शिमलाः रविवार को प्रदेश के 50 शहरी स्थानीय निकायों में चुनाव हुआ. इनमें 29 नगर परिषद और 21 नगर पंचायतें शामिल थी. चुनाव भले सिंबल पर न हुआ हो लेकिन जीत का दावा बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक ने किया है और नतीजों के बाद भी जारी है. चुनावी नतीजों से पहले बीजेपी अपने समर्थित प्रत्याशियों की जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही थी लेकिन इन चुनावों में उसको कुछ ऐसे झटके लगे हैं जो पार्टी संगठन को मंथन मोड पर जरूर ले जाएगा.
इन चुनावों में भले प्रत्याशी कांग्रेस और बीजेपी के समर्थित थे लेकिन पार्टियों की साख उनके साथ जुड़ी रही. कुछ जगह पार्टियों के बड़े चेहरे प्रचार के लिए मैदान में उतरे जिसके चलते उनकी साख इन चुनावों पर दांव पर लग गई. इस मामले में बीजेपी की एक पार्टी के साथ-साथ उसके चेहरों की साख भी दांव पर थी और इन चुनावों में दोनों को झटका दिया है.
जीत नहीं दिलवा सके रमेश धवाला
ज्वालामुखी नगर परिषद भाजपा के लिए चिंता का सबब बनकर उभरा है. यहां पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री रमेश धवाला अपने ही घर पर जीत नहीं दिलवा सके. कांग्रेस ने नगर परिषद अपने नाम कर ली है.
पांवटा साहिब में नहीं दिखा सुखराम का दम
कैबिनेट मंत्री सुखराम चौधरी के निर्वाचन क्षेत्र पांवटा साहिब में बीजेपा खासा कमाल नहीं कर सकी. यहां सुखराम चौधरी ने घर-घर जा कर प्रचार किया लेकिन वे पार्टी को अपेतक्षित रिकॉर्ड तोड़ जीत नहीं दिला सके. पांवटा साहिब नगर परिषद की 13 सीटों में बीजेपी को 6, कांग्रेस को 4 और निर्दलीय को 3 सीट पर जीत मिली.
राजीव सैजल को भी झटका
कैबिनेट मंत्री डॉ. राजीव सैजल के इलाके में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कर सरकार को जोर का झटका धीरे से दिया है. नगर परिषद परवाणू में स्वास्थ्य मंत्री खुद भाजपा समर्थित उम्मीदवारों के प्रचार के लिए सभी नौ वार्ड में प्रचार के लिए उतरे थे. लेकिन यहां 6 वार्ड पर कांग्रेस समर्थित जबकि 2 वार्ड में बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की.
इसके अलावा बद्दी नगर परिषद में बीजेपी और कांग्रेस के बीच बराबरी की टक्कर रही. अर्की नगर पंचायत में 7 में से 5 वार्ड में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार जीते जबकि बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों को सिर्फ 2 वार्ड में जीत नसीब हुई. हालांकि नालागढ़ में बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों ने 9 में से 5 वार्ड अपने नाम किए और कांग्रेस के खाते में तीन और निर्दलीय को एक वार्ड में जीत मिली.
राजेंद्र गर्ग के वार्ड में नहीं खिला 'कमल'
सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री और बीजेपी राष्ट्र अध्यक्ष जेपी नड्डा के चहेते माने जाने वाले राजेंद्र गर्ग के वार्ड में तो पार्टी की हालत और भी खराब रही. नगर परिषद घुमारवीं के जिस वार्ड में मंत्री जी ने मतदान किया उस वार्ड में भी बीजेपी समर्थित उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहा.
बस पार्टी इतना संतोष जरूर कर सकती है कि जीत कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को नहीं बल्कि निर्दलीय को मिली है. यहां निर्दलीय उम्मीदवार को 282, कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को 206 जबकि बीजेपी समर्थित उम्मीदवार को सिर्फ 58 वोट मिले.
सरवीण चौधरी के वार्ड में भी पार्टी समर्थित प्रत्याशी की हार
कैबिनेट मंत्री सरवीण चौधरी ने भी शाहपुर नगर पंचायत के जिस वार्ड नंबर 2 में मतदान किया था. वहां भी बीजेपी समर्थित उम्मीदवार नहीं जीत पाया. यहां कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को 282 जबकि बीजेपी समर्थित उम्मीदवार को 165 वोट मिले.
सीएम के गृह जिला में भी जीत अधूरी
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों का प्रदर्शन उस स्तर का नहीं रहा. यहां कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों ने बीजेपी समर्थित प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दी. नेरचौक नगर परिषद में मुकाबला बराबरी का रहा तो जोगिंद्रनगर नगर परिषद, रिवालसर नगर पंचायत में कांग्रेस और नगर परिषद सरकाघाट, नगर पंचायत करसोग में बीजेपी जीत का दावा कर रही है.
जीत के अपने-अपने दावे
हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने 70 प्रतिशत से अधिक नगर पंचायत और नगर परिषद चुनावों में अपनी जीत का दावा किया है. कांग्रेस 37 नगर निकायों में अपने उम्मीदवारों की जीत का दावा कर रही है.
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने नगर पंचायत और नगर परिषद चुनावों में जीत का दावा किया है. उन्होंने कांग्रेस की जीत के दावे को खारिज करते हुए कहा कि जीत का पता उस समय पर पता चलेगा जब अध्यक्षों की नियुक्ति होगी. जयराम ठाकुर ने नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सिंह सुक्खू पर वार साधते हुए उन्हें अपना कुनबा संभालने की हिदायत दी है.
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने भी जीत का दावा करते हुए कहा कि जनता ने प्रदेश सरकार के 3 साल के कार्यकाल और सरकार की नीतियों पर इस चुनाव के जरिए मुहर लगाई है. बीजेपी को 21 नगर पंचायतों में से 18 पर पार्टी जीतने में कामयाब रही है. वहीं, 29 में से 24 नगर परिषदों पर भी भाजपा ने परचम लहराया है.
जीत मेरी, हार तेरी
दरअसल शहरी स्थानीय निकाय के चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं होते. सियासी दल उम्मीदवार को ज्यादातर अप्रत्यक्ष समर्थन देती है, जो जीत मिलने पर प्रत्यक्ष हो जाता है. कुछ जगह पार्टी खुलकर समर्थन करती है तो कुछ जगह पार्टी के बड़े चेहरे कुछ प्रत्याशियों के समर्थन में खुलकर सामने आते हैं.
कुल मिलाकर इन चुनावों में नतीजों के बाद प्रत्याशियों के घर तय होते हैं कि वो किस दल के हैं या किस दल के साथ जाएंगे. कुर्सी के किस्से की ये कहानी बहुत दिलचस्प है. जहां चुनाव में जीत के बाद हर दल उसे अपना बताता है और हार पर उसे विरोधी दल या सिंबल पर चुनाव न होने का बहाना बना लेता है. कुल मिलाकर यहां मीठा-मीठा गप्प और कड़वा-कड़वा थू होता है.
चुनावी नतीजे जो भी हों. प्रत्याशी से लेकर सियासी दलों तक सब जानते हैं कि इस चुनाव में उन्हें क्या मिला और जनता जानती है कि उन्होंने किसे चुना. इसलिये चुनावी नतीजे हर सियासी दल के लिए मंथन का वक्त है.