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पहले परमवीर चक्र विजेता की जयंती, सोमनाथ शर्मा की दहाड़ से कांपा था दुश्मन - मेजर सोमनाथ शर्मा हिमाचल

मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के बेटे मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था. आज मेजर सोमनाथ शर्मा की 98वीं जयंती है. सोमनाथ शर्मा की शिक्षा नैनीताल के मशहूर शिक्षण संस्थान शेरवुड कॉलेज से हुई थी. कांगड़ा जिला से परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा चौबीस साल की उम्र में ही शहीद हो गए थे.

major somnath sharma birth anniversary
major somnath sharma birth anniversary
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Published : Jan 31, 2021, 12:06 AM IST

शिमलाः देवभूमि हिमाचल वीरभूमि भी है. इसी वीरभूमि में पैदा हुए थे परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा. बहादुरी के अनन्य प्रतीक मेजर सोमनाथ की दहाड़ से दुश्मन कांप उठे थे. जब तक इस वीर की सांस में सांस रही, कबायलियों के वेश में आए नापाक दुश्मन आगे नहीं बढ़ सके.

मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने अफसरों को वचन दिया था कि जब तक उनके पास एक भी गोली है और एक भी सांस है, दुश्मन आगे नहीं बढ़ सकता.

कश्मीर को हथियाने के इरादे से आए दुश्मनों को मेजर सोमनाथ शर्मा रूपी दीवार ने रोक दिया. ऐसे वीर को जन्म दिया था हिमाचल की कांगड़ा घाटी की मिट्टी ने. यहां के ढाढ़ गांव में जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा के परिवार की रगों में भारतीय सेना के नाम का जाप करता लहू दौड़ता था.

पिता खुद सेना के बड़े अफसर थे. यही कारण है कि मेजर सोमनाथ शर्मा बुलंद हौसलों के साथ मोर्चे पर डटे रहने की आदत विरासत में ही सीख आए थे. मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के बेटे मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था. सोमनाथ शर्मा की शिक्षा नैनीताल के मशहूर शिक्षण संस्थान शेरवुड कॉलेज से हुई थी.

कुमाऊं रेजीमेंट से हासिल किया कमीशन

फरवरी 1942 में कुमाऊं रेजीमेंट में कमीशन हासिल करने के बाद मेजर सोमनाथ शर्मा को दूसरे विश्व युद्ध में लड़ाई का भी अनुभव था. उन्होंने सेकेंड वर्ल्ड वॉर में अरकान ऑपरेशन में भाग लिया था. इस सैन्य परिवार में मेजर सोमनाथ शर्मा के भाई जनरल वीएन शर्मा भारतीय सेना में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे. उनके एक भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा भी भारतीय सेना में ऊंचे ओहदे पर थे. बहन कमला भी सेना में डॉक्टर रहीं.

बड़े अरमान से याद करता है हिमाचल अपने सपूत को

मेजर सोमनाथ शर्मा चौबीस साल की उठती उम्र में ही शहादत का जाम पिया. यह संयोग ही कहा जाएगा कि हिमाचल की ही धरती और कांगड़ा की मिट्टी के ही महान सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी चौबीस साल की उम्र में ही शहीद होने का गौरव हासिल किया.

ये दोनों सपूत भारत के परमवीर साबित हुए. धर्मशाला में मेजर सोमनाथ शर्मा के कई स्मृति चिन्ह हैं. जिला प्रशासन कांगड़ा ने भी मेजर सोमनाथ की स्मृतियों को संजोया है. जिला कांगड़ा प्रशासन ने वॉर हीरोज ऑफ कांगड़ा के नाम से एक पन्ना बनाया है.

पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

इसमें कांगड़ा जिला से परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा के अलावा अन्य योद्धाओं को शामिल किया गया है. इनमें विक्रम बत्रा, सौरभ कालिया भी हैं. धर्मशाला, पालमपुर आदि शहरों में शहीदों की स्मृतियों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.छावनियों में तो भारतीय सेना अपने स्तर पर आयोजन करती है, लेकिन जिला प्रशासन भी परमवीरों को आदरांजलि देने के लिए समारोह करता है.

major somnath sharma birth anniversary
मेजर सोमनाथ शर्मा पर जारी डाक टिकट.

बाजू में प्लास्टर, लेकिन हौसला आसमान पर

पाकिस्तान की नापाक हरकतों का सबूत था कबायली आक्रमण. जम्मू-कश्मीर को हथियाने की गरज से पाकिस्तान ने यह दुस्साहस किया, लेकिन जिस मां के मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे लाल हों, वहां दुश्मन की कोई चाल नहीं चल सकती.

