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क्या हिमाचल में परिवारवाद के सहारे पार होगी कांग्रेस की नैय्या ? उम्मीदवारों की सूची में ऐसे नामों की भरमार

विरोधी कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर सबसे ज्यादा हमलावर होते हैं. हिमाचल में भी कांग्रेस का परिवारवाद किसी से छिपा नहीं है. इस बार भी कांग्रेस का इस मोर्चे पर घिरना तय है क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची में परिवारवाद का बोलबाला है. आइये नजर डालते हैं कांग्रेस सूची में परिवारवाद के चेहरों पर.. (Himachal Congress Candidate List) (Dynastic politics in Himachal) (Nepotism in Congress)

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Published : Oct 22, 2022, 7:32 PM IST

शिमला: साल 2017 के अक्तूबर महीने की बात है. हिमाचल में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो गई थी और कांग्रेस में कद्दावर नेताओं के परिवार से संबंधित लोगों को विधानसभा चुनाव का टिकट मिला. तब हिमाचल यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने बयान दिया था कि एक परिवार से एक ही सदस्य को टिकट मिलना चाहिए. लेकिन बाद में विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा और उनके पिता वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए सोलन जिले की अर्की से चुनाव लड़ा. (Dynastic politics in Himachal) (Nepotism in Himachal Politics)

2017 चुनाव में ही पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर ने मंडी सदर से और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल ने पालमपुर से चुनाव लड़ा. इसके अलावा पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रामनाथ शर्मा के परिवार से विवेक शर्मा को कुटलैहड़ से टिकट मिला. इसी तरह पूर्व मंत्री कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह को भी चुनाव में टिकट मिला था. वर्ष 2017 में पूर्व सांसद चंद्र कुमार के बेटे नीरज भारती चुनाव मैदान से हट गए थे. ये तस्वीर थी पिछले चुनाव की, इस चुनाव में भी हिमाचल में वंशवाद विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दा बना है. वैसे भी कांग्रेस और परिवारवाद जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. कांग्रेस ने कई-कई बार इसे साबित भी किया है खासकर चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे में परिवारवाद का किस्सा कांग्रेस के साथ जुड़ ही जाता है. हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची में परिवारवाद मानो कूट-कूटकर भरा है. (Nepotism in Himachal Congress) (Nepotism in Himachal Election)

हिमाचल कांग्रेस में परिवारवाद- मौजूदा समय में हिमाचल कांग्रेस में सत्ता का केंद्र बिंदु वीरभद्र सिंह परिवार है. उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हैं और मंडी लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी हैं. 2017 में पहली बार विधायक बने उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को इस बार भी टिकट मिला है. दरअसल हिमाचल में राजनीतिक तौर पर वंशवाद की जड़ें गहरी हैं और कांग्रेस ने इस रवायत को बनाया और बढ़ाया है. पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे. 13वीं विधानसभा में पिता-पुत्र के रूप में विधायक जोड़ी सदन में मौजूद थी. (Nepotism and Congress candidate list in Himachal)

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर और उनकी बेटी चंपा ठाकुर 2017 में चुनाव हारे, लेकिन दोनों को कांग्रेस ने इस बार भी टिकट दिया है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली को भी टिकट दिया गया है. इसी तरह वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया उपचुनाव में जीतकर विधायक बने थे और इस बार उन्हें फिर से चुनाव मैदान में उतारा गया है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. गुमान सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन चौहान, पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी और पूर्व विधायक डॉ. प्रेम सिंह के बेटे विनय कुमार को भी टिकट दिया गया है.

कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री राज कृष्ण गौड़ के बेटे भुवनेश्वर गौड़ को मनाली से टिकट दिया है. कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री स्व. पंडित संतराम के बेटे सुधीर शर्मा को भी धर्मशाला से टिकट दिया गया है. सुधीर शर्मा कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं लेकिन 2017 में चुनाव हार गए थे. पूर्व विधायक मिलखीराम गोमा के बेटे यादवेंद्र गोमा कांग्रेस से विधायक रहे हैं और इस बार भी चुनाव मैदान मेंहैं. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राम लाल ठाकुर के पोते रोहित ठाकुर को भी कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. दिग्गज कांग्रेस नेता रहे स्व. ओपी रत्न के वारिस संजय रतन भी कांग्रेस से विधायक रहे हैं. वे फिर से मैदान में हैं और ज्वालामुखी से टिकट हासिल कर चुके हैं.

राजनीतिक विश्लेषक धनंजय शर्मा का कहना है कि राजनीति से वंशवाद को अलग करना बहुत मुश्किल है. हालांकि भाजपा ने इस मामले में कुछ हद तक अंकुश लगाने की पहल की है. ऐसा नहीं है कि वंशवाद की राजनीति ने अच्छे नेता नहीं दिए. अनुराग ठाकुर उदाहरण है कि अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद मुकाम बनाया जा सकता है. इस बार कांग्रेस ने जिस तरह से टिकट बंटवारा किया है उसमें वंशवाद का बोलबाला है, देखना होगा कि टिकट बंटवारे का ये फॉर्मूला कांग्रेस के लिए कितना कारगर साबित होता है.

