शिमला: सीएम जयराम का आज जन्मदिन है वे 56 साल के हो गए हैं. मंडी जिला के तांदी में 1965 को उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. सीएम जयराम का बचपन गरीबी में बीता था. पिता जेठू राम खेतीबाड़ी और राजमिस्त्री का काम कर घर खर्च चलाते थे. घर पर संसाधनों का आभाव था, लेकिन कहते हैं जिनमे कुछ कर गुजरने की क्षमता होती है. सफलता एक दिन उनके कदम चूम ही लेती है
हिमाचल में तीन साल से एक नारा कई मंचों पर सुना जा सकता है. शिखर पर सिराज, खासकर मंडी जिला के निवासी अकसर ये वाक्य कहते सुने जा सकते हैं. इस समय हिमाचल में सिराज सत्ता के शिखर पर है. जयराम ठाकुर बेशक राजनीतिक जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं, लेकिन उनके सियासी सफर का आरंभ संघर्ष से हुआ था.
हार गए थे पहला चुनाव
जयराम ठाकुर अपना पहला चुनाव हार गए थे. बात वर्ष 1993 की है. आज से सत्ताइस साल पहले जयराम ठाकुर ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें असफलता हाथ लगी थी. उसके बाद जयराम ठाकुर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अब वे प्रदेश की सबसे हॉट सीट पर तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.
वरिष्ठ नेताओं ने कर लिया था किनारा
राजनीतिक जीवन में इस पद की आकांक्षा हर नेता की होती है. यदि जयराम ठाकुर की चुनावी राजनीति की पारी की शुरुआत देखें तो ये संघर्षपूर्ण रही है. वर्ष 1993 में युवा जयराम ठाकुर को जब सिराज (तब चच्योट) से टिकट मिला तो पार्टी के कई सीनियर नेताओं को हाईकमान का ये फैसला कुछ पचा नहीं था. बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने तब युवा जयराम से किनारा कर लिया. प्रचार में भी सहयोग नहीं मिला, लेकिन उस समय चच्योट के कुछ उत्साही युवाओं ने जयराम ठाकुर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार की बागडोर संभाली.
1998 में चखा था जीत का स्वाद
राजनीतिक जीवन के चुनावी सफर में जयराम ठाकुर बेशक अपना पहला चुनाव हार गए, लेकिन उनके संघर्ष ने आने वाली सफलता के संकेत दे दिए थे. तब जयराम ठाकुर कांग्रेस के दिग्गज नेता ठाकुर मोतीराम से हार गए, लेकिन उसी चुनाव ने उनके लिए राजनीति का स्वर्णिम भविष्य लिख दिया था. अगला चुनाव वर्ष 1998 में आया और जयराम ठाकुर को पहली जीत मिली. उसके बाद जयराम ठाकुर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार पांच चुनाव जीतकर वर्ष 2017 में हिमाचल के सीएम के पद पर बैठे.
विनम्रता के लिए जाने जाते हैं सीएम
खैर, जिस समय जयराम ठाकुर पहली बार चुनाव लड़ रहे थे, तब शायद ही किसी ने ये कल्पना की होगी कि वे एक दिन राज्य की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचेंगे. वर्ष 1998 की चुनावी जीत के बाद वे नित्त नई सफलताएं अर्जित करते गए और अब हिमाचल के मुख्यमंत्री हैं. यहां इस खबर के साथ मौजूद फोटो बताती है कि चुनावी राजनीति में जयराम ठाकुर जब नए-नए थे, उस समय भी सादगी से रहते थे. राजनीति के गलियारों में अभी भी ये माना जाता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचकर भी जयराम ठाकुर में विनम्रता बची हुई है.
युवाओं साथियों का मिला सहारा
विपक्ष के नेताओं ने भी ये बात स्वीकारी है. ये बात अलग है कि पूरे प्रदेश का भार कंधे पर आ जाने के कारण वे अपने संघर्ष के समय के साथियों को उतना समय नहीं दे पाते होंगे. यदि संघर्ष के दौर को देखें तो वर्ष 1993 में विधानसभा का टिकट मिलने के बाद जयराम ठाकुर के समक्ष कई चुनौतियां थीं. एक तो वे चुनावी राजनीति के लिए नए-नए थे और दूसरी तरफ विधानसभा क्षेत्र के कुछ सीनियर लीडर टिकट की दौड़ में थे. ऐसे में जयराम ठाकुर के पास चुनावी रण में अपना दमखम दिखाने के लिए युवा साथियों का ही सहारा था.
उस समय के मंडल भाजपा अध्यक्ष हेमराज वर्मा, मंडल भाजपा महासचिव दुला सिंह ठाकुर, सिराज भाजयुमो अध्यक्ष नूतन ठाकुर, भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता छापे राम सहित कुछ उत्साही युवा साथ थे. उन्होंने गांव-गांव जाकर जयराम ठाकुर के लिए अलख जगाई. उसी दौरान गाड़ा गुशैणी में प्रचार के दौरान आए तो एक तस्वीर खिंचवाई गई. तस्वीर में जयराम ठाकुर बीच में बैठे हैं. सादे लिबास में जयराम ठाकुर के चेहरे पर दाढ़ी है.
वीरभद्र सिंह भी कर चुके हैं तारीफ
तस्वीर में उनके दाहिने तरफ चच्योट मंडल भाजपा के अध्यक्ष हेमराज वर्मा, बाईं तरफ महासचिव दुला सिंह ठाकुर बैठे हैं. बता दें कि जयराम ठाकुर की सादगी की तारीफ पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह भी कर चुके हैं. जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के बाद से देर-सबेर आम जनता की फोन कॉल भी पिक कर लेते हैं. स्कूली छात्रों के साथ सेल्फी खिंचवाने में उन्हें कोई परहेज नहीं है. कई कार्यक्रमों में जयराम ठाकुर जमीन पर बैठकर धाम खाने का लुत्फ उठा चुके हैं. ऐसे में सीएम जयराम ठाकुर के जन्मदिन के बहाने संघर्ष के दौर की तस्वीर उन्हें पुरानी याद दिलाएगी.