कमाऊं रेजीमेंट की टुकड़ी ने मेजर शर्मा के नेतृत्व में मोर्चा संभाला. हालांकि मेजर शर्मा की बाजू में प्लास्टर था और उन्हें युद्ध के मोर्चे पर जाने से रोका भी गया था, लेकिन मेजर शर्मा ने अपने अधिकारियों को लाजवाब कर दिया और मोर्चे पर जाने की अनुमति ले ली.

कश्मीर में चालाकी से काम लेते हुए कबायली गोरिल्ला युद्ध पर उतर आए थे. अपनी टुकड़ी के साथ मेजर शर्मा बड़गाम की तरफ रवाना किए गए. नवंबर की 3 तारीख को बडग़ाम में तैनाती लेकर सैनिक मोर्चे पर डट गए. अचानक दुश्मन ने हमला बोल दिया.

छह घंटे तक कबायलियों के हमले को रोके रखा

भारी संख्या में कबायली चारों दिशाओं से आगे बढ़ने लगे. यदि उन्हें वहीं पर न रोका जाता तो वे कश्मीर में एयरफील्ड की तरफ बढ़ सकते थे. ताबड़तोड़ गोलीबारी करते हुए दुश्मन आगे बढ़ रहा था. मेजर सोमनाथ की टुकड़ी में सैनिक कम थे. उन्हें हर हाल में रोके रखना था, जब तक भारतीय सेना की मदद न आती. छह घंटे तक भीषण लड़ाई के दौरान मेजर सोमनाथ और उनके साथियों ने कबायलियों के हमले को थामे रखा.

major somnath sharma birth anniversary
मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रतिमा.

मेजर सोमनाथ खुद ओपन ग्राउंड में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा-जाकर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहे. बाजू में प्लास्टर होने के बावजूद वे खुद भी दुश्मन पर गोलीबारी करते रहे. आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे बिग्रेडियर हैडक्वार्टर को मेजर सोमनाथ का आखिरी संदेश बेहद मर्मस्पर्शी था. मेजर ने कहा- दुश्मन हमसे पचास गज दूरी पर है. हम एक भी इंच पीछे नहीं हटेंगे. आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे.

मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र

यह मेजर सोमनाथ और उनके साथियों के साहस का ही कमाल था कि उन्होंने दुश्मन को तब तक आगे नहीं बढ़ने दिया, जब तक भारतीय सेना मदद के लिए पहुंच गई. अद्भुत वीरता के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) दिया गया. उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा ने अपने बेटे को मिला देश का पहला परमवीर चक्र जिस समय अपने हाथों में लिया, उनका सीना गर्व से फूल गया था.

ये भी पढ़ेंः गांधी जी की 73वीं पुण्यतिथि: बापू के इस मंदिर को सरकार की नजरे इनायत की जरूरत

शिमलाः देवभूमि हिमाचल वीरभूमि भी है. इसी वीरभूमि में पैदा हुए थे परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा. बहादुरी के अनन्य प्रतीक मेजर सोमनाथ की दहाड़ से दुश्मन कांप उठे थे. जब तक इस वीर की सांस में सांस रही, कबायलियों के वेश में आए नापाक दुश्मन आगे नहीं बढ़ सके.

मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने अफसरों को वचन दिया था कि जब तक उनके पास एक भी गोली है और एक भी सांस है, दुश्मन आगे नहीं बढ़ सकता.

कश्मीर को हथियाने के इरादे से आए दुश्मनों को मेजर सोमनाथ शर्मा रूपी दीवार ने रोक दिया. ऐसे वीर को जन्म दिया था हिमाचल की कांगड़ा घाटी की मिट्टी ने. यहां के ढाढ़ गांव में जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा के परिवार की रगों में भारतीय सेना के नाम का जाप करता लहू दौड़ता था.

पिता खुद सेना के बड़े अफसर थे. यही कारण है कि मेजर सोमनाथ शर्मा बुलंद हौसलों के साथ मोर्चे पर डटे रहने की आदत विरासत में ही सीख आए थे. मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा के बेटे मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था. सोमनाथ शर्मा की शिक्षा नैनीताल के मशहूर शिक्षण संस्थान शेरवुड कॉलेज से हुई थी.

कुमाऊं रेजीमेंट से हासिल किया कमीशन

फरवरी 1942 में कुमाऊं रेजीमेंट में कमीशन हासिल करने के बाद मेजर सोमनाथ शर्मा को दूसरे विश्व युद्ध में लड़ाई का भी अनुभव था. उन्होंने सेकेंड वर्ल्ड वॉर में अरकान ऑपरेशन में भाग लिया था. इस सैन्य परिवार में मेजर सोमनाथ शर्मा के भाई जनरल वीएन शर्मा भारतीय सेना में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे. उनके एक भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा भी भारतीय सेना में ऊंचे ओहदे पर थे. बहन कमला भी सेना में डॉक्टर रहीं.

