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चंबा की थाल है कमाल:थाली पर पोट्रेट बनाते हैं ये शिल्पकार, पूर्व राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित

चंबा रूमाल और चंबा चप्पल देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी पहचान बना चुके हैं. चंबा में शिल्पकारी, दस्तकारी और अन्य कलाएं रिसायतकाल में खूब फली फूलीं, लेकिन इन दिनों चंबा में हो रही मेटल कारीगरी भी देश विदेश में नाम बना रही है. चंबा में कई शिल्पकार पीतल से मूर्तियां और थाल बना रहे हैं. थाल पर ये शिल्पकार लोगों के पोट्रेट बना रहे हैं.

चंबा थाल, special story on chamba thali
चंबा थाल
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Published : Feb 15, 2021, 7:13 PM IST

चंबा: हिमाचल प्रदेश का चंबा जिला अपनी संस्कृति और कला के लिए प्रदेश में अलग पहचान रखता है. यहां पीतल की थाल पर होने वाला मेटल वर्क और मूर्तिकला में चंबा के कलाकारों का दूर-दूर तक कोई सानी नहीं है. चंबा में दशकों से पीतल की शीट पर बन रही चंबा थाल दशकों से देश विदेश में धमाल मचाती आ रही हैं. चंबा में शिल्पकार थालों पर पोट्रेट, भगवान की तस्वीरों से लेकर किसी भी आम और खास इंसान की हू-ब-हू तस्वीर उकेर देते हैं. इनके हाथ से बनाई गई थालियों की भारी डिमांड हैं.

रियासत काल के समय इन थालों पर राजाओं महाराजाओं, देवी-देवताओं सहित चंबा रुमाल से ली गई कलाकृतियां उकेरी जाती थी, लेकिन धीरे समय बदलने के साथ पीतल की थाल पर जानी मानी हस्तियों की तस्वीरें उकेरी जा रही हैं. चंबा जिला में कई मूर्तिकार और मेटल कारीगर (Metal work) मूर्तियां और चंबा थाल बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. मूर्तियां और चंबा थाल बनाने में काफी मेहनत और समय लगता है. कभी-कभी एक मूर्ति और थाल बनाने में चार दिन से लेकर छह महीने तक लग जाते हैं, क्योंकि ये सारा काम हाथों से किया जाता है.

वीडियो

हजारों में होती है एक थाल की कीमत

छोटा थाल 8 दिन में तैयार होता है और बड़ा थाल करीब 1 महीने में तैयार होता है. इनकी की कीमत 8 हजार से लेकर 20 हजार तक होती है. कई बार तो थाल की कीमत मुंह मांगी दी जाती है. इस थाल पर आम से खास, राजनेताओं, खिलाड़ियों और फिल्मी हस्तियों की फोटो भी तैयार की जाती हैं.

सचिन तेंदुलकर को भेंट कर चुके हैं थाल

चंबा जिला के शिल्पकार प्रकाश चंद मास्टर ब्लास्टर और क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, वन मंत्री राकेश पठानिया सहित अन्य नेताओं के पोट्रेट थाल पर उकेर कर भेंट कर चुके हैं. हालांकि थालों पर पोट्रेट बनाने की परंपरा पिछले कुछ सालों में शुरू हुई है जो मूर्तिकारों के लिए भी नया अनुभव है. अब इनके पोते थाल पर पीएम मोदी का पोट्रेट बनाकर उन्हें भेंट करना चाहते हैं.

1974 में राष्ट्रपति से मिला सम्मान

चंबा थाल और मूर्तियां बना रहे 84 साल के प्रकाश चंद को उनकी शिल्पकारी के लिए 1974 में राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं. इसके अलावा उन्हें मध्य प्रदेश, हिमाचल समेत अन्य राज्यों सरकारें और संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं. प्रकाश चंद अब उम्र अधिक होने के कारण काम छोड़ चुके हैं, लेकिन अब उनके बेटे और पोते उनके व्यवसाय को संभाल रहे हैं. आज भी इनका परिवार इसी मूर्तिकला से चलता है.

शिल्पकारों की सरकार से नाराजगी

प्रकाश चंद को इस बात का आज भी मलाल है कि राष्ट्रपति से सम्मानित होने के बाद भी जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार ने कभी इस कला को आगे बढ़ाने में उनका सहयोग नहीं किया. सरकार की तरफ से लगाए जाने वाले कौशल विकास शिविर में उन्हें नहीं बुलाया जाता है और ना ही ये कार्यक्रम उन्हें दिए जाते हैं. सरकार कौशल विकास शिविर में दो महीने इस काम को सिखाती है, लेकिन दो महीने में सही ढंग से औजार पकड़ना भी नहीं आता है

उपहार के तौर पर दी जाती है चंबा थाल

मूर्तिकला को पिछले 20 सालों से अपना रोजगार का जरिया बनाएं गौरव आनंद का कहना है कि वह उनका पुश्तैनी काम है. जिसे वह पिछले काफी सालों से कर रहे हैं, हालांकि इस काम में बड़ी मेहनत है. मूर्तियों सहित थाल को बनाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है. यह थाल शादियों, रिटायरमेंट जैसे कार्यक्रमों में बतौर उपहार भेंट करने के लिए दिया जाता है. इस थाल की कीमत साइज के अनुसार होती है, जितना बड़ा साइज उतना ज्यादा थाल की कीमत लगाई जाती है. चंबा थाल के लिए उन्हें विदेशों सहित देशभर से ऑर्डर मिलते हैं

रोजगार के मिल सकते हैं अवसर

चंबा थाल और मूर्तियां बना रहे शिल्पकारों का कहना है कि सरकार अगर इस तरफ ध्यान दे तो ये युवाओं के लिए रोजगार के द्वार तो खोलेगा ही साथ ही विश्व पटल पर चंबा के नाम पर शिल्पकारी का एक और तमगा जुड़ जाएगा.

