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Advanced Study Shimla: पहले था राष्ट्रपति निवास, अब है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, यहां बिखरे इतिहास को जानने आएंगी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

शिमला दौरे के दौरान देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में परिवर्तित हुई इमारत में बिखरे इतिहास को जानने-समझने के लिए आएंगी.

Advanced Study Shimla
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Published : Apr 18, 2023, 3:36 PM IST

Updated : Apr 20, 2023, 11:12 AM IST

शिमला: ब्रिटिश शासन के समय शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. यहां वर्ष 1888 में एक भव्य इमारत बनकर तैयार हुई. तब इस इमारत में ब्रिटिश इंडिया के वायसराय रहते थे. आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई. बाद में शिक्षाविद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया. उसके बाद शिमला के समीप रिट्रीट की इमारत राष्ट्रपति का ग्रीष्मकालीन निवास बन गई.

ब्रिटिश इंडिया के वायसराय का निवास थी ये इमारत.
ब्रिटिश इंडिया के वायसराय का निवास थी ये इमारत.

आज वायसरीगल लॉज से राष्ट्रपति निवास और फिर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में परिवर्तित हुई इमारत में बिखरे इतिहास को जानने-समझने के लिए आएंगी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस इमारत के ब्रिटिश कालीन इतिहास सहित आजादी के बाद की घटनाओं की भी जानकारी दी जाएगी.

राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए किया था समर्पित.
राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए किया था समर्पित.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस इमारत के इतिहास और वर्तमान में यहां होने वाले कार्यकलापों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा. राष्ट्रपति यहां इस इमारत की विजिटर्स बुक में अपना संदेश भी दर्ज करेंगी. ऐसे में वर्ष 1888 में बनी इस इमारत के बारे में नए सिरे से जिज्ञासाएं उभरेंगी. इन्हीं जिज्ञासाओं का जवाब अगली पंक्तियों में दर्ज है.

आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई.
आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई.

ब्रिटिश कालीन इतिहास में झांकने से पूर्व आजादी के बाद की बात कर लेते हैं. देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. देश के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग करने की सोच उठाई. वर्ष 1965 में उन्होंने इस भव्य इमारत को एक उच्च अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित करने की पहल की और इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया गया. अब ये इमारत इतिहास में रुचि रखने वालों के अलावा शोध कार्यों के साथ-साथ देश-विदेश के सैलानियों को आकर्षित करती है.

शिमला में स्थित है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान.
शिमला में स्थित है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान.

यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी व विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई अनेक किताबें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक किताबों का खजाना है. इन किताबों में अनेक दुर्लभ ग्रंथ हैं. तिब्बती भाषा सहित यहां हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब भी मौजूद है. संस्थान की लाइब्रेरी पूरी तरह से डिजिटाइज्ड है. हर साल ये इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के तौर पर कम से कम 80 लाख रुपए और अधिकतम एक करोड़ रुपए की आमदनी करती है. शिमला आने वाले सैलानियों की यात्रा एडवांस्ड स्टडी का दीदार किए बिना अधूरी मानी जाती है। इतिहास और वर्तमान के जिज्ञासु के लिए इस इमारत में वो सब कुछ मौजूद है, जिसे जानने उसके लिए आवश्यक है.

ऐसे पड़ी ब्रिटिशकाली में हलचल के केंद्र की नींव: ब्रिटिश हुकूमत के समय अंग्रेज शासक गर्मियां बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. उसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई.

वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. तब के जमाने में कुल 38 लाख रुपए की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल मिलाकर 13 वायसराय रहे. लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. ये इमारत स्काटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है। इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है.

वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. ये कान्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता इसमें शिरकत कर रहे थे. उस समय कुल 20 दिन तक ये सम्मेलन चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में बापू गांधी, नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद व मौलाना आजाद सहित 21 भारतीय नेता थे.
आजादी से कुछ साल पहले का समय था. सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. ये बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई. साथ ही विभाजन की नींव भी इसी बैठक में पड़ी. इस बात पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं कि विभाजन के ड्राफ्ट पर वाइसरीगल लॉज में दस्तखत हुए थे या फिर एक अन्य इमारत पीटरहाफ में. लेकिन ये तय है कि ड्राफ्ट शिमला में ही डिस्कस और साइंड हुआ. फिलहाल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दौरे के लिए भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान प्रबंधन पूरी तरह से तैयार है.

