शिमला: हिमाचल में भूमि सुधार कानून और इसकी धारा 118 को लेकर हर सरकार संवेदनशील रही है. राज्य में इस समय धार्मिक संस्था के लिहाज से राधास्वामी सतसंग ब्यास यानी डेरा ब्यास के पास सबसे अधिक लैंड होल्डिंग है. डेरा ब्यास प्रबंधन जरूरत से अधिक जमीन को बेचना चाहता है और इसके लिए डेरा वालों ने राज्य सरकार के पास आवेदन भी किया था.
शुक्रवार को कैबिनेट मीटिंग में इस पर चर्चा हुई और प्रेजेंटेशन भी दी गई, लेकिन मंत्रिमंडल ने आग से खेलने से परहेज किया. कारण ये था कि भूमि सुधार कानून, धारा-118 व लैंड सीलिंग एक्ट जैसे शब्दों से हर सरकार डरती आई है. ये अलग बात है कि वर्ष 2017 में डेरा प्रबंधन के भारी दबाव के बाद वीरभद्र सिंह सरकार ने संस्था पर मेहरबानी कर दी थी. उस समय लैंड सीलिंग एक्ट को बदलने के लिए वीरभद्र सिंह सरकार ने मंजूरी दे दी थी. बाद में सत्ता परिवर्तन हो गया और मामला ठंडा पड़ गया.
डेरा ब्यास ने मांगी थी जमीन बेचने की अनुमति
भाजपा सरकार सत्ता में आई तो प्रभावशाली संस्था होने के नाते डेरा ब्यास ने फिर दबाव डाला और लैंड सीलिंग एक्ट में छूट के कारण मिली जमीन को बेचने की अनुमति मांगी. जयराम सरकार शायद राजी भी हो जाती, लेकिन हिमाचल में जनता की नाराजगी और विपक्ष के संभावित विरोध को देखते हुए मामले को टालने पर सहमति बनी. फिलहाल, मामला जरूर शांत हो गया है, परंतु आने वाले समय में इस पर फिर से चर्चा हो सकती है. वजह ये है कि राधास्वामी सतसंग ब्यास के हिमाचल में लाखों अनुयायी हैं और ये सत्ता के गलियारों में भी प्रभावशाली है.
ये है पूरा मामला
राधास्वामी सतसंग ब्यास को हिमाचल में ग्रामीण इलाकों में जनता ने बहुत सी जमीन दान में दी है. संस्था कृषक कैटेगरी में आती है. निरंकारी संस्था के पास भी काफी जमीन है, लेकिन ब्यास डेरा सबसे अधिक लैंड होल्डिंग वाला है. वीरभद्र सिंह सरकार के समय संस्था ने एक्सेस जमीन बेचने की छूट मांगी थी. इस बार भी संस्था ने आवेदन किया और सरकार से छूट मांगी. नियम के अनुसार मामला पहले कैबिनेट में आना होता है. उसके बाद विधानसभा में बिल के जरिए इस पर मुहर लगती है. डेरा ब्यास के पास हिमाचल में छह हजार बीघा जमीन है.
धार्मिक संस्थाएं डालती हैं सरकार पर दबाव
डेरा ब्यास को अधिकांश जमीन दान में मिली है, अथवा डेरा प्रबंधन ने बेहद मामूली दाम में ये जमीन खरीदी है. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल में पहले ही कृषि योग्य जमीन की भारी कमी है. इसे देखते हुए हिमाचल प्रदेश में भूमि को संपन्न लोगों के हाथ से बचाने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं, लेकिन प्रभावशाली धार्मिक संस्थाएं अकसर सरकार पर दबाव डालती रहती हैं. इस बार जयराम सरकार पर दबाव आया, लेकिन कैबिनेट में मामला डिस्कशन के बाद टाल दिया गया. हिमाचल में कोई भी आदमी डेढ़ सौ बीघा से अधिक जमीन नहीं रख सकता, लेकिन धार्मिक संस्थाओं को इस परिधि से बाहर किया गया है.
वीरभद्र सरकार में भी किया था आवेदन
वीरभद्र सिंह सरकार के समय भी किया था आवेदन डेरा ब्यास ने वीरभद्र सिंह सरकार के समय अक्टूबर 2017 को भी सरप्लस जमीन बेचने के लिए आवेदन किया था. कानून के अनुसार चूंकि लैंड सीलिंग के रहते हिमाचल में कोई भी आदमी करीबन-करीबन 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं रख सकता, इसलिए इन्हें (धार्मिक संस्थाओं)को इस सीलिंग से इस राइडर के साथ बाहर किया गया था कि ये इस जमीन को न तो बेचेंगे, न ही गिफ्ट करेंगे या फिर गिरवी नहीं रख सकेंगे. तब शर्त ये थी कि यदि ऐसा किया तो जमीन सरकार में नीहित (वेस्ट) हो जाएगी.
सरकार की यही शर्त डेरा ब्यास की जमीन बेचने की इच्छा के आड़े आ रही थी. इस सरकारी शर्त से परेशान डेरा ब्यास प्रबंधन ने तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार को जमीन बेचने की अनुमति देने संबंधी पत्र लिखा था. डेरा ब्यास ने अपने पत्र में तर्क दिया था कि दान में मिली जमीन अधिक हो गई है और कई जगह ऐसी है कि जो हमारे काम की भी नहीं है, इसलिए उन्हें सरप्लस जमीन बेचने की इजाजत मिले.