्वार: कुंभ मेले में देश-विदेश के लोगों को भारत की पुरातन सभ्यता देखने को मिलती है. जिसका समृद्ध इतिहास अपने आप में बेमिसाल है. जिसे साक्षात्कार करने देश-विदेश से श्रद्धालु कुंभ में पहुंचते हैं. कुंभ सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. धर्मनगरी हरिद्वार में आज निरंजनी अखाड़े की भव्य पेशवाई निकाली जाएगी. जानिए क्या है शाही पेशवाई की परंपरा...

धर्म और देश की रक्षा के लिए उठाए हथियार

कुंभ हिंदुओं और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है. कुंभ अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़े रखने का महापर्व है. कुंभ के वाहक साधु-संतों के प्रति समाज की आस्था को प्रदर्शित करने का पर्व है. यही साधु संत हैं जिन्होंने न केवल धर्म संस्कृति को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत किया, बल्कि समय-समय पर देश की रक्षा के लिए हथियार भी उठाए. साधु संत देशभर में घूम-घूमकर धर्म की अलख जगाते हैं और कुंभ के अवसर पर इनका स्वागत किया जाता है.

जब भी कुंभ होता है, तो देशभर से तपस्वी साधु-संत कुंभनगरी में पहुंचते हैं. तो इनका राजसी स्वागत किया जाता है. इन साधु संतों को पेशवाई के रूप में शाही ठाट-बाट और शानो-शौकत के साथ कुंभ में प्रवेश कराया जाता है. साधु-संतों कि शाही पेशवाईयों को देखने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु कुंभ नगरी में पहुंचते हैं. वहीं संतों की शाही पेशवाईयों को लेकर ब्रिटेन की संसद भी सनातन परंपरा के आगे झुक गई थी.

आखिर क्यों निकाली जाती है शाही पेशवाई?

हरिद्वार में कुंभ की रौनक शुरू हो गई है और हरिद्वार सजने लगा है. आज से अखाड़ों की पेशवाईयों का सिलसिला शुरू हो गया. जिसके बाद कुंभ नगरी देवलोक जैसी नजर आने लगेगी. दरअसल, किसी भी अखाड़ें के लिए पेशवाई बहुत खास होती है, पेशवाई यानी राजसी शानो- शौकत के साथ साधु-संतों का कुंभ में प्रवेश कराना है. वहीं, पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत महेश्वर दास बताते है पेशवाई का मतलब ऐसी शोभायात्रा से होता है, जिसमें साधु-संत शाही रूप में राजा महाराजों की तरह हाथी, घोड़ों और रथों पर बड़े-बड़े भव्य सिंहासनों पर बैठकर निकलते हैं और जनता रास्ते भर उनका स्वागत व सम्मान करती है.

भारत की जन भावना संतों के साथ

आजादी से पहले जब देश अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था और धर्म संस्कृति पर खतरे मंडरा रहे थे, तब राजा महाराजों ने धर्म, संस्कृति और देश की रक्ष के लिए साधु संतों से आग्रह किया था. संतों ने धर्म प्रचार के साथ-साथ तलवार उठाकर भी धर्म संस्कृति और देश की रक्षा की थी. तभी से जंहा भी कुंभ पर्व होता था तो साधु संतों को राजा महाराजा अपने रथ हाथी घोड़ों पर शाही रूप में कुंभ में पेश कराते थे. महेश्वर दास ने बताया कि पहले राजाओं को पेशवा भी कहा जाता था, इसलिए संतों के कुंभ में प्रवेश को पेशवाई कहा जाता है. इनका कहना है कि अंग्रेजों ने भी पेशवाई का सम्मान किया है और ब्रिटेन की संसद में पेशवाई को लेकर बहस की गई और उन्होंने भी माना था कि अगर भारत पर राज करना है तो वहां की जन भावनाओं का ख्याल रखना होगा. क्योंकि भारत की जन भावना संतों के साथ जुड़ी हुई है.

