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10वीं शताब्दी में बना हाटकोटी मंदिर, यहां से उल्टे पांव भागा था नेपाल का राजा

धार्मिक स्थलों में से एक है ऊपरी शिमला जिला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर. यह शिमला से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है.

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Published : May 18, 2019, 1:18 PM IST

रामपुरः हिमाचल को प्राचीन काल से ही देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां कई देवी-देवताओं का निवास स्थान हैं. धर्मग्रन्थों में भी हिमाचल के कई क्षेत्रों का वर्णन किया गया है. देवभूमि कहे जाने वाला हिमाचल की प्रसिद्धि केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है. यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं.

प्रदेश के इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है ऊपरी शिमला जिला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर. यह शिमला से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है.

कलाकृति
hatkoti temple
हाटकोटी मंदिर
हाटकोटी माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. यहां माता के मंदिर में शिल्पकला, वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं. बताया जाता है कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी के का बना है.
hatkoti temple
कलाकृति

मान्यता है कि माता के मंदिर में आने से अपार शांति का अनुभव होता है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते है. माता के मंदिर में चारों ओर असीम सोंदर्य सैलानियों को अपनी और आकर्षित करता है. पौरणिक मान्यताओं के अनुसार यहां अज्ञात वास के समय में पांडव आए थे और यहां कुछ दिन बिताए. इसका प्रमाण आज भी वहां देखने को मिलते हैं.

यह भी कहा जाता है कि यहां माता की मूर्ति को ले जानें के लिए नेपाल के राजा आए थे, वो माता की मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे और अपने राज्य में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन वो यहां से माता को उठाने में नाकाम रहे. अंत में उन्होंने हार मान ली और वापस लौट गए.

hatkoti temple
हाटकोटी मंदिर

हाटकोटी माता का एक पैर पाताल लोक तक है, जिसका आज तक कोई भी पता नहीं लगा पाया है. मान्यता है कि माता ने महिषासुर का वध किया था. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर, पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव विराजमान हैं.

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रामपुरः हिमाचल को प्राचीन काल से ही देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां कई देवी-देवताओं का निवास स्थान हैं. धर्मग्रन्थों में भी हिमाचल के कई क्षेत्रों का वर्णन किया गया है. देवभूमि कहे जाने वाला हिमाचल की प्रसिद्धि केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है. यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं.

प्रदेश के इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है ऊपरी शिमला जिला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर. यह शिमला से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है.

कलाकृति
hatkoti temple
हाटकोटी मंदिर
हाटकोटी माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. यहां माता के मंदिर में शिल्पकला, वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं. बताया जाता है कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी के का बना है.
hatkoti temple
कलाकृति

मान्यता है कि माता के मंदिर में आने से अपार शांति का अनुभव होता है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते है. माता के मंदिर में चारों ओर असीम सोंदर्य सैलानियों को अपनी और आकर्षित करता है. पौरणिक मान्यताओं के अनुसार यहां अज्ञात वास के समय में पांडव आए थे और यहां कुछ दिन बिताए. इसका प्रमाण आज भी वहां देखने को मिलते हैं.

यह भी कहा जाता है कि यहां माता की मूर्ति को ले जानें के लिए नेपाल के राजा आए थे, वो माता की मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे और अपने राज्य में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन वो यहां से माता को उठाने में नाकाम रहे. अंत में उन्होंने हार मान ली और वापस लौट गए.

hatkoti temple
हाटकोटी मंदिर

हाटकोटी माता का एक पैर पाताल लोक तक है, जिसका आज तक कोई भी पता नहीं लगा पाया है. मान्यता है कि माता ने महिषासुर का वध किया था. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर, पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव विराजमान हैं.

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Intro:रामपुर बुशहर 18मई मीनाक्षी


Body:हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है उतनी ही गहरी आस्था यहां के लोगों में भी देवी देवताओं के प्रती है। उसी में से हिमाचल प्रदेश के ऊपरी ईशिमला जिला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता का मंदिर हाटकोटी है। यह शिमला से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पबबर नदी के दाहिने किनारे पर स्थित अति प्राचीन के लिए जाना जाता है । हाटकोटी माता को महिषासुर मरदानीके नाम से भी जाना जाता है । यहां पर माता के मंदिर में शिल्पकला, वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं । बताते हैं कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी के आसपास का बना हुआ है ।
माता के मंदिर में आने से अपार शांति का अनुभव होता है । यहां पर दुर दुर से लोग माता के दर्शन के लिए आते है । माता के मंदिर चारों ओर असीम सोंदर्य सैलानियों को अपनी और आकर्षित करता है ।
मान्यता है कि यहां पर अज्ञात वास के समय में पांडव आए थे और उन्होंने यहां पर कुछ दिन समय बिताया था । जिनके अवशेष आज भी यहां पर देखने को मिलते हैं ।
यह भी कहा जाता है कि यहां पर माता की मूर्ति को ले जानें के लिए नेपाल के राजा आए थे वे माता की मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे और अपने राज्य में स्थापित करना चाहते थे । लेकिन वे यहां से माता को उठाने में नाकाम रहे । अंत में उन्होंने हार मान ली और वापस लौट गए । हाटकोटी माता का एक पेर पाताल लोक तक है जिसका आज तक कोई भी पता नहीं लगा पाया । मान्यता है कि माता ने महिषासुर का वध किया था । माता के मंदिर में तांबे का घड़ा,शिव मंदिर,पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव विराजमान हैं ।
माता के मंदिर में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता का आशीर्वाद लेने को आते हैं ।

बाईट : पुजारी हाटकोटी माता ।


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