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हिमाचल के किसानों को अगले 5 साल तक नहीं मिल पाएगा आलू का बीज, इन कारणों से केंद्र ने लगाई रोक

हिमाचल के किसानों के साथ ही देश भर के पर्वतीय राज्यों के किसानों को आगामी पांच सालों तक सीपीआरआई से आलू का बीज नहीं मिल पाएगा.

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Published : Apr 3, 2019, 7:36 PM IST

सीपीआरआई

शिमला: हिमाचल के किसानों के साथ ही देश भर के पर्वतीय राज्यों के किसानों को आगामी पांच सालों तक सीपीआरआई से आलू का बीज नहीं मिल पाएगा. इसकी बड़ी वजह यह है कि सीपीआरआई की ओर से जो आलू का जो बीज पैदा किया जा रहा है उसमें पोटैटो सिस्ट निमेटोड वायरस पाया गया है.

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हिमाचल के किसानों को अगले 5 साल तक नहीं मिल पाएगा आलू का बीज

इस वायरस के परिणामों के कारण ही अब सीपीआरआई के बीज उत्पादन केंद्र कुफरी में बीज तैयार करने पर केंद्र सरकार की ओर से रोक लगा दी गई है. सीपीआरआई के कुफरी और फागु अनुसंधान केन्द्रों में तैयार आलू के बीज में यह वायरस पाया गया है. यह वायरस वहां के फार्म की मिट्टी में हैं जिसे दूर करने में समय लगेगा और तब तक इस मिट्टी में आलू का बीज सीपीआरआई तैयार नहीं करेगा.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से सीपीआरआई के आलू बीज उत्पादन पर रोक लगाने का असर हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड सहित अन्य दस पर्वतीय राज्यों पर पड़ेगा. जहां पर सीपीआरआई का ही आलू का बीज दिया जाता था. हालांकि इसके विकल्प के लिए मैदानी इलाकों से इन पर्वतीय राज्यों के किसानों को बीज मुहैया करवाया जाएगा.

सीपीआरआई के मीडिया प्रभारी वैज्ञानिक डॉ.एन.के पांडे ने कहा कि यह समस्या केवल हिमाचल में ही नहीं है बल्कि देश भर में है, लेकिन इस समस्या को हमारे यहां गंभीर तरीके से लिया जाता है. इसलिए अभी जिस मिट्टी में यह आलू का बीज लगाया गया है और उसमें पोटैटो सिस्ट निमेटोड वायरस पाया गया है. उसमें अब बीज उत्पादन पर रोक लगा दी गयी है.

इस मिट्टी को ठीक करने में अब 4 से 5 साल का समय लगेगा. यही वजह है कि अब इतने सालों तक सीपीआरआई किसानों को बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा. बीज का उत्पादन ना होने से सीपीआरआई को मिलने वाले रेवेन्यू में जरूर कमी आएगी. अभी कुफरी से 2 हजार क्विंटल से ज्यादा का बीज प्रदेश सहित अन्य पर्वतीय राज्यों के लिए सप्लाई किया जाता है, लेकिन अब यह उत्पाद ना होने से नुकसान होगा.

हिमाचल के किसानों को अगले 5 साल तक नहीं मिल पाएगा आलू का बीज,

हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इस वायरस वाले आलू को खाने से कोई नुकसान नहीं है लेकिन अगर इस वायरस वाले बीज को किसान अपने खेतों में लगाते है तो उस मिट्टी में भी वायरस आ जाएगा और पहाड़ी क्षेत्रों में इसके आने की संभावना अधिक है. जबकि मैदानी इलाकों में इसका ज्यादा असर नहीं होता है.

निमोटोड वायरस आलू के लिए सबसे बड़ी समस्या है. रासायनिक आधार पर ही इसका उपचार संभव है और यही बड़ी वजह है कि किसान इस वायरस को भांप भी नहीं पाते हैं. यह आलू की जड़ों को प्रभावित करता है और बड़ी जल्दी काफी संख्या में फैलता है. इसके उपचार का एक तरीका यह भी है कि जिस खेत में नेमोटोड वायरस वाले बीज का आलू बोया गया है उसमें तीन से चार साल तक आलू ना लगाया जाए.

यही काम अब सीपीआरआई भी अपने उत्पादन फॉर्म पर करेगा और यही वजह है कि अब चार से पांच साल तक सीपीआरआई किसानों को आलू का बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा. लेकिन समस्या का समाधान होने के बाद एक बार फिर से उत्पाद शुरू कर आलू का बीज सीपीआरआई किसानों को प्रदेश सहित अन्य राज्यों में मुहैया करवा पाएगा.

