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लोकसभा चुनाव में कर्मचारियों के वोट किसको करेंगे चोट? हिमाचल में इन मुद्दों को लेकर इंप्लॉइज में रोष

इसके साथ ही आउटसोर्स कर्मचारी अपने लिए स्थाई नीति की मांग कर रहे हैं. प्रदेश के 51 लाख वोटर्स में से कम से कम दस लाख वोटर्स सरकारी कर्मचारी व उनके परिवार से जुड़े हैं. ऐसे में ये अहम मुद्दा रहेगा.

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Published : May 2, 2019, 9:35 PM IST

शिमला: हिमाचल में आम चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां खूब पसीना बहा रही है. प्रदेश के चारों संसदीय क्षेत्रों से वोटर्स को लुभाने की कोशिश की जा रही है. हर वर्ग को उनकी मांगों को पूरा करने के वादों के साथ वोट की अपील की जा रही है.

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हिमाचल में सरकारी कर्मचारी सबसे बड़ा वोट बैंक है. अपनी मांगों को लेकर कर्मचारी वर्ग में रोष है. प्रदेश में दो लाख से अधिक कर्मचारी हैं. लोकसभा चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम बड़ा मुद्दा रहेगा. इसके अलावा अनुबंध कर्मचारी नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी का लाभ मांग रहे हैं. इन मसलों पर कर्मचारियों में नाराजगी है.

इसके साथ ही आउटसोर्स कर्मचारी अपने लिए स्थाई नीति की मांग कर रहे हैं. प्रदेश के 51 लाख वोटर्स में से कम से कम दस लाख वोटर्स सरकारी कर्मचारी व उनके परिवार से जुड़े हैं. ऐसे में ये अहम मुद्दा रहेगा.

हिमाचल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाला कर्मचारी वर्ग इस लोकसभा चुनाव में किसकी ओर रुख करता है ये देखना रोचक रहेगा. देखना ये भी रोचक होगा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों के वक्त से कर्मचारियों की ये मांगे चलती आई है ऐसे में कर्मचारी वर्ग किस पर भरोसा जताएगा.

पढ़ेंः अनूठी पहल! मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मेगा नाटी करेंगी 5,200 महिलाएं

हिमाचल के पौने दो लाख कर्मचारी केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं और 80 हजार ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के लिए आंदोलन में जुटे हैं. इसके अलावा अनुबंध और आउट सोर्स कर्मचारी भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं.

प्रदेश के हजारों कर्मचारी की मांग है कि 2003 के बाद सरकारी नौकरी पर लगे कर्मचारियों को नई पेंशन स्कीम से कोई लाभ नहीं मिल रहा हैय सभी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम में लाने को लेकर कई बार आंदोलन भी कर्मचारी कर चुके हैं, लेकिन मांग को अनसुना किया जा रहा है.

शिमला: हिमाचल में आम चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां खूब पसीना बहा रही है. प्रदेश के चारों संसदीय क्षेत्रों से वोटर्स को लुभाने की कोशिश की जा रही है. हर वर्ग को उनकी मांगों को पूरा करने के वादों के साथ वोट की अपील की जा रही है.

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हिमाचल में सरकारी कर्मचारी सबसे बड़ा वोट बैंक है. अपनी मांगों को लेकर कर्मचारी वर्ग में रोष है. प्रदेश में दो लाख से अधिक कर्मचारी हैं. लोकसभा चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम बड़ा मुद्दा रहेगा. इसके अलावा अनुबंध कर्मचारी नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी का लाभ मांग रहे हैं. इन मसलों पर कर्मचारियों में नाराजगी है.

इसके साथ ही आउटसोर्स कर्मचारी अपने लिए स्थाई नीति की मांग कर रहे हैं. प्रदेश के 51 लाख वोटर्स में से कम से कम दस लाख वोटर्स सरकारी कर्मचारी व उनके परिवार से जुड़े हैं. ऐसे में ये अहम मुद्दा रहेगा.

हिमाचल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाला कर्मचारी वर्ग इस लोकसभा चुनाव में किसकी ओर रुख करता है ये देखना रोचक रहेगा. देखना ये भी रोचक होगा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों के वक्त से कर्मचारियों की ये मांगे चलती आई है ऐसे में कर्मचारी वर्ग किस पर भरोसा जताएगा.

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हिमाचल के पौने दो लाख कर्मचारी केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं और 80 हजार ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के लिए आंदोलन में जुटे हैं. इसके अलावा अनुबंध और आउट सोर्स कर्मचारी भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं.

प्रदेश के हजारों कर्मचारी की मांग है कि 2003 के बाद सरकारी नौकरी पर लगे कर्मचारियों को नई पेंशन स्कीम से कोई लाभ नहीं मिल रहा हैय सभी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम में लाने को लेकर कई बार आंदोलन भी कर्मचारी कर चुके हैं, लेकिन मांग को अनसुना किया जा रहा है.