ये भी पढ़ें: राष्ट्रपति के शिमला दौरे को लेकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम, 1500 जवानों पर सुरक्षा का जिम्मा, चप्पे-चप्पे पर खाकी तैनात

शिमला: ब्रिटिश शासन के समय शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. यहां वर्ष 1888 में एक भव्य इमारत बनकर तैयार हुई. तब इस इमारत में ब्रिटिश इंडिया के वायसराय रहते थे. आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई. बाद में शिक्षाविद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया. उसके बाद शिमला के समीप रिट्रीट की इमारत राष्ट्रपति का ग्रीष्मकालीन निवास बन गई.

ब्रिटिश इंडिया के वायसराय का निवास थी ये इमारत.
ब्रिटिश इंडिया के वायसराय का निवास थी ये इमारत.

आज वायसरीगल लॉज से राष्ट्रपति निवास और फिर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में परिवर्तित हुई इमारत में बिखरे इतिहास को जानने-समझने के लिए आएंगी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस इमारत के ब्रिटिश कालीन इतिहास सहित आजादी के बाद की घटनाओं की भी जानकारी दी जाएगी.

राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए किया था समर्पित.
राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे उच्च अध्ययन के लिए किया था समर्पित.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस इमारत के इतिहास और वर्तमान में यहां होने वाले कार्यकलापों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा. राष्ट्रपति यहां इस इमारत की विजिटर्स बुक में अपना संदेश भी दर्ज करेंगी. ऐसे में वर्ष 1888 में बनी इस इमारत के बारे में नए सिरे से जिज्ञासाएं उभरेंगी. इन्हीं जिज्ञासाओं का जवाब अगली पंक्तियों में दर्ज है.

आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई.
आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास के तौर पर जानी गई.

ब्रिटिश कालीन इतिहास में झांकने से पूर्व आजादी के बाद की बात कर लेते हैं. देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. देश के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग करने की सोच उठाई. वर्ष 1965 में उन्होंने इस भव्य इमारत को एक उच्च अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित करने की पहल की और इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया गया. अब ये इमारत इतिहास में रुचि रखने वालों के अलावा शोध कार्यों के साथ-साथ देश-विदेश के सैलानियों को आकर्षित करती है.

शिमला में स्थित है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान.
शिमला में स्थित है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान.

यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी व विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई अनेक किताबें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक किताबों का खजाना है. इन किताबों में अनेक दुर्लभ ग्रंथ हैं. तिब्बती भाषा सहित यहां हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब भी मौजूद है. संस्थान की लाइब्रेरी पूरी तरह से डिजिटाइज्ड है. हर साल ये इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के तौर पर कम से कम 80 लाख रुपए और अधिकतम एक करोड़ रुपए की आमदनी करती है. शिमला आने वाले सैलानियों की यात्रा एडवांस्ड स्टडी का दीदार किए बिना अधूरी मानी जाती है। इतिहास और वर्तमान के जिज्ञासु के लिए इस इमारत में वो सब कुछ मौजूद है, जिसे जानने उसके लिए आवश्यक है.

ऐसे पड़ी ब्रिटिशकाली में हलचल के केंद्र की नींव: ब्रिटिश हुकूमत के समय अंग्रेज शासक गर्मियां बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. उसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई.

वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. तब के जमाने में कुल 38 लाख रुपए की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल मिलाकर 13 वायसराय रहे. लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. ये इमारत स्काटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है। इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है.

वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. ये कान्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता इसमें शिरकत कर रहे थे. उस समय कुल 20 दिन तक ये सम्मेलन चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में बापू गांधी, नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद व मौलाना आजाद सहित 21 भारतीय नेता थे.
आजादी से कुछ साल पहले का समय था. सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. ये बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई. साथ ही विभाजन की नींव भी इसी बैठक में पड़ी. इस बात पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं कि विभाजन के ड्राफ्ट पर वाइसरीगल लॉज में दस्तखत हुए थे या फिर एक अन्य इमारत पीटरहाफ में. लेकिन ये तय है कि ड्राफ्ट शिमला में ही डिस्कस और साइंड हुआ. फिलहाल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दौरे के लिए भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान प्रबंधन पूरी तरह से तैयार है.

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Last Updated : Apr 20, 2023, 11:12 AM IST
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