इसके साथ ही प्रदेश में जहां-जहां इस वायरस से ग्रसित आलू का बीज गया है उन किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच की जाएगी ताकि उस मिट्टी से भी निमोटोड वायरस को खत्म किया जा सके.

शिमला: हिमाचल के किसानों के साथ ही देश भर के पर्वतीय राज्यों के किसानों को आगामी पांच सालों तक सीपीआरआई से आलू का बीज नहीं मिल पाएगा. इसकी बड़ी वजह यह है कि सीपीआरआई की ओर से जो आलू का जो बीज पैदा किया जा रहा है उसमें पोटैटो सिस्ट निमेटोड वायरस पाया गया है.

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हिमाचल के किसानों को अगले 5 साल तक नहीं मिल पाएगा आलू का बीज

इस वायरस के परिणामों के कारण ही अब सीपीआरआई के बीज उत्पादन केंद्र कुफरी में बीज तैयार करने पर केंद्र सरकार की ओर से रोक लगा दी गई है. सीपीआरआई के कुफरी और फागु अनुसंधान केन्द्रों में तैयार आलू के बीज में यह वायरस पाया गया है. यह वायरस वहां के फार्म की मिट्टी में हैं जिसे दूर करने में समय लगेगा और तब तक इस मिट्टी में आलू का बीज सीपीआरआई तैयार नहीं करेगा.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से सीपीआरआई के आलू बीज उत्पादन पर रोक लगाने का असर हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड सहित अन्य दस पर्वतीय राज्यों पर पड़ेगा. जहां पर सीपीआरआई का ही आलू का बीज दिया जाता था. हालांकि इसके विकल्प के लिए मैदानी इलाकों से इन पर्वतीय राज्यों के किसानों को बीज मुहैया करवाया जाएगा.

सीपीआरआई के मीडिया प्रभारी वैज्ञानिक डॉ.एन.के पांडे ने कहा कि यह समस्या केवल हिमाचल में ही नहीं है बल्कि देश भर में है, लेकिन इस समस्या को हमारे यहां गंभीर तरीके से लिया जाता है. इसलिए अभी जिस मिट्टी में यह आलू का बीज लगाया गया है और उसमें पोटैटो सिस्ट निमेटोड वायरस पाया गया है. उसमें अब बीज उत्पादन पर रोक लगा दी गयी है.

इस मिट्टी को ठीक करने में अब 4 से 5 साल का समय लगेगा. यही वजह है कि अब इतने सालों तक सीपीआरआई किसानों को बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा. बीज का उत्पादन ना होने से सीपीआरआई को मिलने वाले रेवेन्यू में जरूर कमी आएगी. अभी कुफरी से 2 हजार क्विंटल से ज्यादा का बीज प्रदेश सहित अन्य पर्वतीय राज्यों के लिए सप्लाई किया जाता है, लेकिन अब यह उत्पाद ना होने से नुकसान होगा.

हिमाचल के किसानों को अगले 5 साल तक नहीं मिल पाएगा आलू का बीज,

हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इस वायरस वाले आलू को खाने से कोई नुकसान नहीं है लेकिन अगर इस वायरस वाले बीज को किसान अपने खेतों में लगाते है तो उस मिट्टी में भी वायरस आ जाएगा और पहाड़ी क्षेत्रों में इसके आने की संभावना अधिक है. जबकि मैदानी इलाकों में इसका ज्यादा असर नहीं होता है.

निमोटोड वायरस आलू के लिए सबसे बड़ी समस्या है. रासायनिक आधार पर ही इसका उपचार संभव है और यही बड़ी वजह है कि किसान इस वायरस को भांप भी नहीं पाते हैं. यह आलू की जड़ों को प्रभावित करता है और बड़ी जल्दी काफी संख्या में फैलता है. इसके उपचार का एक तरीका यह भी है कि जिस खेत में नेमोटोड वायरस वाले बीज का आलू बोया गया है उसमें तीन से चार साल तक आलू ना लगाया जाए.

यही काम अब सीपीआरआई भी अपने उत्पादन फॉर्म पर करेगा और यही वजह है कि अब चार से पांच साल तक सीपीआरआई किसानों को आलू का बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा. लेकिन समस्या का समाधान होने के बाद एक बार फिर से उत्पाद शुरू कर आलू का बीज सीपीआरआई किसानों को प्रदेश सहित अन्य राज्यों में मुहैया करवा पाएगा.

