शिमला : चुनावी समर में नारों की गूंज जितनी ऊंची होती है, राजनीतिक दलों और नेताओं का जोश उतना ही हाई होता है. भारतीय राजनीति में नारे और खासकर चुनावी नारों ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं. हिमाचल में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में OPS की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन चला था. उस आंदोलन में ठेठ सिरमौरी बोली में एक नारा उछला और देखते ही देखते सबकी जुबां पर चढ़ गया. ये नारा था- 'जोइया मामा मनदा नईं, कर्मचारी री शुणदा नईं'. इस नारे में जयराम ठाकुर को मामा कहकर संबोधित किया गया है और कहा गया है कि जयराम मामा मानते नहीं है और कर्मचारियों की सुनते नहीं है. बेशक ये नारा आजकल न के बराबर सुनाई दे रहा है, लेकिन हिमाचल में चुनावी सीजन में कुछ नारे लंबे समय तक चले हैं. कई बार इन नारों ने सत्ता दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई है. (Famous Slogans in Indian Politics) (Slogans in Election) (Popular slogans from Indian political Parties)
वीरभद्र सिंह राज परिवार से थे तो उनके दौर में ये नारा हर जनसभा में लगता था- 'राजा नहीं फकीर है, हिमाचल की तकदीर है'. वर्ष 2017 में हिमाचल में सत्ता परिवर्तन के साथ सीएम का नया चेहरा जयराम ठाकुर के रूप में सामने आया था. अब जयराम ठाकुर के लिए नारा लगता है- 'एक बार जयराम जी, बार-बार जयराम जी'. अमित शाह हिमाचल में जनसभाएं करने आए तो कांग्रेस पर निशाना साधते हुए एक नारा कहा- 'मां-बेटे की सरकार'. अमित शाह के मुताबिक दिल्ली से हिमाचल तक कांग्रेस में मां-बेटे का ही बोलबाला है, शाह का निशाना सोनिया-राहुल के साथ-साथ प्रतिभा सिंह और वीरभद्र सिंह पर था. इन दिनों हिमाचल में बीजेपी सरकार रिपीट करने का दावा कर रही है और नारा दिया गया है 'नया रिवाज बनाएंगे फिर भाजपा लाएंगे'. वैसे भारत में चुनाव और नारे चोली दामन की तरह हैं, इतिहास में कई सियासी नारों ने चुनावों का रुख तक बदला है. (Slogans in Himachal Politics) (Slogans in Himachal Election) (Famous Political Slogans)
आजादी के तुरंत बाद एक नारा लगा था 'खरा रुपय्या चांदी का, राज महात्मा गांधी का', हालांकि आजादी मिलने के कुछ समय बाद ही बापू की हत्या कर दी गई थी. पहले कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी था, तब तत्कालीन जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक-बाती था. जनसंघ ने उस दौरान चुनावी नारा दिया- 'देखो दीपक का खेल, जली झोंपड़ी, भागे बैल'. जवाब में कांग्रेस का नारा भी कम दिलचस्प नहीं था. कांग्रेस कार्यकर्ता प्रचार में नारा लगाते थे- 'इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं'. नारों के लिहाज से इंदिरा गांधी का समय बहुत दिलचस्प था. (Popular slogans of Indian politics)
भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी का कार्यकाल बेहद घटनापूर्ण रहा है. उनके सक्रिय होने के दौरान कई नारे खूब चर्चित हुए. शुरुआत में ये नारा बहुत गूंजता था- 'जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस पार्टी डाकू है'. ये नारा अलग-अलग शब्दों के प्रयोग के साथ लगाया जाता था. इसके अलावा 'इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया' नारा भी खूब चला था. एमरजेंसी के काल में कई नारे गूंजे थे. कांग्रेस का सबसे चर्चित नारा रहा- 'कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ'. ये नारा हर चुनाव में लगता रहा और फिर विपक्ष ने इसकी काट में नारा दिया- 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ'. (Popular slogans of Indian politics)
एमरजेंसी के दौरान एक बड़ा क्रिएटिव नारा लगा, जो इस तरह था- 'जमीन गई चकबंदी में, मर्द गए नसबंदी में'. नसबंदी के मुद्दे पर कांग्रेस चारों तरफ से घिरी तो विपक्ष का एक और नारा सामने आया 'नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा, संजय और बंसीलाल'. संजय गांधी पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे थे और बंसीलाल हरियाणा के कद्दावर कांग्रेस नेता थे, जो हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे. विपक्ष का एक र नारा खूब चला था. 'संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी, बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है'. एमरजेंसी के दौरान इन नारों ने कांग्रेस के खिलाफ खूब माहौल बनाया और इंदिरा गांधी को सत्ता गंवानी पड़ी. इंदिरा चुनाव लड़ने के लिए कर्नाटक के चिकमंगलूर गई तो कांग्रेस ने नारा दिया- 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर'.