बड़े अरमान से याद करता है हिमाचल अपने सपूत को

मेजर सोमनाथ शर्मा चौबीस साल की उठती उम्र में ही शहादत का जाम पिया. यह संयोग ही कहा जाएगा कि हिमाचल की ही धरती और कांगड़ा की मिट्टी के ही महान सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी चौबीस साल की उम्र में ही शहीद होने का गौरव हासिल किया.

ये दोनों सपूत भारत के परमवीर साबित हुए. धर्मशाला में मेजर सोमनाथ शर्मा के कई स्मृति चिन्ह हैं. जिला प्रशासन कांगड़ा ने भी मेजर सोमनाथ की स्मृतियों को संजोया है. जिला कांगड़ा प्रशासन ने वॉर हीरोज ऑफ कांगड़ा के नाम से एक पन्ना बनाया है.

पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

इसमें कांगड़ा जिला से परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा के अलावा अन्य योद्धाओं को शामिल किया गया है. इनमें विक्रम बत्रा, सौरभ कालिया भी हैं. धर्मशाला, पालमपुर आदि शहरों में शहीदों की स्मृतियों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.छावनियों में तो भारतीय सेना अपने स्तर पर आयोजन करती है, लेकिन जिला प्रशासन भी परमवीरों को आदरांजलि देने के लिए समारोह करता है.

major somnath sharma birth anniversary
मेजर सोमनाथ शर्मा पर जारी डाक टिकट.

बाजू में प्लास्टर, लेकिन हौसला आसमान पर

पाकिस्तान की नापाक हरकतों का सबूत था कबायली आक्रमण. जम्मू-कश्मीर को हथियाने की गरज से पाकिस्तान ने यह दुस्साहस किया, लेकिन जिस मां के मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे लाल हों, वहां दुश्मन की कोई चाल नहीं चल सकती.

कमाऊं रेजीमेंट की टुकड़ी ने मेजर शर्मा के नेतृत्व में मोर्चा संभाला. हालांकि मेजर शर्मा की बाजू में प्लास्टर था और उन्हें युद्ध के मोर्चे पर जाने से रोका भी गया था, लेकिन मेजर शर्मा ने अपने अधिकारियों को लाजवाब कर दिया और मोर्चे पर जाने की अनुमति ले ली.

कश्मीर में चालाकी से काम लेते हुए कबायली गोरिल्ला युद्ध पर उतर आए थे. अपनी टुकड़ी के साथ मेजर शर्मा बड़गाम की तरफ रवाना किए गए. नवंबर की 3 तारीख को बडग़ाम में तैनाती लेकर सैनिक मोर्चे पर डट गए. अचानक दुश्मन ने हमला बोल दिया.

छह घंटे तक कबायलियों के हमले को रोके रखा

भारी संख्या में कबायली चारों दिशाओं से आगे बढ़ने लगे. यदि उन्हें वहीं पर न रोका जाता तो वे कश्मीर में एयरफील्ड की तरफ बढ़ सकते थे. ताबड़तोड़ गोलीबारी करते हुए दुश्मन आगे बढ़ रहा था. मेजर सोमनाथ की टुकड़ी में सैनिक कम थे. उन्हें हर हाल में रोके रखना था, जब तक भारतीय सेना की मदद न आती. छह घंटे तक भीषण लड़ाई के दौरान मेजर सोमनाथ और उनके साथियों ने कबायलियों के हमले को थामे रखा.

major somnath sharma birth anniversary
मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रतिमा.

मेजर सोमनाथ खुद ओपन ग्राउंड में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा-जाकर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहे. बाजू में प्लास्टर होने के बावजूद वे खुद भी दुश्मन पर गोलीबारी करते रहे. आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे बिग्रेडियर हैडक्वार्टर को मेजर सोमनाथ का आखिरी संदेश बेहद मर्मस्पर्शी था. मेजर ने कहा- दुश्मन हमसे पचास गज दूरी पर है. हम एक भी इंच पीछे नहीं हटेंगे. आखिरी गोली और आखिरी सांस तक लड़ेंगे.

मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र

यह मेजर सोमनाथ और उनके साथियों के साहस का ही कमाल था कि उन्होंने दुश्मन को तब तक आगे नहीं बढ़ने दिया, जब तक भारतीय सेना मदद के लिए पहुंच गई. अद्भुत वीरता के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) दिया गया. उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा ने अपने बेटे को मिला देश का पहला परमवीर चक्र जिस समय अपने हाथों में लिया, उनका सीना गर्व से फूल गया था.

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