इसके साथ ही प्रदेश में जहां-जहां इस वायरस से ग्रसित आलू का बीज गया है उन किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच की जाएगी ताकि उस मिट्टी से भी निमोटोड वायरस को खत्म किया जा सके.

Intro:हिमाचल के किसानों के साथ ही देश भर के पर्वतीय राज्यों के किसानों को आगामी पांच सालों तक सीपीआरआई से आलू का बीज नहीं मिल पाएगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि सीपीआरआई की ओर से जो आलू का जो बीज पैदा किया जा रहा है उसमें पोटेटो सिस्ट निमोटोड वायरस पाया गया है। इस वायरस के परिणामों के कारण ही अब सीपीआरआई के बीज उत्पादन केंद्र कुफ़री में बीज तैयार करने पर केंद्र सरकार की ओर से रोक लगा दी गई है। सीपीआरआई के कुफ़री ओर फागु अनुसंधान केन्द्रों में तैयार आलू के बीज में यह वायरस पाया गया है। यह वायरस वहां के फार्म की मिट्टी में हैं जिसे दूर करने में समय लगेगा और तब तक इस मिट्टी में आलू का बीज सीपीआरआई तैयार नहीं करेगा ओर यही वजह है कि किसानों को आलू का बीज नहीं मिल पाएगा।


Body:केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से सीपीआरआई के आलू बीज उत्पादन पर रोक लगाने का असर हिमाचल सहित जम्मूकश्मीर,उत्तराखंड सहित अन्य दस पर्वतीय राज्यों पर पड़ेगा जहां पर सीपीआरआई का ही आलू का बीज दिया जाता था। हालांकि इसके विकल्प के लिए मैदानी इलाकों से इन पर्वतीय राज्यों के किसानों को बीज मुहैया करवाया जाएगा। सीपीआरआई के मीडिया प्रभारी वैज्ञानिक डॉ.एन.के पांडे ने कहा कि यह समस्या केवल हिमाचल में ही नहीं है बल्कि देश भर में है लेकिन इस समस्या को हमारे यहां गंभीर तरीके से लिया जाता है इसलिए अभी जिस मिट्टी में यह आलू का बीज लगाया गया है और उसमें पोटेटो सिस्ट निमोटोड वायरस पाया गया है उसमें अब बीज उत्पादन पर रोक लगा दी गयी है । इस मिट्टी को ठीक करने में अब 4 से 5 साल का समय जाएगा यही वजह है कि अब इतने सालों तक सीपीआरआई किसानों को बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा। बीज का उत्पादन का होने से सीपीआरआई को मिलने वाले रेवेन्यू में जरूर कमी आएगी। अभी कुफरी से 2 हजार क्विंटल से ज्यादा का बीज प्रदेश सहित अन्य पर्वतीय राज्यों के लिए सप्लाई किया जाता है लेकिन अब यह उत्पाद ना होने से नुकसान होगा।


Conclusion:हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इस वायरस वाले आलू को खाने से कोई नुकसान नहीं है लेकिन अगर इस वायरस वाले बीज को किसान अपने खेतों में लगाते है तो उस मिट्टी में भी वायरस आ जाएगा और पहाड़ी क्षेत्रों में इसके आने की संभावना अधिक है जबकि मैदानी इलाकों में इतना असर इसका नहीं होता है। निमोटोड वायरस आलू के लिए सबसे बड़ी समस्या है रासायनिक आधार पर ही इसका उपचार संभव है और यही बड़ी वजह है कि किसान इस वायरस को भांप भी नहीं पाते है। यह आलू की जड़ों को प्रभावित करता है और बड़ी जल्दी काफी संख्या में फैलता है। इसके उपचार का भी एक तरीका यह है कि जिस खेत मे नेमोटोड वायरस वाले बीज का आलू बोया गया है उसमें तीन से चार साल तक आलू ना लगाया जाए। यही काम अब सीपीआरआई भी अपने उत्पादन फॉर्म पर करेगा और यही वजह है कि अब चार से पांच साल तक सीपीआरआई किसानों को आलू का बीज मुहैया नहीं करवा पाएगा,लेकिन समस्या का समाधान होने के बाद एक बार फिर से उत्पाद शुरू कर आलू का बीज सीपीआरआई किसानों को प्रदेश सहित अन्य राज्यों में मुहैया करवा पाएगा। इसके साथ ही प्रदेश में जहां-जहां इस वायरस से ग्रसित आलू का बीज गया है उन किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच की जाएगी ताकि उस मिट्टी से भी निमोटोड वायरस को ख़त्म किया जा सके।
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