शिमला: अकसर कहा जाता है कि सत्ता के गलियारों में संवेदना और तरलता की कमी होती है, लेकिन हिमाचल के कई राजनेता जमकर लिखने के लिए पहचाने जाते हैं. पानी वाले मुख्यमंत्री के नाम से विख्यात भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की आत्मकथा निज पथ का अविचल पंथी, का मंगलवार को दिल्ली में विमोचन हो रहा है. राजनीति के गलियारे से जुड़ी इस साहित्यिक घटना के बहाने हिमाचल के कलम वाले राजनेताओं की कहानी जानना दिलचस्प होगा. शुरुआत शांता कुमार से ही की जानी चाहिए, क्योंकि ताजी हलचल उन्हीं के नाम से है.
शांता की कलम ने रची 18 किताबें
सत्ता के चक्रव्यूह से जूझने वाले किसी नेता के खाते में अगर पांच उपन्यास, दो कविता संग्रह और एक कहानी संग्रह सहित कुल 18 पुस्तकें हों तो हैरानी होना लाजिमी है. अब इस कड़ी में आत्मकथा भी जुड़ रही है. ये नेता शांता कुमार हैं. उनकी आत्मकथा का विमोचन होते ही किताबों की संख्या 19 हो जाएगी. साम-दाम-दंड-भेद से भरी राजनीति की अजब-गजब दुनिया में एक संवेदनशील और रचनाशील व्यक्ति के लिए जगह बना पाना नामुमकिन है. शांता कुमार को बेशक हिमाचल में पानी वाले मुख्यमंत्री के तौर पर अधिक पहचाना जाता हो, लेकिन उनके भीतर का रचनाकार भी कम लोकप्रिय नहीं है.
शांता कुमार सोशल मीडिया पर देते हैं रचनाशीलता का परिचय
कोरोना काल में अपनी रचनाशील पत्नी संतोष शैलजा को खोने के बावजूद शांता कुमार का जुड़ाव लेखन से बराबर बना हुआ है. वे सोशल मीडिया पर भी अपनी रचनाशीलता का परिचय देते हैं. शांता कुमार के अलावा हिमाचल प्रदेश में कई राजनेता ऐसे हुए हैं, जिनके लेखन ने उनके राजनीतिक कद को और ऊंचा किया है. राजनीति और लेखन में बराबर का दखल रखने वाले हिमाचल प्रदेश के राजनेताओं में अधिकांश अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन साहित्यिक जगत में अभी भी वे सम्मान के साथ स्मरण किए जाते हैं. भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कलम और तलवार का सुंदर संयोग देखने को मिलता है, लेकिन आजादी के बाद भी कई नेता कलम के धनी साबित हुए हैं. हिमाचल प्रदेश में रचनाशील और कलाप्रेमी राजनेताओं की परंपरा का विस्तार प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री से लेकर वर्तमान दौर के राजनेता शांता कुमार और राधारमण शास्त्री तक है.
यशवंत सिंह परमार का लोककलाओं के प्रति था लगाव
हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार लोककलाओं के प्रति अपने लगाव के लिए जाने जाते थे. नाटी और झूरी (लोकगायन शैलियों) सहित लोकनाट्य करियाला का मंचन देखने के लिए वे उत्सुक रहते थे. सिरमौर जिला के कुछ इलाकों में प्रचलित बहुपति प्रथा पर उन्होंने पोलिएंड्री इन दि हिमालया नामक पुस्तक भी लिखी. उनके कला और साहित्य प्रेम को आदर से स्मरण करते हुए हिमाचल में उनकी जयंती पर साहित्यिक आयोजन होते हैं.
लोकप्रिय शाायर थे स्व. लालचंद प्रार्थी
इसी तरह स्व. लालचंद प्रार्थी भी अपनी साहित्यिक अभिरुचि के कारण चर्चित हुए. वे हिमाचल सरकार में डॉ. परमार के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे. प्रार्थी एक कुशल
राजनेता के साथ बेहतर लेखक भी थे। कुलूत देश की कहानी उनकी सबसे चर्चित कृति है. इस रचना को बाद में अकादमी सम्मान भी मिला. वे लोकप्रिय शायर भी
थे. हिमाचल प्रदेश कला संस्कृति व भाषा अकादमी ने उनकी शायरी की पुस्तक वजूद-ओ-अदम प्रकाशित की है. इस पुस्तक में शामिल रचनाएं कविता कोश में
भी देखी जा सकती हैं. अध्ययनप्रेमी प्रार्थी की सोच ने ही हिमाचल में भाषा अकादमी की नींव रखी थी. उनकी जयंती हर साल 3 अप्रैल को मनाई जाती
है. प्रार्थी जयंती के तहत साहित्यिक आयोजन होते हैं.
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स्व. सत महाजन को दी गई राजनीती में फील्ड मार्शल की संज्ञा
कांग्रेस के कद्दावर राजनेता रहे स्व. सत महाजन को हिमाचल की राजनीति में फील्ड मार्शल की संज्ञा दी गई है. कुछ साल पहले ही उनका देहांत हुआ था. वे एक बेहतरीन स्तंभकार के तौर पर खासे चर्चित हुए. एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र में उनके लिखे संस्मरण रोचक और खूब पठनीय माने जाते थे. आजादी से पूर्व लाहौर में शिक्षित सत महाजन हिमाचल प्रदेश की विख्यात लेखिका व समाजसेवी सरोज वशिष्ठ के वैज्ञानिक पति सतीश के करीबी मित्र थे. अपने स्तंभ में सत महाजन ने उनके प्रेम की दास्तान भी लिखी. अब सरोज वशिष्ठ और उनके पति सतीश भी इस दुनिया में नहीं हैं. वहीं, सत महाजन कांगड़ा जिला की नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे और सरकार में विभिन्न पदों पर काम किया.