Intro:हिमाचल में लोकसभा चुनावों में कर्मचारी वर्ग भी उम्मीदवारों की जीत में अहम भूमिका निभाता है। इस बार के लोकसभा चुनावों में कमर्चारियों के मुद्दे गायब है। हिमाचल के पौने दो लाख कर्मचारी केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशो को लागू करने की मांग कर रहे है और 80 हजार ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के लिए आंदोलन कर रहे है। इसके अलावा अनुबंध ओर आउट सोर्स कर्मचारी भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत है। प्रदेश के हज़ारो कर्मचारी की मांग है कि 2003 के बाद सरकारी नौकरी पर लगे कर्मचारियों को नई पेंशन स्कीम से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। सभी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम में लाने को लेकर कई बार आंदोलन भी कर्मचारी कर चुके है,लेकिन मांग को अनसुना किया जा रहा है। ऐसे में इस बार कर्मचारी वर्ग उनकी मांगों को मनाने वाले दलों को ही अपना वोट देने का मन भी बना चुका है।



Body:उधर प्रदेश में हजारों अनुबंध कर्मचारी भी है जो लंबे समय से नियमित करने की मांग कर रहे है। लेकिन न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी ने उनको नियमित करने के लिए कोई नीति बनाई है। इन लोकसभा चुनावों में हालांकि किसी भी दल ने उन्हें नियमित करने का कोई आश्वासन नहीं दिया है लेकिन ये कर्मचारी भी उसी दल को अपना समर्थन देंगे जो दल उनके लिए नियमित करने के लिए पॉलिसी बनाने की बात करेगा। इसके साथ ही प्रदेश में कई विभागों में आठ से लेकर तीन साल का अनुबंध सेवाकाल पूरा कर नियमित हुए कर्मचारी बीते कई सालों से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता लाभ देने की मांग कर रहे है।


Conclusion:वही प्रदेश में तकरीबन सभी विभागों में आउटसोर्स पर की गई भर्तियों के तहत तैनात कर्मचारी भी सरकार से स्थाई नीति बनाने की मांग करते आ रहे है। सरकार ने डाटा एंट्री ऑपरेट,कंप्यूटर ऑपरेटर,अककॉउंटेंट के पदों पर यह नियुक्तियां की गई है। यह सभी कर्मचारी स्थायी नीति की मांग को लेकर ही सरकारों के आगे अपनी मांगे रख रहे है लेकिन उनके लिए भी स्थायी नीति का कोई प्रावधान अभी तक नहीं हो पाया है। प्रदेश में आउट सोर्स कर्मचारियों की संख्या की बात की जाए तो यह आंकड़ा भी 16 हजार से अधिक का होगा यह सभी कर्मचारी अभी भी अपने सुरक्षित भविष्य को लेकर सरकार से आश लगाए हुए है और इन लोकसभा चुनावों में इनकी मांग को गंभीरता से लेने वाले उम्मीदवारों को ही अपना वोट देने का मन बना चुके है। कर्मचारियों सहित कर्मचारी संगठनों ने भी अब यह ठान ली है कि जूठे प्रलोभनों की सरकार नहीं बल्कि जो सही मायनों में उनके हित की बात करेगा उसी को वो अपना वोट देंगें। प्रदेश आउट सोर्स कर्मचारी महासंघ की महासचिव तृप्ता भाटिया का कहना है कि प्रदेश में अलग-अलग विभागो में नियुक्त किए गए आउट सोर्स कर्मचारी सरकार से स्थायी नीति के साथ ही समय के अनुसार वेतन वृद्धि और छुट्टियों की मांग कर रहे है लेकिन उनकी इस मांग को अनसुना किया जा रहा है। यहां तक कि सरकार उन्हें अपना कर्मचारी तक मानने से इंकार कर रही है ऐसे में अब लोकसभा चुनावों के लिए उनका संघ एक जुट हो कर फ़ैसला लेगा और सरकार का चयन करने में अपने तरीके से भूमिका निभाएगा। इसके अलावा प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर आंदोलनरत एनपीएस संघ के महासचिव नारायण सिंह ने कहा कि प्रदेश में 1 लाख के करीब कर्मचारी ओल्ड पेंशन योजना की बहाली को लेकर आंदोलन कर रहे है। सरकार ने ओल्ड पेंशन योजना को बंदकर कर्मचारियों के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है। सालों एक सरकारी कर्मचारी के तौर पर सेवाएं देने के बाद सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारियों को पेंशन को लाभ नहीं मिलेगा जिससे कि कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि जब सरकार को ही कर्मचारियों के हित की परवाह नहीं है तो फिर वो किस आधार पर सरकार को अपना वोट दे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ही नहीं देश भर में कर्मचारी इस मांग को लेकर आंदोलनरत है और लोकसभा चुनावों में इसका असर जरूर देखा जाएगा। वहीं ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर कर्मचारी डॉ.जोगेंद्र सकलानी का कहना है कि सरकार को कर्मचारियों के हित को देखते हुए उन्हें पेंशन देनी चाहिए। पेंशन का जो मुद्दा है वो सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए । यह चुनावोंवक लिए एक बड़ा मुद्दा है ऐसे में सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानना चाहिए।
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