शिमला: शिक्षा का हब कहे जाने वाले हिमाचल में जहां सरकार संस्कृत को दूसरी राष्ट्र भाषा का दर्जा दे रही है. वहीं, अब संस्कृत पढ़ने के लिए छात्रों की संख्या हर साल घटती जा रही है. राजधानी के फागली में स्थित संस्कृत कॉलेज में छात्रों के एडमिशन से ये खुलासा हुआ.
संस्कृत कॉलेज में प्रतिवर्ष छात्रों की संख्या घटती जा रही है जिस कॉलेज में कभी 700 के लगभग नए छात्र एडमिशन लेते थे. अब वहीं 2019 में 108 नए छात्रों ने दाखिला लिया है जबकि 2018 में ये संख्या 120 थी.
संस्कृत में छात्र मान रहे अंधकार में भविष्य
हिमाचल में भाजपा सरकार ने दिसंबर 2017 में जब शपथ ली थी तब शिक्षा मंत्री के रूप में सुरेश भारद्वाज ने संस्कृत में शपथ ली थी. उस समय संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों में नई ऊर्जा आयी थी कि शायद अब संस्कृत पढ़ने वालों के लिए नई संम्भावना के रास्ते खुलेंगे, लेकिन विद्यार्थियों को निराश तब हुई जब सरकार ने शास्त्री को सीएंडवी यानी भाषा अध्यापक के रूप में दर्जा दिया. शास्त्री में स्नातक करने वालो को सिर्फ ग्रेजुएट का दर्जा माना.
संस्कृत पढ़ने वालों का कहना है कि शास्त्री में सरकारी नौकरी के स्कोप कम हैं और बिल्कुल ना के बराबर हैं जबकि कला एवमं और कॉमर्स पढ़ने वालों को नौकरी के ज्यादा स्कोप हैं. इसलिए अब छात्र संस्कृत पढ़ने के इछुक नहीं हैं.
संस्कृत के प्रधानाचार्य बलदेव सिंह ने बताया कि इस बार 108 बच्चे ही नए आये हैं जबकि बीते साल 120 छात्रों ने दाखिला लिया था. शिमला में ही 3 संस्कृत कॉलेज खोल दिए गए हैं जिसमें 10 या 15 ही छात्र पढ़ रहे हैं. फागली में कई सालों से ये किराए के भवन में कॉजेल चल रहा है और अपना होस्टल भी नहीं है. इससे दूर दराज के छात्र पढ़ने नहीं आते.
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