शिमला : कोरोना संकट के समय फ्रंट वॉरियर्स का सम्मान करने और उन्हें सहयोग करने की बात सरकार कहती आई, लेकिन घर-घर जाकर बच्चों को मिड-डे मील देने मील वर्कर्स की हालत दयनीय होती जा रही है. इसी मुद्दे को लेकर मिड-डे मील वर्कर्स ने सीटू के बैनर तले सरकार खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
शुक्रवार को मिड-डे मील यूनियन ने धरना प्रदर्शन किया जिसमें सरकार से मांग की गई कि यदि मिड-डे मील वर्करों की अनदेखी की गई तो उन्हें मजबूरन आंदोलन करना पड़ेगा. यूनियन की राज्य महासचिव हिमी देवी ने बताया कि कोरोना संकट में स्कूल बंद होने के कारण घर-घर जा कर बच्चों को मिड-डे मील दिया जा रहा है, लेकिन सरकार कोई अतिरिक्त मानदेय नहीं दे रही है, जिसके कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
मिड-डे मील वर्कर्स का कहना है कि मिड-डे मील वर्कर्स क्वरांटाइन में रहने वाले कोरोना संक्रमितों के लिए खाना बना रही है. इतनी बड़ी रिस्क के बाद सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है.
10 महीने का मिल रहा वेतन
हिमी देवी ने बनाता कि उच्च न्यायलय के आदेश के अनुसार मिड-डे मिल वर्करों को 12 महीने का वेतन दिया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें सिर्फ 10 महीने का वेतन दिया जा रहा है. उनका कहना है कि मिड-डे मील में गरीब लोग ही काम करते हैं, ऐसे में उन्हें सहयोग करने के बजाय परेशान किया जा रहा है. उन्होंने कहा की यदि सरकार उनकी मांगे नहीं मानती तो आने वाले दिनों में मिड-डे मील वर्कर्स सरकार की घेरा बंदी करेंगे. इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी. सरकार उनकी मांग मानकर मिड-डे मील वर्करों का मानदेय 7500 तय करे.
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