हिंदी के विख्यात लेखक श्रीकांत वर्मा कांग्रेस पार्टी में गहरी पैठ रखते थे. उन्होंने एक क्रिएटिव नारा दिया. 'जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर'. वहीं भाजपा के नारों की बात करें तो सबसे चर्चित रहा था. 'अटल, आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदोस्तान'. इसी तरह वामपंथी दलों का नारा भी खूब चर्चा में रहे हैं. अस्सी के दशक में एक नारे ने खूब सुर्खियां बटोरीं- 'चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ, न रहेगा फूल'. इसके साथ ही वाम दलों का ये नारा भी खूब चला 'लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा हिंदुस्तान'.
इसी दौरान 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद विपक्ष के सारे नारे धरे के धरे रह गए. इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर ने विपक्ष को साफ कर दिया. नारा लगा- 'जब तक सूरज चाँद रहेगा, इंदिरा जी का नाम रहेगा'. विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय में नारा लगा- 'राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है'. जब देश मंडल कमीशन की आग में जलने लगा तो नारा चला- 'गोली मारो मंडल को, इस राजा को कमंडल दो'. देश की राजनीति में भाजपा के नए सिरे से उभार में राम मंदिर आंदोलन प्रमुख रहा, तो बीजेपी के नारे गूंजे- 'सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे' इसके अलावा 'एक ही नारा, एक ही नाम, जयश्री राम, जयश्री राम'. उस दौर में 'अटल-आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदोस्तान', ये नारा भी चलने लगा. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता को लेकर ये नारा और चला 'सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी'.
हाल के समय में भी कई नारों ने सुर्खियां बटोरी हैं. जिनमें बीजेपी का 'अच्छे दिन आने वाले हैं' से लेकर 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' और 'अबकी बार, मोदी सरकार' से लेकर 'बार-बार मोदी सरकार' नारे शामिल हैं. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया तो उसके बाद 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' का नारा भी गूंजा, पीएम मोदी ने खुद को चौकीदार बताया तो कांग्रेस का 'चौकीदार चोर है' नारा खूब गूंजा.
इसी तरह बिहार, उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी कई नारे गूंजे हैं. बिहार में लालू यादव का दिया गया 'भूरा बाल साफ करो' नारे ने खूब सुर्खियां बटोरीं. इसी तरह 'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब रहेगा बिहार में लालू' जैसा नारा भी खूब चला. बिहार के बड़े नेता रहे रामविलास पासवान को सियासत का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था. चुनावी मौसम को भांपने वाले रामविलास पासवान के तब नारा चला 'ऊपर आसमान, नीचे पासवान'.
इसी तरह उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती की पार्टी बसपा का नारा था 'चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर'. सोशल इंजीनियरिंग से पहले बसपा ने ही 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' जैसा नारा दिया था. बाद में सोशल इंजीनियरिंग के दम पर सरकार बनाने वाली मायावती ने नारे को भी बदला फिर नारे बने 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा,विष्णु, महेश है' और 'पंडित शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जायेगा'. इसी तरह यूपी में सपा और बसपा गठबंधन के समय नारा लगा 'मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ेगा जयश्री राम' जिसके बाद बीजेपी ने नारा दिया था 'मिट गए मुलायम-कांशीराम, सदा रहेंगे प्रभु श्रीराम'. इसी तरह बीते उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लड़की हूं, लड़ सकती हूं जैसा नारा दिया था.
हिमाचल प्रदेश में भी वीरभद्र सिंह के लिए राजा नहीं फकीर है, हिमाचल की तकदीर और सिंह इज किंग जैसे नारे खूब चले. हिमाचल में 'निकम्मी इस सरकार को, भेजो हरिद्वार को' जैसा नारा भी खूब चला. इस बार बीजेपी ने हिमाचल में सरकार रिपीट करने का दावा करते हुए रिवाज बदलने का नारा दिया है. दरअसल हिमाचल में साल 1985 से कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई है और बीजेपी इस रिवाज को बदलने का दावा कर रही है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि रिवाज नहीं बल्कि ताज बदलते हैं और इस बार कांग्रेस की सरकार बनेगी. नारों के मामले में बीजेपी आगे चल रही है लेकिन देखना होगा कि इन चुनावों में कौन सा नारा सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरता है और चुनाव की चाल बदलता है.