स्व. प्रेम पखरोलवी थे अध्ययन प्रेमी
नादौन से विधायक प्रेम पखरोलवी लेखन में अपने लालित्यपूर्ण अंदाज के लिए जाने गए. उनका भी कुछ साल पहले देहावसान हो गया था. पखरोलवी के लिखे निबंध बहुत चर्चित रहे. हिमाचल में वामपंथी नेता कामेश्वर पंडित भी लेखन में रमे रहे. उनकी लिखी किताबों में भारत-अतीत, वर्तमान व भविष्य और कम्युनिस्ट क्या है, शामिल है. हिमाचल के शिक्षा मंत्री रहे नारायण चंद पराशर ने धम्मपद नामक पुस्तक का पहाड़ी में अनुवाद किया है. पहाड़ी को अलग भाषा का दर्जा दिलाने के लिए पराशर ने अभियान भी चलाया. भाजपा नेता के तौर पर शिक्षा मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे डॉ. राधारमण शास्त्री अपनी विद्वता के लिए जाने जाते हैं. उनका अंग्रेजी, हिंदी,उर्दू व संस्कृत भाषा पर समान अधिकार है. वे अध्ययन प्रेमी राजनेता हैं.
दौलतराम चौहान की भी लेखन में रूचि
शिमला से कद्दावर राजनेता दौलतराम चौहान भी बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक थे. पुस्तकालय में सेवारत रहे चौहान बाद में राजनीति में आए और मशहूर हुए. लेखन से बराबर जुड़े रहे चौहान ने कई पत्र-पत्रिकाओं में विपुल लेखन किया. मंडी जिला के द्रंग से विधायक रहे दीनानाथ शास्त्री कविमन वाले राजनेता थे. उनकी कविता लेखन में खासी रूचि थी. इसी तरह धर्मशाला से कांग्रेस के विधायक रहे प्रोफेसर चंद्रवर्कर भी लेखन का शौक रखते थे. पत्रकार तो वे थे ही, साथ ही हिमाचल में इतिहास, कला व संस्कृति से संबंधित अनुसंधान के लिए गठित आयोग के वे अध्यक्ष भी रहे. उनके लेख कई जगह प्रकाशित हुए. संयुक्त पंजाब के समय शिमला के विधायक रहे मुनीलाल ने मेरी डायरी के पन्नों से शीर्षक से किताब लिखी. कुल्लू के राजनेता नवल ठाकुर व चंबा के देव बड़ोतरा भी कलम के धनी थे. पच्छाद से विधायक रहे जीवणुराम शास्त्रीय संगीत के अच्छे जानकार थे. वर्तमान समय में कई राजनेता ऐसे हैं, जो लेखन में बेशक प्रवृत न हों, लेकिन अध्ययन के बहुत शौकीन हैं. इनमें पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह, पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मंत्री व भाजपा नेता प्रवीण शर्मा सहित इस समय कांग्रेस के नेता मुकेश अग्निहोत्री का नाम शामिल है. वीरभद्र सिंह इतिहास की पुस्तकों के गहन अध्येता हैं.
डॉ. सीएल गुप्त ने भी लिखी कई किताबें
भाजपा के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ से जुड़े डॉ. सीएल गुप्त भी पार्टी की राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं. डॉ. गुप्त हिमाचल यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे हैं और उन्होंने भी कई किताबें लिखी हैं. इस कड़ी में शांता कुमार सबसे अलग दिखते हैं, क्योंकि वे अब भी लगातार लिख रहे हैं. शांता कुमार राजनीति में ईमान और जनहित में मजबूत फैसले लेने वाले राजनेता के तौर पर विख्यात हैं. नो वर्क, नो पे का कंसेप्ट उन्हीं का था। आपातकाल में जेल में रहते हुए शांता कुमार ने बहुत लेखन किया. उनके उपन्यासों में हिंद पाकेट बुक्स से लाजो व कैदी, राजपाल एंड संस से मृगतृष्णा, भारतीय प्रकाशन संस्थान से मन के मीत और किताबघर प्रकाशन से वृंदा शामिल हैं. इसके अलावा तुम्हारे प्यार की पाती और ओ प्रवासी मीत मेरे नामक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं.
पठन-पाठन के संस्कार आश्वस्ति का भाव जगाते हैं
कुछ साल पहले प्रभात प्रकाशन से उनके वैचारिक लेखों की पुस्तक भ्रष्टाचार का कड़वा सच आई है. शांता कुमार विभिन्न समाचारपत्रों में संपादकीय पृष्ठों पर भी वैचारिक लेखन करते रहे हैं. शांता कुमार की रचनाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चिंताएं मिलती हैं. उनका कहना है कि वर्तमान दौर में राजनीति में मूल्यों की बेहद जरूरत है. हिमाचल के विख्यात आलोचक श्रीनिवास श्रीकांत का कहना है कि राजनेताओं की लिखी पुस्तकों को उनके राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण भी कई बार अधिमान मिलता है, लेकिन घपलों-घोटालों के इस दौर में राजनेताओं का लेखन कर्म से जुड़ाव दुर्लभ तो माना ही जाएगा. कवि कुलराजीव पंत कहते हैं कि राजनेताओं में पठन-पाठन के संस्कार आश्वस्ति का भाव जगाते हैं.
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