कुंभ पुरातन सभ्यता का झलक
कुंभ में साधु संतों की पेशवाई के साथ-साथ कुंभ की गतिविधियां भी शुरू हो जाती हैं. श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का कहना है कि पेशवाई शब्द फारसी शब्द है और इसका अर्थ होता है कि अपनी सेना और परंपराओं के साथ नगर में निकलना. उसको पेशवाई कहा जाता है. जब पेशवाई किसी अखाड़े द्वारा निकाली जाती है, तो उसका कोई भी व्यक्ति अखाड़े में मौजूद नहीं होता है. पेशवाई के माध्यम से सभी साधु संतों का दर्शन नगर के लोग करते हैं. भारत में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में ही कुंभ मेले में पेशवाई निकाली जाती है. पेशवाई में अखाड़े अपने सभी हथियार और निशान के साथ पेशवाई निकालते हैं. यह सिर्फ कुंभ के अवसर पर ही निकाली जाती है. क्योंकि कुंभ में सभी अखाड़ों के साधु संत मौजूद होते हैं. इसलिए इस परंपरा को अनोखी परंपरा कहते हैं. उन्होंने कहा कि कुंभ का पहला स्वरूप ही पेशवाई होता है. पेशवाई हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे के साथ निकाली जाती है, क्योंकि भारतीय परंपरा में इसको शुभ माना जाता है.

ये भी पढ़ें: इस परिवार से जुड़ा है रिकांगपिओ शहर का नाम, 1960 में बॉर्डर पुलिस ने किया था नामकरण

उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति का सम्मान पूरी दुनिया करती है और कुंभ को लेकर दुनिया भर में कई अवार्ड मिले हैं. कुंभ में एक महानगर बसाया जाता है. इसलिए यह पहला ऐसा मेला है जहां पर इतनी बड़ी व्यवस्थाएं की जाती है. उसको देखने के लिए पूरी दुनिया के लोग कुंभ में आते हैं कुंभ मेले पर कई देश रिसर्च भी कर रहे हैं कि कुंभ मेला कैसे निर्विघ्न संपन्न होता है.कुंभ मेले में सबसे आकर्षण का केंद्र होती है अखाड़ों द्वारा निकाले जाने वाली पेशवाई और इसको लेकर ब्रिटेन की संसद भी हिंदू सनातन धर्म के आगे झुक गई थी. देशभर का भ्रमण कर सभी साधु संत कुंभ नगरी पहुंचते हैं. वहां पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है. इसी को पेशवाई कहते हैं और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

ये भी पढ़ें: डीएमआर ने ईजाद किया कैंसर से लड़ने वाला ग्राइफोला मशरूम

हरिद्वार: कुंभ मेले में देश-विदेश के लोगों को भारत की पुरातन सभ्यता देखने को मिलती है. जिसका समृद्ध इतिहास अपने आप में बेमिसाल है. जिसे साक्षात्कार करने देश-विदेश से श्रद्धालु कुंभ में पहुंचते हैं. कुंभ सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. धर्मनगरी हरिद्वार में आज निरंजनी अखाड़े की भव्य पेशवाई निकाली जाएगी. जानिए क्या है शाही पेशवाई की परंपरा...

धर्म और देश की रक्षा के लिए उठाए हथियार

कुंभ हिंदुओं और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है. कुंभ अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़े रखने का महापर्व है. कुंभ के वाहक साधु-संतों के प्रति समाज की आस्था को प्रदर्शित करने का पर्व है. यही साधु संत हैं जिन्होंने न केवल धर्म संस्कृति को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत किया, बल्कि समय-समय पर देश की रक्षा के लिए हथियार भी उठाए. साधु संत देशभर में घूम-घूमकर धर्म की अलख जगाते हैं और कुंभ के अवसर पर इनका स्वागत किया जाता है.

जब भी कुंभ होता है, तो देशभर से तपस्वी साधु-संत कुंभनगरी में पहुंचते हैं. तो इनका राजसी स्वागत किया जाता है. इन साधु संतों को पेशवाई के रूप में शाही ठाट-बाट और शानो-शौकत के साथ कुंभ में प्रवेश कराया जाता है. साधु-संतों कि शाही पेशवाईयों को देखने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु कुंभ नगरी में पहुंचते हैं. वहीं संतों की शाही पेशवाईयों को लेकर ब्रिटेन की संसद भी सनातन परंपरा के आगे झुक गई थी.

आखिर क्यों निकाली जाती है शाही पेशवाई?