चंबा: हिमाचल प्रदेश का चंबा जिला अपनी संस्कृति और कला के लिए प्रदेश में अलग पहचान रखता है. यहां पीतल की थाल पर होने वाला मेटल वर्क और मूर्तिकला में चंबा के कलाकारों का दूर-दूर तक कोई सानी नहीं है. चंबा में दशकों से पीतल की शीट पर बन रही चंबा थाल दशकों से देश विदेश में धमाल मचाती आ रही हैं. चंबा में शिल्पकार थालों पर पोट्रेट, भगवान की तस्वीरों से लेकर किसी भी आम और खास इंसान की हू-ब-हू तस्वीर उकेर देते हैं. इनके हाथ से बनाई गई थालियों की भारी डिमांड हैं.

रियासत काल के समय इन थालों पर राजाओं महाराजाओं, देवी-देवताओं सहित चंबा रुमाल से ली गई कलाकृतियां उकेरी जाती थी, लेकिन धीरे समय बदलने के साथ पीतल की थाल पर जानी मानी हस्तियों की तस्वीरें उकेरी जा रही हैं. चंबा जिला में कई मूर्तिकार और मेटल कारीगर (Metal work) मूर्तियां और चंबा थाल बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. मूर्तियां और चंबा थाल बनाने में काफी मेहनत और समय लगता है. कभी-कभी एक मूर्ति और थाल बनाने में चार दिन से लेकर छह महीने तक लग जाते हैं, क्योंकि ये सारा काम हाथों से किया जाता है.

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हजारों में होती है एक थाल की कीमत

छोटा थाल 8 दिन में तैयार होता है और बड़ा थाल करीब 1 महीने में तैयार होता है. इनकी की कीमत 8 हजार से लेकर 20 हजार तक होती है. कई बार तो थाल की कीमत मुंह मांगी दी जाती है. इस थाल पर आम से खास, राजनेताओं, खिलाड़ियों और फिल्मी हस्तियों की फोटो भी तैयार की जाती हैं.

सचिन तेंदुलकर को भेंट कर चुके हैं थाल

चंबा जिला के शिल्पकार प्रकाश चंद मास्टर ब्लास्टर और क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, वन मंत्री राकेश पठानिया सहित अन्य नेताओं के पोट्रेट थाल पर उकेर कर भेंट कर चुके हैं. हालांकि थालों पर पोट्रेट बनाने की परंपरा पिछले कुछ सालों में शुरू हुई है जो मूर्तिकारों के लिए भी नया अनुभव है. अब इनके पोते थाल पर पीएम मोदी का पोट्रेट बनाकर उन्हें भेंट करना चाहते हैं.

1974 में राष्ट्रपति से मिला सम्मान

चंबा थाल और मूर्तियां बना रहे 84 साल के प्रकाश चंद को उनकी शिल्पकारी के लिए 1974 में राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं. इसके अलावा उन्हें मध्य प्रदेश, हिमाचल समेत अन्य राज्यों सरकारें और संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं. प्रकाश चंद अब उम्र अधिक होने के कारण काम छोड़ चुके हैं, लेकिन अब उनके बेटे और पोते उनके व्यवसाय को संभाल रहे हैं. आज भी इनका परिवार इसी मूर्तिकला से चलता है.

शिल्पकारों की सरकार से नाराजगी

प्रकाश चंद को इस बात का आज भी मलाल है कि राष्ट्रपति से सम्मानित होने के बाद भी जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार ने कभी इस कला को आगे बढ़ाने में उनका सहयोग नहीं किया. सरकार की तरफ से लगाए जाने वाले कौशल विकास शिविर में उन्हें नहीं बुलाया जाता है और ना ही ये कार्यक्रम उन्हें दिए जाते हैं. सरकार कौशल विकास शिविर में दो महीने इस काम को सिखाती है, लेकिन दो महीने में सही ढंग से औजार पकड़ना भी नहीं आता है

उपहार के तौर पर दी जाती है चंबा थाल

मूर्तिकला को पिछले 20 सालों से अपना रोजगार का जरिया बनाएं गौरव आनंद का कहना है कि वह उनका पुश्तैनी काम है. जिसे वह पिछले काफी सालों से कर रहे हैं, हालांकि इस काम में बड़ी मेहनत है. मूर्तियों सहित थाल को बनाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है. यह थाल शादियों, रिटायरमेंट जैसे कार्यक्रमों में बतौर उपहार भेंट करने के लिए दिया जाता है. इस थाल की कीमत साइज के अनुसार होती है, जितना बड़ा साइज उतना ज्यादा थाल की कीमत लगाई जाती है. चंबा थाल के लिए उन्हें विदेशों सहित देशभर से ऑर्डर मिलते हैं

रोजगार के मिल सकते हैं अवसर

चंबा थाल और मूर्तियां बना रहे शिल्पकारों का कहना है कि सरकार अगर इस तरफ ध्यान दे तो ये युवाओं के लिए रोजगार के द्वार तो खोलेगा ही साथ ही विश्व पटल पर चंबा के नाम पर शिल्पकारी का एक और तमगा जुड़ जाएगा.

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