ये भी पढ़ें : BJP की सूची में 'अपनों' का बोलबाला, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के सिद्धांत और अनुशासन पर भारी पड़ा परिवारवाद

शिमला: साल 2017 के अक्तूबर महीने की बात है. हिमाचल में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो गई थी और कांग्रेस में कद्दावर नेताओं के परिवार से संबंधित लोगों को विधानसभा चुनाव का टिकट मिला. तब हिमाचल यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने बयान दिया था कि एक परिवार से एक ही सदस्य को टिकट मिलना चाहिए. लेकिन बाद में विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा और उनके पिता वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए सोलन जिले की अर्की से चुनाव लड़ा. (Dynastic politics in Himachal) (Nepotism in Himachal Politics)

2017 चुनाव में ही पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर ने मंडी सदर से और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल ने पालमपुर से चुनाव लड़ा. इसके अलावा पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रामनाथ शर्मा के परिवार से विवेक शर्मा को कुटलैहड़ से टिकट मिला. इसी तरह पूर्व मंत्री कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह को भी चुनाव में टिकट मिला था. वर्ष 2017 में पूर्व सांसद चंद्र कुमार के बेटे नीरज भारती चुनाव मैदान से हट गए थे. ये तस्वीर थी पिछले चुनाव की, इस चुनाव में भी हिमाचल में वंशवाद विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दा बना है. वैसे भी कांग्रेस और परिवारवाद जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. कांग्रेस ने कई-कई बार इसे साबित भी किया है खासकर चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे में परिवारवाद का किस्सा कांग्रेस के साथ जुड़ ही जाता है. हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची में परिवारवाद मानो कूट-कूटकर भरा है. (Nepotism in Himachal Congress) (Nepotism in Himachal Election)

हिमाचल कांग्रेस में परिवारवाद- मौजूदा समय में हिमाचल कांग्रेस में सत्ता का केंद्र बिंदु वीरभद्र सिंह परिवार है. उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हैं और मंडी लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी हैं. 2017 में पहली बार विधायक बने उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को इस बार भी टिकट मिला है. दरअसल हिमाचल में राजनीतिक तौर पर वंशवाद की जड़ें गहरी हैं और कांग्रेस ने इस रवायत को बनाया और बढ़ाया है. पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे. 13वीं विधानसभा में पिता-पुत्र के रूप में विधायक जोड़ी सदन में मौजूद थी. (Nepotism and Congress candidate list in Himachal)

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर और उनकी बेटी चंपा ठाकुर 2017 में चुनाव हारे, लेकिन दोनों को कांग्रेस ने इस बार भी टिकट दिया है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली को भी टिकट दिया गया है. इसी तरह वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया उपचुनाव में जीतकर विधायक बने थे और इस बार उन्हें फिर से चुनाव मैदान में उतारा गया है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. गुमान सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन चौहान, पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी और पूर्व विधायक डॉ. प्रेम सिंह के बेटे विनय कुमार को भी टिकट दिया गया है.

कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री राज कृष्ण गौड़ के बेटे भुवनेश्वर गौड़ को मनाली से टिकट दिया है. कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री स्व. पंडित संतराम के बेटे सुधीर शर्मा को भी धर्मशाला से टिकट दिया गया है. सुधीर शर्मा कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं लेकिन 2017 में चुनाव हार गए थे. पूर्व विधायक मिलखीराम गोमा के बेटे यादवेंद्र गोमा कांग्रेस से विधायक रहे हैं और इस बार भी चुनाव मैदान मेंहैं. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राम लाल ठाकुर के पोते रोहित ठाकुर को भी कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. दिग्गज कांग्रेस नेता रहे स्व. ओपी रत्न के वारिस संजय रतन भी कांग्रेस से विधायक रहे हैं. वे फिर से मैदान में हैं और ज्वालामुखी से टिकट हासिल कर चुके हैं.

राजनीतिक विश्लेषक धनंजय शर्मा का कहना है कि राजनीति से वंशवाद को अलग करना बहुत मुश्किल है. हालांकि भाजपा ने इस मामले में कुछ हद तक अंकुश लगाने की पहल की है. ऐसा नहीं है कि वंशवाद की राजनीति ने अच्छे नेता नहीं दिए. अनुराग ठाकुर उदाहरण है कि अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद मुकाम बनाया जा सकता है. इस बार कांग्रेस ने जिस तरह से टिकट बंटवारा किया है उसमें वंशवाद का बोलबाला है, देखना होगा कि टिकट बंटवारे का ये फॉर्मूला कांग्रेस के लिए कितना कारगर साबित होता है.

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