हरिद्वार में कुंभ की रौनक शुरू हो गई है और हरिद्वार सजने लगा है. आज से अखाड़ों की पेशवाईयों का सिलसिला शुरू हो गया. जिसके बाद कुंभ नगरी देवलोक जैसी नजर आने लगेगी. दरअसल, किसी भी अखाड़ें के लिए पेशवाई बहुत खास होती है, पेशवाई यानी राजसी शानो- शौकत के साथ साधु-संतों का कुंभ में प्रवेश कराना है. वहीं, पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत महेश्वर दास बताते है पेशवाई का मतलब ऐसी शोभायात्रा से होता है, जिसमें साधु-संत शाही रूप में राजा महाराजों की तरह हाथी, घोड़ों और रथों पर बड़े-बड़े भव्य सिंहासनों पर बैठकर निकलते हैं और जनता रास्ते भर उनका स्वागत व सम्मान करती है.

भारत की जन भावना संतों के साथ

आजादी से पहले जब देश अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था और धर्म संस्कृति पर खतरे मंडरा रहे थे, तब राजा महाराजों ने धर्म, संस्कृति और देश की रक्ष के लिए साधु संतों से आग्रह किया था. संतों ने धर्म प्रचार के साथ-साथ तलवार उठाकर भी धर्म संस्कृति और देश की रक्षा की थी. तभी से जंहा भी कुंभ पर्व होता था तो साधु संतों को राजा महाराजा अपने रथ हाथी घोड़ों पर शाही रूप में कुंभ में पेश कराते थे. महेश्वर दास ने बताया कि पहले राजाओं को पेशवा भी कहा जाता था, इसलिए संतों के कुंभ में प्रवेश को पेशवाई कहा जाता है. इनका कहना है कि अंग्रेजों ने भी पेशवाई का सम्मान किया है और ब्रिटेन की संसद में पेशवाई को लेकर बहस की गई और उन्होंने भी माना था कि अगर भारत पर राज करना है तो वहां की जन भावनाओं का ख्याल रखना होगा. क्योंकि भारत की जन भावना संतों के साथ जुड़ी हुई है.

कुंभ पुरातन सभ्यता का झलक
कुंभ में साधु संतों की पेशवाई के साथ-साथ कुंभ की गतिविधियां भी शुरू हो जाती हैं. श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का कहना है कि पेशवाई शब्द फारसी शब्द है और इसका अर्थ होता है कि अपनी सेना और परंपराओं के साथ नगर में निकलना. उसको पेशवाई कहा जाता है. जब पेशवाई किसी अखाड़े द्वारा निकाली जाती है, तो उसका कोई भी व्यक्ति अखाड़े में मौजूद नहीं होता है. पेशवाई के माध्यम से सभी साधु संतों का दर्शन नगर के लोग करते हैं. भारत में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में ही कुंभ मेले में पेशवाई निकाली जाती है. पेशवाई में अखाड़े अपने सभी हथियार और निशान के साथ पेशवाई निकालते हैं. यह सिर्फ कुंभ के अवसर पर ही निकाली जाती है. क्योंकि कुंभ में सभी अखाड़ों के साधु संत मौजूद होते हैं. इसलिए इस परंपरा को अनोखी परंपरा कहते हैं. उन्होंने कहा कि कुंभ का पहला स्वरूप ही पेशवाई होता है. पेशवाई हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे के साथ निकाली जाती है, क्योंकि भारतीय परंपरा में इसको शुभ माना जाता है.

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उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति का सम्मान पूरी दुनिया करती है और कुंभ को लेकर दुनिया भर में कई अवार्ड मिले हैं. कुंभ में एक महानगर बसाया जाता है. इसलिए यह पहला ऐसा मेला है जहां पर इतनी बड़ी व्यवस्थाएं की जाती है. उसको देखने के लिए पूरी दुनिया के लोग कुंभ में आते हैं कुंभ मेले पर कई देश रिसर्च भी कर रहे हैं कि कुंभ मेला कैसे निर्विघ्न संपन्न होता है.कुंभ मेले में सबसे आकर्षण का केंद्र होती है अखाड़ों द्वारा निकाले जाने वाली पेशवाई और इसको लेकर ब्रिटेन की संसद भी हिंदू सनातन धर्म के आगे झुक गई थी. देशभर का भ्रमण कर सभी साधु संत कुंभ नगरी पहुंचते हैं. वहां पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है. इसी को पेशवाई कहते हैं और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

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