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देश के विभाजन की गवाह है शिमला की ये इमारत, यहीं तैयार हुआ था आजादी का ड्राफ्ट

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर ईटीवी भारत आपको शिमला की उस ऐतिहासिक इमारत से रूबरू करवाने जा रहा है जो आजादी की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इस ऐतिहासिक इमारत को ब्रिटिश काल में वायसरीगल लॉज के नाम से जाना जाता था. अब इस इमारत का नाम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज यानि भारतीय उच्च अध्‍ययन संस्थान है. इस ऐतिहासिक इमारत के बारे में जानने के लिए पूरा लेख पढ़िए.

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फोटो.
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Published : Sep 5, 2021, 1:25 PM IST

शिमला: ब्रिटिश काल के दौरान शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. ब्रिटिश वायसराय गर्मियों में शिमला में प्रवास करते थे. इसी पहाड़ी शहर शिमला में वायसरीगल लॉज और अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में एक ऐसी आलीशान इमारत मौजूद है, जो देश की आजादी और विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इस इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी.

ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ब्रिटिश कालीन राज राजधानी बनाने का फैसला लिया. इसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई. साल 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ.

वीडियो.

कुल 38 लाख रुपए की लागत से साल 1888 में इमारत बनकर तैयार हुई. इमारत में देश के आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. यह इमारत स्कॉटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई टीक की लकड़ी से की गई है.

वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. यह कॉन्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता कॉन्फ्रेंस में शिरकत कर रहे थे. कुल 20 दिन तक यह सम्मेलन चला लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आजाद सहित कुल 21 भारतीय नेता थे.

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. यह बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई.

ये भी पढ़ें: डगशाई जेल में कैदियों पर हुई थी जुल्मों-सितम की इंतहा, गांधी जी ने भी यहां गुजारे थे दो दिन

देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. देश के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद् राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग सुनिश्चित किया और वर्ष 1965 में इसे उच्च अध्ययन के केंद्र के तौर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया.

अब यह इमारत देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी और विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई पुस्तकें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में 1.5 लाख किताबों का खजाना मौजूद है. हर साल यह इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के रूप में 75 लाख रुपए की आमदनी करती है.

ये भी पढ़ें: राष्ट्रपति कोविंद के स्वागत को तैयार रिट्रीट, कभी शिमला आने पर मन में रह गयी थी इसे देखने की टीस

शिमला: ब्रिटिश काल के दौरान शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. ब्रिटिश वायसराय गर्मियों में शिमला में प्रवास करते थे. इसी पहाड़ी शहर शिमला में वायसरीगल लॉज और अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में एक ऐसी आलीशान इमारत मौजूद है, जो देश की आजादी और विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इस इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी.

ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ब्रिटिश कालीन राज राजधानी बनाने का फैसला लिया. इसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई. साल 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ.

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कुल 38 लाख रुपए की लागत से साल 1888 में इमारत बनकर तैयार हुई. इमारत में देश के आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. यह इमारत स्कॉटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई टीक की लकड़ी से की गई है.

वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. यह कॉन्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता कॉन्फ्रेंस में शिरकत कर रहे थे. कुल 20 दिन तक यह सम्मेलन चला लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आजाद सहित कुल 21 भारतीय नेता थे.

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. यह बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई.

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देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. देश के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद् राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग सुनिश्चित किया और वर्ष 1965 में इसे उच्च अध्ययन के केंद्र के तौर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया.

अब यह इमारत देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी और विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई पुस्तकें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में 1.5 लाख किताबों का खजाना मौजूद है. हर साल यह इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के रूप में 75 लाख रुपए की आमदनी करती है.

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